देहरादून, 9 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में आज हुई कैबिनेट बैठक में कई महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रस्तावों पर मुहर लगाई गई है। सचिवालय में सुबह 12 बजे शुरू हुई और लगभग 2 घंटे तक चली इस बैठक में राज्य सरकार ने जनता के हित में कई बड़े निर्णय लिए हैं। इनमें राज्य की पहली जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी को मंजूरी मिलना और विधवा व वृद्धावस्था पेंशन को लेकर लिया गया एक बड़ा सामाजिक निर्णय सबसे अहम हैं, जो सीधे तौर पर आम लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगे। पंचायत चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने के कारण, इस कैबिनेट बैठक की आधिकारिक ब्रीफिंग नहीं हो पाई। हालांकि, विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, इन फैसलों को राज्य के विकास और सामाजिक कल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है। उत्तराखंड की ऊर्जा क्रांति: पहली जियोथर्मल पॉलिसी को मंजूरी कैबिनेट बैठक का सबसे महत्वपूर्ण फैसला उत्तराखंड की पहली जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी को मंजूरी देना है। यह एक गेमचेंजर पॉलिसी साबित हो सकती है, खासकर उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य के लिए जहां नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की अपार संभावनाएं हैं। जियोथर्मल ऊर्जा, धरती की आंतरिक गर्मी का उपयोग कर बिजली उत्पादन करने की तकनीक है, जो स्वच्छ, निरंतर और पर्यावरण के अनुकूल होती है। उत्तराखंड में भूगर्भीय ताप (जियोथर्मल) की क्षमता व्यापक है, विशेषकर हिमालयी क्षेत्रों में। इस नीति को मंजूरी मिलने से राज्य में जियोथर्मल ऊर्जा के अन्वेषण, विकास और दोहन का रास्ता खुल गया है। यह न केवल राज्य की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी सहायक होगा। इससे राज्य में नए निवेश आकर्षित होंगे, जिससे रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा। यह फैसला उत्तराखंड को हरित ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी राज्यों में से एक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। लाखों परिवारों को राहत: अब बेटे के 18 साल पर भी नहीं रुकेगी विधवा/वृद्धा पेंशन समाज कल्याण विभाग से जुड़ा एक और ऐतिहासिक और मानवीय फैसला कैबिनेट ने लिया है, जो सीधे तौर पर समाज के कमजोर और जरूरतमंद तबके को राहत पहुंचाएगा। अब तक के नियमों के तहत, विधवा या वृद्धावस्था पेंशन अक्सर तब रोक दी जाती थी जब पेंशन धारक का पुत्र 18 वर्ष का हो जाता था, यह मानते हुए कि अब वह अपनी माँ या बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल कर सकता है। लेकिन, कैबिनेट ने इस नियम में बड़ा बदलाव करते हुए यह निर्णय लिया है कि पुत्र के 18 साल पूरे होने पर भी वृद्धावस्था और विधवा पेंशन मिलती रहेगी। यह उन लाखों माताओं और बुजुर्गों के लिए एक बड़ी राहत है जो अक्सर अपने बच्चों के बालिग होने के बाद भी आर्थिक रूप से कमजोर रहते हैं और पेंशन पर ही निर्भर होते हैं। यह फैसला समाज के एक बड़े वर्ग को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करेगा और उन्हें अनिश्चितता के दौर में आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगा। यह धामी सरकार की सामाजिक संवेदनशीलता और कल्याणकारी नीतियों का प्रतीक माना जा रहा है। बुनियादी ढांचे और सुशासन पर भी अहम मुहर कैबिनेट बैठक में केवल ऊर्जा और सामाजिक कल्याण ही नहीं, बल्कि राज्य के बुनियादी ढांचे और सुशासन से जुड़े कई अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर भी मुहर लगी है। सूत्रों के मुताबिक, इन प्रस्तावों में शामिल हैं: पुलों की वहन क्षमता का उन्नयन: पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग) के तहत प्रदेश में 'बी' ग्रेड के पुलों को 'ए' ग्रेड में अपग्रेड किए जाने का फैसला लिया गया है। इसके लिए एक प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (PMU) की स्थापना को भी मंजूरी दी गई है, जो इन पुलों की वहन क्षमता बढ़ाने के लिए अध्ययन और योजना तैयार करेगी। यह निर्णय पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जहां मजबूत पुल सड़कें और आवागमन की जीवनरेखा होते हैं। इससे कनेक्टिविटी बेहतर होगी और दुर्घटनाओं का जोखिम भी कम होगा। डिजिटल फॉरेंसिक लेबोरेटरी: राज्य कर विभाग में डिजिटल फॉरेंसिक लेबोरेटरी की स्थापना को मंजूरी दी गई है। यह लैब डिजिटल अपराधों, साइबर धोखाधड़ी और वित्तीय घोटालों की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जिससे राज्य की जांच एजेंसियों की क्षमताएं बढ़ेंगी और वित्तीय अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। वित्त सेवा संवर्ग का पुनर्गठन: उत्तराखंड के वित्त सेवा संवर्ग के पुनर्गठन को भी मंजूरी मिल गई है। यह कदम राज्य के वित्तीय प्रबंधन को और अधिक कुशल और आधुनिक बनाने की दिशा में उठाया गया है। सतर्कता विभाग का सशक्तिकरण: सतर्कता विभाग के संशोधित ढांचे को मंजूरी दी गई है, जिसके तहत इसमें पदों की संख्या बढ़ाकर 152 कर दी गई है। यह भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है और राज्य में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को मजबूत करेगा। खनिज अन्वेषण और फाउंडेशन न्यास: उत्तराखंड राज्य खनिज अन्वेषण न्यास, 2025 और उत्तराखंड जिला खनिज फाउंडेशन न्यास, 2025 को प्रख्यापित किए जाने को भी मंजूरी मिली है। यह राज्य के खनिज संसाधनों के अन्वेषण, प्रबंधन और खनन प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों के कल्याण के लिए एक व्यवस्थित ढांचा प्रदान करेगा। धामी सरकार का 'समग्र विकास' विजन ये सभी फैसले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के 'समग्र विकास' और 'सबका साथ, सबका विकास' के विजन को दर्शाते हैं। एक ओर जहां जियोथर्मल पॉलिसी और पुलों का उन्नयन राज्य के आर्थिक और भौतिक विकास को गति देगा, वहीं विधवा/वृद्धा पेंशन में बदलाव और सतर्कता विभाग का सशक्तिकरण सामाजिक न्याय और सुशासन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हालांकि, पंचायत चुनाव की आचार संहिता के चलते इन फैसलों का विस्तृत विवरण अभी सामने नहीं आया है, लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही सरकार इन महत्वपूर्ण निर्णयों को जनता के सामने रखेगी और इनके क्रियान्वयन की प्रक्रिया शुरू होगी। यह कैबिनेट बैठक निश्चित रूप से उत्तराखंड के भविष्य के लिए कई नई राहें खोलेगी।

उत्तराखंड कैबिनेट बैठक का ऐतिहासिक फैसला: राज्य की पहली जियोथर्मल पॉलिसी को मिली हरी झंडी, अब बेटे के 18 साल पूरे होने पर भी नहीं रुकेगी विधवा/वृद्धा पेंशन! आम आदमी को बड़ी राहत

देहरादून, 9 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में आज हुई कैबिनेट बैठक में कई महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रस्तावों पर मुहर लगाई गई है। सचिवालय में सुबह 12 बजे शुरू हुई और लगभग 2 घंटे तक चली इस बैठक में राज्य सरकार ने जनता के…

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देहरादून, 08 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है, जिसने कई छोटे राजनीतिक दलों के अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और चुनाव आयोग ने राज्य में पंजीकृत 6 अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (RUPPs) को नोटिस जारी किया है। इन दलों पर आरोप है कि वे पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनैतिक दल बने रहने की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। आयोग के इस कदम ने इन दलों के लिए 21 जुलाई की शाम 5 बजे तक का अल्टीमेटम दिया है, जिसके बाद उनके अंतिम डीलिस्टिंग (पंजीकरण रद्द करने) का निर्णय लिया जाएगा। यह कार्रवाई उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। क्यों चला आयोग का 'डंडा'? शर्तों पर खरे नहीं उतर रहे कई दल भारत निर्वाचन आयोग, देश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों के पंजीकरण और उनके कामकाज पर कड़ी नजर रखता है। आयोग के निर्देशानुसार, उत्तराखंड में कुल 42 पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (RUPPs) हैं। ये वो दल होते हैं, जिन्हें राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त वोट प्रतिशत या सीटें नहीं मिली होतीं, लेकिन वे चुनाव आयोग के पास पंजीकृत होते हैं। हालांकि, चुनाव आयोग की जांच में सामने आया है कि इन 42 दलों में से कई ऐसे हैं जो 'पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनैतिक दल' बने रहने की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इन शर्तों में मुख्य रूप से शामिल हैं: नियमित आंतरिक चुनाव: दलों को अपने भीतर नियमित रूप से संगठनात्मक चुनाव कराने होते हैं, ताकि आंतरिक लोकतंत्र बना रहे। वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट जमा करना: वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखने के लिए दलों को हर साल अपनी आय-व्यय की ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंपनी होती है। योगदान रिपोर्ट दाखिल करना: दलों को अपने प्राप्त चंदे (कंट्रीब्यूशन) की जानकारी आयोग को देनी होती है। चुनावी गतिविधियों में भागीदारी: दलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे लगातार चुनाव (विधानसभा या लोकसभा) में भाग लें, भले ही वे सीटें न जीतें। सक्रिय कार्यालय का पता: आयोग ने विशेष रूप से यह भी पाया है कि इन दलों के कार्यालय का कोई सही या सक्रिय पता नहीं है। यानी ये दल केवल कागजों पर मौजूद हैं, जमीनी स्तर पर इनकी कोई सक्रियता नहीं दिख रही है। आयोग ने इन्हीं मानदंडों के आधार पर उत्तराखंड के 6 ऐसे विशिष्ट दलों की पहचान की है, जिन्हें अब नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया है। अस्तित्व पर खतरा: 21 जुलाई शाम 5 बजे की डेडलाइन नोटिस प्राप्त करने वाले इन 6 दलों को 21 जुलाई, शाम 5 बजे तक अपना जवाब चुनाव आयोग को भेजना होगा। इस जवाब में उन्हें यह साबित करना होगा कि वे आयोग द्वारा निर्धारित सभी शर्तों का पालन कर रहे हैं या क्यों उन्हें डीलिस्ट नहीं किया जाना चाहिए। यदि ये दल निर्धारित समय-सीमा के भीतर संतोषजनक जवाब प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं या अपने दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं दे पाते हैं, तो भारत निर्वाचन आयोग इनकी अंतिम डीलिस्टिंग का निर्णय लेगा। डीलिस्टिंग का अर्थ है कि इन दलों का पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा, और वे अब चुनाव आयोग द्वारा पंजीकृत राजनीतिक दल नहीं रह जाएंगे। क्यों महत्वपूर्ण है यह कार्रवाई? पारदर्शिता और जवाबदेही की पहल चुनाव आयोग द्वारा यह कार्रवाई केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि देश भर में ऐसे निष्क्रिय और गैर-अनुपालनकारी राजनीतिक दलों के खिलाफ अभियान का हिस्सा है। आयोग का मुख्य उद्देश्य है कि: राजनीतिक प्रणाली को साफ-सुथरा बनाना: ऐसे दल जो केवल कागजों पर मौजूद हैं और जिनका कोई वास्तविक राजनीतिक उद्देश्य नहीं है, उन्हें प्रणाली से हटाना। फंडिंग में पारदर्शिता: कई बार ऐसे निष्क्रिय दलों का उपयोग धन के लेन-देन या कर चोरी के लिए भी किया जाता है। आयोग ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगाना चाहता है। संसाधनों का कुशल उपयोग: चुनाव आयोग के सीमित संसाधनों का उपयोग केवल सक्रिय और वास्तविक राजनीतिक दलों के लिए हो। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करना: केवल वास्तविक और सक्रिय दल ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लें, जिससे राजनीतिक प्रणाली की विश्वसनीयता बढ़े। यह कदम उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य में भी एक नई बहस छेड़ सकता है, खासकर उन छोटे दलों के बीच जो अपनी पहचान बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रभाव और चुनौतियाँ: क्या खोएंगे ये दल? यदि इन 6 दलों का पंजीकरण रद्द होता है, तो उन्हें कई लाभों से वंचित होना पड़ेगा, जिनमें शामिल हैं: निर्वाचक नामावली (Electoral Rolls) की निःशुल्क प्रतियां प्राप्त करने का अधिकार। सार्वजनिक प्रसारकों (जैसे दूरदर्शन और आकाशवाणी) पर मुफ्त हवाई समय। चुनाव के दौरान अपने उम्मीदवारों के लिए साझा चुनाव चिह्न की सुविधा (यदि आयोग द्वारा आवंटित की जाती है)। डीलिस्ट होने के बाद, यदि ये दल भविष्य में चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो उन्हें नए सिरे से पंजीकरण प्रक्रिया से गुजरना होगा, जो एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है। यह चुनौती इन दलों के लिए उनके अस्तित्व को बचाने की आखिरी लड़ाई साबित हो सकती है। चुनाव आयोग का यह कदम स्पष्ट संदेश है कि राजनीतिक दलों को अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेना होगा और केवल कागजों पर पंजीकृत होकर ही राजनीतिक दल बने नहीं रहा जा सकता। उत्तराखंड में जिन दलों को नोटिस मिला है, उन्हें अब 21 जुलाई तक अपने अस्तित्व को बचाने के लिए मजबूत दलीलें और प्रमाण पेश करने होंगे। इस फैसले से राज्य की छोटी राजनीतिक पार्टियों के कामकाज में निश्चित रूप से अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही देखने को मिलेगी।

उत्तराखंड की सियासत में भूचाल! चुनाव आयोग का ‘डंडा’ चला, 6 राजनीतिक दलों पर लटकी ‘अस्तित्व’ की तलवार, 21 जुलाई तक ‘आखिरी मौका’

देहरादून, 08 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है, जिसने कई छोटे राजनीतिक दलों के अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और चुनाव आयोग ने राज्य में पंजीकृत 6 अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (RUPPs) को नोटिस जारी किया…

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देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का 'महाकुंभ' देखने को मिला, नेताओं और स्थानीय ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह दिखा, लेकिन इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए उम्मीद के मुताबिक नामांकन दाखिल नहीं हो पाए। इस स्थिति ने राज्य निर्वाचन आयोग और ग्रामीण लोकतंत्र के विशेषज्ञों को सकते में डाल दिया है, क्योंकि इन शुरुआती आंकड़ों से साफ संकेत मिल रहा है कि इस बार पंचायती राज व्यवस्था में बड़ी संख्या में पद रिक्त रह सकते हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अंकों की जुबानी, उदासीनता की कहानी: सदस्य पदों पर सन्नाटा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी प्रारंभिक आंकड़ों ने इस असमानता को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। नामांकन के पहले तीन दिनों में, चुनाव आयोग के समक्ष कुल 66,418 पदों के लिए केवल 32,239 नामांकन दाखिल हुए थे। यह अपने आप में एक बड़ा गैप दिखाता है, लेकिन जब हम इसे पदों के अनुसार देखते हैं तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। ग्राम प्रधान पद पर बंपर नामांकन: ग्राम प्रधान के कुल 7,499 पदों के लिए, पहले तीन दिनों में ही रिकॉर्ड तोड़ 15,917 नामांकन दर्ज हुए। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस प्रतिष्ठित पद को लेकर ग्रामीण आबादी में कितना जबरदस्त उत्साह और प्रतिस्पर्धा है। कई सीटों पर तो एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतरने को तैयार दिख रहे हैं। शनिवार को अंतिम दिन यह आंकड़ा और भी तेजी से बढ़ा, हालांकि खबर लिखे जाने तक आयोग द्वारा अंतिम और पूर्ण आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। प्रधान का पद गांव के मुखिया का होता है, जिसके पास विकास योजनाओं पर निर्णय लेने और करोड़ों के फंड्स का प्रबंधन करने का अधिकार होता है, शायद यही वजह है कि यह पद लोगों के लिए इतना आकर्षक है। ग्राम पंचायत सदस्य पद पर 'उदासीनता' का सन्नाटा: इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के कुल 55,587 पदों के लिए पहले तीन दिनों में मात्र 7,235 नामांकन ही आए। यह आंकड़ा बेहद निराशाजनक है, क्योंकि यह कुल पदों का 15% भी नहीं है। अंतिम दिन भी इस पद के लिए नामांकन को लेकर कोई खास उत्साह या भीड़ देखने को नहीं मिली, जो प्रधान पद के लिए उमड़ी भीड़ से बिल्कुल अलग था। यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए आमजन की रुचि अपेक्षा से कहीं अधिक कम है। कई वार्डों में तो एक भी नामांकन दाखिल नहीं हुआ है, जिससे ये सीटें सीधे तौर पर खाली रहने के कगार पर हैं। क्यों आई यह 'उदासीनता'? सत्ता-विहीन पदों का आकर्षण कम सवाल उठता है कि आखिर ग्रामीण लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई कहे जाने वाले ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के लिए इतनी उदासीनता क्यों है? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं: सत्ता और संसाधनों का अभाव: ग्राम प्रधान के पास सीधे तौर पर विकास कार्यों के लिए धन का आवंटन और निर्णय लेने की शक्ति होती है। इसके विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के पास न तो कोई बड़ा फंड होता है और न ही निर्णय लेने की सीधी शक्ति। उनका काम मुख्य रूप से ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेना और प्रधान के फैसलों पर मुहर लगाना होता है, जिससे यह पद 'सत्ता-विहीन' या कम प्रभावशाली माना जाता है। कम सामाजिक सम्मान: प्रधान पद की तुलना में ग्राम पंचायत सदस्य के पद को सामाजिक रूप से कम महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे लोग इस पद के लिए समय और धन खर्च करने को तैयार नहीं होते। जागरूकता की कमी: ग्रामीण आबादी में ग्राम पंचायत सदस्य के वास्तविक कर्तव्यों, अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण हो सकती है। अभियान का खर्च: भले ही यह एक छोटा पद हो, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए कुछ न्यूनतम खर्च तो आता ही है। जब पद में कोई सीधा लाभ या प्रतिष्ठा न हो, तो लोग उस पर पैसा खर्च करने से कतराते हैं। बढ़ती शहरीकरण की प्रवृत्ति: ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का शहरों की ओर पलायन भी एक कारण हो सकता है, जिससे सक्रिय युवा भागीदारी कम हो रही है। आगे की प्रक्रिया: जांच से मतदान तक का चुनावी कार्यक्रम नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग अब अगले चरण में प्रवेश करेगा। नामांकन पत्रों की जांच: 7 से 9 जुलाई तक राज्य निर्वाचन आयोग दोनों चरणों के लिए दाखिल हुए सभी नामांकन पत्रों की गहन जांच करेगा। इस दौरान यह देखा जाएगा कि सभी आवेदन वैध हैं और उम्मीदवारों ने नियमों का पालन किया है। नाम वापसी का अवसर: नामांकन पत्रों की जांच के बाद, इच्छुक उम्मीदवार 10 और 11 जुलाई को अपने नाम वापस ले सकेंगे। इसके बाद ही चुनाव मैदान में बचे उम्मीदवारों की अंतिम सूची स्पष्ट हो पाएगी। चुनाव चिह्न आवंटन: नाम वापसी के बाद, चुनाव मैदान में टिके उम्मीदवारों को उनके चुनाव चिह्न आवंटित किए जाएंगे। पहले चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 14 जुलाई दूसरे चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 18 जुलाई मतदान की तिथियां: पहले चरण का मतदान: 24 जुलाई दूसरे चरण का मतदान: 28 जुलाई परिणामों की घोषणा: दोनों चरणों के लिए डाले गए मतों की गणना के बाद, परिणामों की घोषणा 31 जुलाई को की जाएगी। लोकतंत्र पर सवाल और आयोग की चुनौती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान पद के लिए पर्याप्त नामांकन होना तो अच्छी बात है, लेकिन सदस्य पदों के लिए यह उदासीनता निश्चित रूप से चिंता का विषय है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर एक गहरी जागरूकता की कमी और राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है। अगर बड़ी संख्या में सदस्य पद खाली रह जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु संचालन और ग्रामीण स्तर पर प्रभावी प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा। आगामी दिनों में राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि इन रिक्त पदों पर पुनः चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए या किसी वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे नामित प्रतिनिधियों की व्यवस्था, यदि कानूनी ढांचा इसकी अनुमति देता है) पर विचार किया जाए। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि नाम वापसी के बाद उम्मीदवारों की अंतिम सूची में कितनी विविधता और वास्तविक प्रतिस्पर्धा नजर आती है। इस पूरी प्रक्रिया पर ग्रामीण विकास और लोकतांत्रिक सुदृढ़ता के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है।

55 हजार ग्राम पंचायत सदस्य पद ‘लावारिस’? उत्तराखंड पंचायत चुनाव में चौंकाने वाली तस्वीर, क्या खाली रह जाएंगी हजारों गांवों की सीटें?

देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का ‘महाकुंभ’…

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देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का 'महाकुंभ' देखने को मिला, नेताओं और स्थानीय ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह दिखा, लेकिन इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए उम्मीद के मुताबिक नामांकन दाखिल नहीं हो पाए। इस स्थिति ने राज्य निर्वाचन आयोग और ग्रामीण लोकतंत्र के विशेषज्ञों को सकते में डाल दिया है, क्योंकि इन शुरुआती आंकड़ों से साफ संकेत मिल रहा है कि इस बार पंचायती राज व्यवस्था में बड़ी संख्या में पद रिक्त रह सकते हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अंकों की जुबानी, उदासीनता की कहानी: सदस्य पदों पर सन्नाटा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी प्रारंभिक आंकड़ों ने इस असमानता को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। नामांकन के पहले तीन दिनों में, चुनाव आयोग के समक्ष कुल 66,418 पदों के लिए केवल 32,239 नामांकन दाखिल हुए थे। यह अपने आप में एक बड़ा गैप दिखाता है, लेकिन जब हम इसे पदों के अनुसार देखते हैं तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। ग्राम प्रधान पद पर बंपर नामांकन: ग्राम प्रधान के कुल 7,499 पदों के लिए, पहले तीन दिनों में ही रिकॉर्ड तोड़ 15,917 नामांकन दर्ज हुए। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस प्रतिष्ठित पद को लेकर ग्रामीण आबादी में कितना जबरदस्त उत्साह और प्रतिस्पर्धा है। कई सीटों पर तो एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतरने को तैयार दिख रहे हैं। शनिवार को अंतिम दिन यह आंकड़ा और भी तेजी से बढ़ा, हालांकि खबर लिखे जाने तक आयोग द्वारा अंतिम और पूर्ण आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। प्रधान का पद गांव के मुखिया का होता है, जिसके पास विकास योजनाओं पर निर्णय लेने और करोड़ों के फंड्स का प्रबंधन करने का अधिकार होता है, शायद यही वजह है कि यह पद लोगों के लिए इतना आकर्षक है। ग्राम पंचायत सदस्य पद पर 'उदासीनता' का सन्नाटा: इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के कुल 55,587 पदों के लिए पहले तीन दिनों में मात्र 7,235 नामांकन ही आए। यह आंकड़ा बेहद निराशाजनक है, क्योंकि यह कुल पदों का 15% भी नहीं है। अंतिम दिन भी इस पद के लिए नामांकन को लेकर कोई खास उत्साह या भीड़ देखने को नहीं मिली, जो प्रधान पद के लिए उमड़ी भीड़ से बिल्कुल अलग था। यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए आमजन की रुचि अपेक्षा से कहीं अधिक कम है। कई वार्डों में तो एक भी नामांकन दाखिल नहीं हुआ है, जिससे ये सीटें सीधे तौर पर खाली रहने के कगार पर हैं। क्यों आई यह 'उदासीनता'? सत्ता-विहीन पदों का आकर्षण कम सवाल उठता है कि आखिर ग्रामीण लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई कहे जाने वाले ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के लिए इतनी उदासीनता क्यों है? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं: सत्ता और संसाधनों का अभाव: ग्राम प्रधान के पास सीधे तौर पर विकास कार्यों के लिए धन का आवंटन और निर्णय लेने की शक्ति होती है। इसके विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के पास न तो कोई बड़ा फंड होता है और न ही निर्णय लेने की सीधी शक्ति। उनका काम मुख्य रूप से ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेना और प्रधान के फैसलों पर मुहर लगाना होता है, जिससे यह पद 'सत्ता-विहीन' या कम प्रभावशाली माना जाता है। कम सामाजिक सम्मान: प्रधान पद की तुलना में ग्राम पंचायत सदस्य के पद को सामाजिक रूप से कम महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे लोग इस पद के लिए समय और धन खर्च करने को तैयार नहीं होते। जागरूकता की कमी: ग्रामीण आबादी में ग्राम पंचायत सदस्य के वास्तविक कर्तव्यों, अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण हो सकती है। अभियान का खर्च: भले ही यह एक छोटा पद हो, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए कुछ न्यूनतम खर्च तो आता ही है। जब पद में कोई सीधा लाभ या प्रतिष्ठा न हो, तो लोग उस पर पैसा खर्च करने से कतराते हैं। बढ़ती शहरीकरण की प्रवृत्ति: ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का शहरों की ओर पलायन भी एक कारण हो सकता है, जिससे सक्रिय युवा भागीदारी कम हो रही है। आगे की प्रक्रिया: जांच से मतदान तक का चुनावी कार्यक्रम नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग अब अगले चरण में प्रवेश करेगा। नामांकन पत्रों की जांच: 7 से 9 जुलाई तक राज्य निर्वाचन आयोग दोनों चरणों के लिए दाखिल हुए सभी नामांकन पत्रों की गहन जांच करेगा। इस दौरान यह देखा जाएगा कि सभी आवेदन वैध हैं और उम्मीदवारों ने नियमों का पालन किया है। नाम वापसी का अवसर: नामांकन पत्रों की जांच के बाद, इच्छुक उम्मीदवार 10 और 11 जुलाई को अपने नाम वापस ले सकेंगे। इसके बाद ही चुनाव मैदान में बचे उम्मीदवारों की अंतिम सूची स्पष्ट हो पाएगी। चुनाव चिह्न आवंटन: नाम वापसी के बाद, चुनाव मैदान में टिके उम्मीदवारों को उनके चुनाव चिह्न आवंटित किए जाएंगे। पहले चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 14 जुलाई दूसरे चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 18 जुलाई मतदान की तिथियां: पहले चरण का मतदान: 24 जुलाई दूसरे चरण का मतदान: 28 जुलाई परिणामों की घोषणा: दोनों चरणों के लिए डाले गए मतों की गणना के बाद, परिणामों की घोषणा 31 जुलाई को की जाएगी। लोकतंत्र पर सवाल और आयोग की चुनौती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान पद के लिए पर्याप्त नामांकन होना तो अच्छी बात है, लेकिन सदस्य पदों के लिए यह उदासीनता निश्चित रूप से चिंता का विषय है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर एक गहरी जागरूकता की कमी और राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है। अगर बड़ी संख्या में सदस्य पद खाली रह जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु संचालन और ग्रामीण स्तर पर प्रभावी प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा। आगामी दिनों में राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि इन रिक्त पदों पर पुनः चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए या किसी वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे नामित प्रतिनिधियों की व्यवस्था, यदि कानूनी ढांचा इसकी अनुमति देता है) पर विचार किया जाए। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि नाम वापसी के बाद उम्मीदवारों की अंतिम सूची में कितनी विविधता और वास्तविक प्रतिस्पर्धा नजर आती है। इस पूरी प्रक्रिया पर ग्रामीण विकास और लोकतांत्रिक सुदृढ़ता के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है।

बिग ब्रेकिंग: उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025 में ऐतिहासिक बदलाव! नतीजे ऑनलाइन, वोटर लिस्ट घर बैठे, खर्च सीमा बढ़ी-निगरानी सख्त; आयोग ने ‘विश्वसनीयता’ को दी नई परिभाषा

देहरादून, 30 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग ने बड़े और दूरगामी बदलावों की घोषणा की है। इन अभूतपूर्व सुधारों का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को पहले से कहीं अधिक विश्वसनीय, पारदर्शी और जनसुलभ बनाना है। राज्य निर्वाचन आयुक्त श्री सुशील कुमार…

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जसपुर, 30 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड युवा मोर्चा की प्रदेश मंत्री एवं पूर्व सांसद प्रतिनिधि शीतल जोशी ने जसपुर विधानसभा क्षेत्र की विभिन्न समस्याओं के शीघ्र समाधान के लिए मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी को एक छह बिंदुओं का विस्तृत मांग पत्र सौंपा है। जोशी ने इस पत्र के माध्यम से क्षेत्र के विकास और जनहित से जुड़े अहम मुद्दों की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करते हुए प्राथमिकता के आधार पर कार्रवाई की मांग की है। स्वास्थ्य व्यवस्था सुदृढ़ करने पर जोर शीतल जोशी ने अपने मांग पत्र में जसपुर क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का मुद्दा प्रमुखता से उठाया है। उन्होंने मुख्यमंत्री को अवगत कराया कि जसपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पूर्णकालिक रेडियोलॉजिस्ट एवं पैथोलॉजिस्ट की नियुक्ति न होने से आमजन को इलाज में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने इन महत्वपूर्ण पदों पर शीघ्र नियुक्ति करने की मांग की है ताकि क्षेत्रवासियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ मिल सकें। तीर्थाटन एवं पर्यटन को बढ़ावा देने की वकालत जसपुर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को रेखांकित करते हुए, शीतल जोशी ने क्षेत्र में तीर्थाटन व पर्यटन को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उन्होंने मांग की है कि जसपुर के प्राचीन तीर्थ स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाए। इसके लिए उन्होंने सौंदर्यीकरण परियोजनाओं और स्थानीय लोगों के लिए रोजगार सृजन की योजनाओं को लागू करने की आवश्यकता बताई, जिससे क्षेत्र का आर्थिक विकास हो सके। भूमिहीनों को मालिकाना हक दिलाने की पैरवी मांग पत्र में जसपुर क्षेत्र के उन गरीब और भूमिहीन परिवारों का मुद्दा भी उठाया गया है, जिन्हें वर्ष 2020 में उत्तराखंड सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के तहत मालिकाना अधिकार मिलने थे, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। शीतल जोशी ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि इन परिवारों को शीघ्र अति शीघ्र भूमि का मालिकाना हक दिलाया जाए, जिससे उन्हें आर्थिक सुरक्षा और सम्मान मिल सके। सड़क सुरक्षा पर चिंता एवं समाधान की मांग आए दिन राष्ट्रीय राजमार्गों पर हो रही सड़क दुर्घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए शीतल जोशी ने मुख्यमंत्री से सड़क सुरक्षा के उपाय करने की मांग की। उन्होंने विशेष रूप से दुर्घटना संभावित क्षेत्रों (ब्लैक स्पॉट) की पहचान कर वहाँ चेतावनी बोर्ड और प्रभावी अवरोधक लगाने की आवश्यकता पर बल दिया है, ताकि सड़क हादसों पर अंकुश लगाया जा सके। जल आपूर्ति योजनाओं के शीघ्र क्रियान्वयन की मांग जसपुर नगर पालिका क्षेत्र में पेयजल संकट को एक गंभीर समस्या बताते हुए, उन्होंने मुख्यमंत्री से स्वीकृत पेयजल योजनाओं को जल्द से जल्द लागू करने की मांग की। शीतल जोशी ने कहा कि नगर के विभिन्न वार्डों में जल संकट एक बड़ी समस्या बना हुआ है, जिसका त्वरित समाधान किया जाना आवश्यक है। ग्रामीणों को जल जीवन मिशन का लाभ मिले जल जीवन मिशन जैसी महत्वपूर्ण सरकारी योजना का लाभ जसपुर के ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाने की बात भी मांग पत्र में कही गई है। शीतल जोशी ने अपील की है कि जल जीवन मिशन के अंतर्गत जसपुर ग्रामीण क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए शुद्ध पेयजल की आपूर्ति शीघ्र सुनिश्चित की जाए, जिससे ग्रामीण आबादी को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध हो सके। अंत में, शीतल जोशी ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से अनुरोध किया कि इन सभी 6 सूत्रीय मांगों पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए शीघ्र कार्रवाई की जाए ताकि जसपुर की जनता को विभिन्न समस्याओं से राहत मिल सके। उन्होंने विश्वास जताया कि मुख्यमंत्री क्षेत्र की जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस दिशा में सकारात्मक निर्णय लेंगे और विकास कार्यों को गति देंगे।

जसपुर की समस्याओं पर शीतल जोशी ने CM धामी को सौंपा 6 सूत्रीय मांग पत्र, स्वास्थ्य-पर्यटन-भूमि अधिकार जैसे मुद्दे उठाए

जसपुर, 30 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – (CM धामी )भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड युवा मोर्चा की प्रदेश मंत्री एवं पूर्व सांसद प्रतिनिधि शीतल जोशी ने जसपुर विधानसभा क्षेत्र की विभिन्न समस्याओं के शीघ्र समाधान के लिए मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी को एक छह बिंदुओं का विस्तृत मांग पत्र सौंपा है। जोशी…

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देहरादून, 29 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में, जहाँ शांति और धार्मिकता की उम्मीद की जाती है, वहाँ 'आशियाना गेस्ट हाउस' की आड़ में चल रहे एक बड़े जिस्मफरोशी के रैकेट का पुलिस ने भंडाफोड़ किया है। राजा रोड स्थित इस गेस्ट हाउस पर पुलिस टीम ने छापा मारा तो गेस्ट हाउस की दीवारों के पीछे चल रहे जिस्म के धंधे का पर्दाफाश हो गया, जिसने देवभूमि की पवित्र छवि पर एक बार फिर कालिख पोत दी है। पुलिस ने मौके से 6 लोगों को गिरफ्तार किया है, जो सभी बाहरी राज्यों के बताए जा रहे हैं। 'आशियाना गेस्ट हाउस' बना था देह व्यापार का अड्डा मिली जानकारी के अनुसार, देहरादून के राजा रोड स्थित 'आशियाना गेस्ट हाउस' लंबे समय से पुलिस की नजर में था। पुलिस को सूचना मिल रही थी कि इस गेस्ट हाउस में देह व्यापार का अवैध धंधा खुलेआम चल रहा है। इस गेस्ट हाउस को जिस्मफरोशी का एक अड्डा बना दिया गया था, जहाँ ग्राहकों को फोन पर बुलाया जाता था और उन्हें अवैध तरीके से देह व्यापार की सुविधा मुहैया कराई जाती थी। यह एक सुनियोजित रैकेट था, जो गेस्ट हाउस की आड़ में बेखौफ चल रहा था। पुलिस के आला अधिकारियों को इस संबंध में गुप्त सूचना मिली, जिसके बाद एक गोपनीय ऑपरेशन की योजना बनाई गई। इस ऑपरेशन को सफल बनाने के लिए विशेष रूप से एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) और नगर पुलिस की संयुक्त टीम का गठन किया गया, ताकि छापेमारी को प्रभावी ढंग से अंजाम दिया जा सके और आरोपियों को मौके पर ही पकड़ा जा सके। छापेमारी का मंजर: आपत्तिजनक हालत में पकड़े गए युवक-युवतियां शुक्रवार देर रात AHTU और नगर पुलिस की संयुक्त टीम ने अचानक 'आशियाना गेस्ट हाउस' पर छापा मार दिया। पुलिस की टीम जब गेस्ट हाउस के अंदर दाखिल हुई, तो वहाँ का नजारा चौंकाने वाला था। पुलिस ने देखा कि गेस्ट हाउस के अलग-अलग कमरों में युवक और युवतियां आपत्तिजनक हालत में पकड़े गए। यह स्थिति गेस्ट हाउस में चल रहे अवैध धंधे का स्पष्ट प्रमाण थी। छापेमारी के दौरान पुलिस ने मौके से बड़ी मात्रा में आपत्तिजनक सामान और नगदी भी बरामद की। इन बरामदगियों ने पुष्टि कर दी कि गेस्ट हाउस का उपयोग सिर्फ ठहरने के लिए नहीं, बल्कि अनैतिक गतिविधियों के लिए किया जा रहा था। पुलिस ने तुरंत सभी संबंधित व्यक्तियों को हिरासत में ले लिया और आगे की कार्रवाई शुरू की। गैंग का सरगना और बाहरी राज्यों से कनेक्शन पुलिस की पूछताछ में पता चला है कि इस पूरे देह व्यापार के रैकेट को नरेंद्र सिंह रावत नाम के एक शख्स ने गेस्ट हाउस को लीज पर लेकर चला रहा था। लीज पर गेस्ट हाउस लेने का मकसद ही इसकी आड़ में इस अवैध धंधे को संचालित करना था। पुलिस अब नरेंद्र सिंह रावत की तलाश में जुट गई है और उसके खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की तैयारी कर रही है। इस रेड में कुल 6 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। गिरफ्तार किए गए आरोपियों की पहचान इस प्रकार है: तापस शाहू कमलेश निक्का देवी संजीत कुमार गुल्ली देवी मनु गुरंग सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पुलिस के अनुसार, ये सभी गिरफ्तार आरोपी बिहार और बंगाल जैसे बाहरी राज्यों के रहने वाले हैं। यह दर्शाता है कि यह रैकेट सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि अंतर-राज्यीय स्तर पर भी फैला हुआ हो सकता है, जहाँ बाहर से युवतियों को लाकर इस धंधे में धकेला जा रहा था। पुलिस अब इस गैंग के पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश करने की कोशिश कर रही है, जिसमें इसके सरगना और अन्य सदस्यों की गिरफ्तारी शामिल है। देवभूमि की छवि पर दाग और पुलिस की चुनौतियाँ देहरादून, जिसे अपनी प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिक महत्व और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है, ऐसी घटनाओं से उसकी 'देवभूमि' की छवि पर गहरा दाग लगता है। इस तरह के अनैतिक और अवैध धंधे न केवल कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती पेश करते हैं, बल्कि समाज में नैतिक मूल्यों के क्षरण का भी कारण बनते हैं। पुलिस लगातार ऐसे असामाजिक तत्वों के खिलाफ अभियान चला रही है, जो नशे और देह व्यापार जैसे अवैध धंधों में लिप्त हैं। यह रेड पुलिस की सतर्कता और 'देवभूमि' को अपराध मुक्त बनाने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। पुलिस अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि भविष्य में भी ऐसे किसी भी अवैध कार्य को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। पुलिस प्रशासन जनता से भी अपील कर रहा है कि वे ऐसी किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना तत्काल पुलिस को दें, ताकि समय रहते इन पर अंकुश लगाया

देहरादून में ‘आशियाना गेस्ट हाउस’ पर पुलिस का छापा: दीवारों के पीछे चल रहा था जिस्मफरोशी का धंधा, 6 गिरफ्तार, देवभूमि की छवि पर दाग!

देहरादून, 29 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में, जहाँ शांति और धार्मिकता की उम्मीद की जाती है, वहाँ ‘आशियाना गेस्ट हाउस’ की आड़ में चल रहे एक बड़े जिस्मफरोशी के रैकेट का पुलिस ने भंडाफोड़ किया है। राजा रोड स्थित इस गेस्ट हाउस पर पुलिस टीम ने…

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देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का 'महाकुंभ' देखने को मिला, नेताओं और स्थानीय ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह दिखा, लेकिन इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए उम्मीद के मुताबिक नामांकन दाखिल नहीं हो पाए। इस स्थिति ने राज्य निर्वाचन आयोग और ग्रामीण लोकतंत्र के विशेषज्ञों को सकते में डाल दिया है, क्योंकि इन शुरुआती आंकड़ों से साफ संकेत मिल रहा है कि इस बार पंचायती राज व्यवस्था में बड़ी संख्या में पद रिक्त रह सकते हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अंकों की जुबानी, उदासीनता की कहानी: सदस्य पदों पर सन्नाटा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी प्रारंभिक आंकड़ों ने इस असमानता को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। नामांकन के पहले तीन दिनों में, चुनाव आयोग के समक्ष कुल 66,418 पदों के लिए केवल 32,239 नामांकन दाखिल हुए थे। यह अपने आप में एक बड़ा गैप दिखाता है, लेकिन जब हम इसे पदों के अनुसार देखते हैं तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। ग्राम प्रधान पद पर बंपर नामांकन: ग्राम प्रधान के कुल 7,499 पदों के लिए, पहले तीन दिनों में ही रिकॉर्ड तोड़ 15,917 नामांकन दर्ज हुए। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस प्रतिष्ठित पद को लेकर ग्रामीण आबादी में कितना जबरदस्त उत्साह और प्रतिस्पर्धा है। कई सीटों पर तो एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतरने को तैयार दिख रहे हैं। शनिवार को अंतिम दिन यह आंकड़ा और भी तेजी से बढ़ा, हालांकि खबर लिखे जाने तक आयोग द्वारा अंतिम और पूर्ण आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। प्रधान का पद गांव के मुखिया का होता है, जिसके पास विकास योजनाओं पर निर्णय लेने और करोड़ों के फंड्स का प्रबंधन करने का अधिकार होता है, शायद यही वजह है कि यह पद लोगों के लिए इतना आकर्षक है। ग्राम पंचायत सदस्य पद पर 'उदासीनता' का सन्नाटा: इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के कुल 55,587 पदों के लिए पहले तीन दिनों में मात्र 7,235 नामांकन ही आए। यह आंकड़ा बेहद निराशाजनक है, क्योंकि यह कुल पदों का 15% भी नहीं है। अंतिम दिन भी इस पद के लिए नामांकन को लेकर कोई खास उत्साह या भीड़ देखने को नहीं मिली, जो प्रधान पद के लिए उमड़ी भीड़ से बिल्कुल अलग था। यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए आमजन की रुचि अपेक्षा से कहीं अधिक कम है। कई वार्डों में तो एक भी नामांकन दाखिल नहीं हुआ है, जिससे ये सीटें सीधे तौर पर खाली रहने के कगार पर हैं। क्यों आई यह 'उदासीनता'? सत्ता-विहीन पदों का आकर्षण कम सवाल उठता है कि आखिर ग्रामीण लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई कहे जाने वाले ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के लिए इतनी उदासीनता क्यों है? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं: सत्ता और संसाधनों का अभाव: ग्राम प्रधान के पास सीधे तौर पर विकास कार्यों के लिए धन का आवंटन और निर्णय लेने की शक्ति होती है। इसके विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के पास न तो कोई बड़ा फंड होता है और न ही निर्णय लेने की सीधी शक्ति। उनका काम मुख्य रूप से ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेना और प्रधान के फैसलों पर मुहर लगाना होता है, जिससे यह पद 'सत्ता-विहीन' या कम प्रभावशाली माना जाता है। कम सामाजिक सम्मान: प्रधान पद की तुलना में ग्राम पंचायत सदस्य के पद को सामाजिक रूप से कम महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे लोग इस पद के लिए समय और धन खर्च करने को तैयार नहीं होते। जागरूकता की कमी: ग्रामीण आबादी में ग्राम पंचायत सदस्य के वास्तविक कर्तव्यों, अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण हो सकती है। अभियान का खर्च: भले ही यह एक छोटा पद हो, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए कुछ न्यूनतम खर्च तो आता ही है। जब पद में कोई सीधा लाभ या प्रतिष्ठा न हो, तो लोग उस पर पैसा खर्च करने से कतराते हैं। बढ़ती शहरीकरण की प्रवृत्ति: ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का शहरों की ओर पलायन भी एक कारण हो सकता है, जिससे सक्रिय युवा भागीदारी कम हो रही है। आगे की प्रक्रिया: जांच से मतदान तक का चुनावी कार्यक्रम नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग अब अगले चरण में प्रवेश करेगा। नामांकन पत्रों की जांच: 7 से 9 जुलाई तक राज्य निर्वाचन आयोग दोनों चरणों के लिए दाखिल हुए सभी नामांकन पत्रों की गहन जांच करेगा। इस दौरान यह देखा जाएगा कि सभी आवेदन वैध हैं और उम्मीदवारों ने नियमों का पालन किया है। नाम वापसी का अवसर: नामांकन पत्रों की जांच के बाद, इच्छुक उम्मीदवार 10 और 11 जुलाई को अपने नाम वापस ले सकेंगे। इसके बाद ही चुनाव मैदान में बचे उम्मीदवारों की अंतिम सूची स्पष्ट हो पाएगी। चुनाव चिह्न आवंटन: नाम वापसी के बाद, चुनाव मैदान में टिके उम्मीदवारों को उनके चुनाव चिह्न आवंटित किए जाएंगे। पहले चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 14 जुलाई दूसरे चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 18 जुलाई मतदान की तिथियां: पहले चरण का मतदान: 24 जुलाई दूसरे चरण का मतदान: 28 जुलाई परिणामों की घोषणा: दोनों चरणों के लिए डाले गए मतों की गणना के बाद, परिणामों की घोषणा 31 जुलाई को की जाएगी। लोकतंत्र पर सवाल और आयोग की चुनौती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान पद के लिए पर्याप्त नामांकन होना तो अच्छी बात है, लेकिन सदस्य पदों के लिए यह उदासीनता निश्चित रूप से चिंता का विषय है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर एक गहरी जागरूकता की कमी और राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है। अगर बड़ी संख्या में सदस्य पद खाली रह जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु संचालन और ग्रामीण स्तर पर प्रभावी प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा। आगामी दिनों में राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि इन रिक्त पदों पर पुनः चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए या किसी वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे नामित प्रतिनिधियों की व्यवस्था, यदि कानूनी ढांचा इसकी अनुमति देता है) पर विचार किया जाए। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि नाम वापसी के बाद उम्मीदवारों की अंतिम सूची में कितनी विविधता और वास्तविक प्रतिस्पर्धा नजर आती है। इस पूरी प्रक्रिया पर ग्रामीण विकास और लोकतांत्रिक सुदृढ़ता के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है।

उत्तराखंड पंचायत चुनावों से हटा ग्रहण, हाईकोर्ट ने दी हरी झंडी; आयोग ने जारी किया ‘नया’ और ‘अंतिम’ कार्यक्रम, देखें आपकी वोटिंग-गिनती की तारीखें!

देहरादून, 28 जून, 2025 – (समय बोल रहा) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर छाया अनिश्चितता का बादल आखिरकार छंट गया है! मा० उच्च न्यायालय, उत्तराखंड, नैनीताल ने रिट याचिका में अपना स्थगनादेश समाप्त कर दिया है, जिसके तुरंत बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने भी सक्रियता दिखाते हुए पंचायत चुनावों का संशोधित और अंतिम…

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देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का 'महाकुंभ' देखने को मिला, नेताओं और स्थानीय ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह दिखा, लेकिन इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए उम्मीद के मुताबिक नामांकन दाखिल नहीं हो पाए। इस स्थिति ने राज्य निर्वाचन आयोग और ग्रामीण लोकतंत्र के विशेषज्ञों को सकते में डाल दिया है, क्योंकि इन शुरुआती आंकड़ों से साफ संकेत मिल रहा है कि इस बार पंचायती राज व्यवस्था में बड़ी संख्या में पद रिक्त रह सकते हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अंकों की जुबानी, उदासीनता की कहानी: सदस्य पदों पर सन्नाटा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी प्रारंभिक आंकड़ों ने इस असमानता को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। नामांकन के पहले तीन दिनों में, चुनाव आयोग के समक्ष कुल 66,418 पदों के लिए केवल 32,239 नामांकन दाखिल हुए थे। यह अपने आप में एक बड़ा गैप दिखाता है, लेकिन जब हम इसे पदों के अनुसार देखते हैं तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। ग्राम प्रधान पद पर बंपर नामांकन: ग्राम प्रधान के कुल 7,499 पदों के लिए, पहले तीन दिनों में ही रिकॉर्ड तोड़ 15,917 नामांकन दर्ज हुए। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस प्रतिष्ठित पद को लेकर ग्रामीण आबादी में कितना जबरदस्त उत्साह और प्रतिस्पर्धा है। कई सीटों पर तो एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतरने को तैयार दिख रहे हैं। शनिवार को अंतिम दिन यह आंकड़ा और भी तेजी से बढ़ा, हालांकि खबर लिखे जाने तक आयोग द्वारा अंतिम और पूर्ण आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। प्रधान का पद गांव के मुखिया का होता है, जिसके पास विकास योजनाओं पर निर्णय लेने और करोड़ों के फंड्स का प्रबंधन करने का अधिकार होता है, शायद यही वजह है कि यह पद लोगों के लिए इतना आकर्षक है। ग्राम पंचायत सदस्य पद पर 'उदासीनता' का सन्नाटा: इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के कुल 55,587 पदों के लिए पहले तीन दिनों में मात्र 7,235 नामांकन ही आए। यह आंकड़ा बेहद निराशाजनक है, क्योंकि यह कुल पदों का 15% भी नहीं है। अंतिम दिन भी इस पद के लिए नामांकन को लेकर कोई खास उत्साह या भीड़ देखने को नहीं मिली, जो प्रधान पद के लिए उमड़ी भीड़ से बिल्कुल अलग था। यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए आमजन की रुचि अपेक्षा से कहीं अधिक कम है। कई वार्डों में तो एक भी नामांकन दाखिल नहीं हुआ है, जिससे ये सीटें सीधे तौर पर खाली रहने के कगार पर हैं। क्यों आई यह 'उदासीनता'? सत्ता-विहीन पदों का आकर्षण कम सवाल उठता है कि आखिर ग्रामीण लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई कहे जाने वाले ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के लिए इतनी उदासीनता क्यों है? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं: सत्ता और संसाधनों का अभाव: ग्राम प्रधान के पास सीधे तौर पर विकास कार्यों के लिए धन का आवंटन और निर्णय लेने की शक्ति होती है। इसके विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के पास न तो कोई बड़ा फंड होता है और न ही निर्णय लेने की सीधी शक्ति। उनका काम मुख्य रूप से ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेना और प्रधान के फैसलों पर मुहर लगाना होता है, जिससे यह पद 'सत्ता-विहीन' या कम प्रभावशाली माना जाता है। कम सामाजिक सम्मान: प्रधान पद की तुलना में ग्राम पंचायत सदस्य के पद को सामाजिक रूप से कम महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे लोग इस पद के लिए समय और धन खर्च करने को तैयार नहीं होते। जागरूकता की कमी: ग्रामीण आबादी में ग्राम पंचायत सदस्य के वास्तविक कर्तव्यों, अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण हो सकती है। अभियान का खर्च: भले ही यह एक छोटा पद हो, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए कुछ न्यूनतम खर्च तो आता ही है। जब पद में कोई सीधा लाभ या प्रतिष्ठा न हो, तो लोग उस पर पैसा खर्च करने से कतराते हैं। बढ़ती शहरीकरण की प्रवृत्ति: ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का शहरों की ओर पलायन भी एक कारण हो सकता है, जिससे सक्रिय युवा भागीदारी कम हो रही है। आगे की प्रक्रिया: जांच से मतदान तक का चुनावी कार्यक्रम नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग अब अगले चरण में प्रवेश करेगा। नामांकन पत्रों की जांच: 7 से 9 जुलाई तक राज्य निर्वाचन आयोग दोनों चरणों के लिए दाखिल हुए सभी नामांकन पत्रों की गहन जांच करेगा। इस दौरान यह देखा जाएगा कि सभी आवेदन वैध हैं और उम्मीदवारों ने नियमों का पालन किया है। नाम वापसी का अवसर: नामांकन पत्रों की जांच के बाद, इच्छुक उम्मीदवार 10 और 11 जुलाई को अपने नाम वापस ले सकेंगे। इसके बाद ही चुनाव मैदान में बचे उम्मीदवारों की अंतिम सूची स्पष्ट हो पाएगी। चुनाव चिह्न आवंटन: नाम वापसी के बाद, चुनाव मैदान में टिके उम्मीदवारों को उनके चुनाव चिह्न आवंटित किए जाएंगे। पहले चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 14 जुलाई दूसरे चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 18 जुलाई मतदान की तिथियां: पहले चरण का मतदान: 24 जुलाई दूसरे चरण का मतदान: 28 जुलाई परिणामों की घोषणा: दोनों चरणों के लिए डाले गए मतों की गणना के बाद, परिणामों की घोषणा 31 जुलाई को की जाएगी। लोकतंत्र पर सवाल और आयोग की चुनौती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान पद के लिए पर्याप्त नामांकन होना तो अच्छी बात है, लेकिन सदस्य पदों के लिए यह उदासीनता निश्चित रूप से चिंता का विषय है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर एक गहरी जागरूकता की कमी और राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है। अगर बड़ी संख्या में सदस्य पद खाली रह जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु संचालन और ग्रामीण स्तर पर प्रभावी प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा। आगामी दिनों में राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि इन रिक्त पदों पर पुनः चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए या किसी वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे नामित प्रतिनिधियों की व्यवस्था, यदि कानूनी ढांचा इसकी अनुमति देता है) पर विचार किया जाए। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि नाम वापसी के बाद उम्मीदवारों की अंतिम सूची में कितनी विविधता और वास्तविक प्रतिस्पर्धा नजर आती है। इस पूरी प्रक्रिया पर ग्रामीण विकास और लोकतांत्रिक सुदृढ़ता के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है।

उत्तराखंड में हड़कंप! नामांकन से पहले पंचायत चुनावों पर हाईकोर्ट ने लगाई ‘ब्रेक’, जानें क्यों अटकी पूरी प्रक्रिया?

देहरादून, 23 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर एक बड़ी खबर सामने आई है, जिसने पूरे राज्य में हड़कंप मचा दिया है। राज्य के बहुप्रतीक्षित पंचायत चुनावों पर हाईकोर्ट ने फिलहाल रोक लगा दी है। यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब राज्य निर्वाचन आयोग…

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देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का 'महाकुंभ' देखने को मिला, नेताओं और स्थानीय ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह दिखा, लेकिन इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए उम्मीद के मुताबिक नामांकन दाखिल नहीं हो पाए। इस स्थिति ने राज्य निर्वाचन आयोग और ग्रामीण लोकतंत्र के विशेषज्ञों को सकते में डाल दिया है, क्योंकि इन शुरुआती आंकड़ों से साफ संकेत मिल रहा है कि इस बार पंचायती राज व्यवस्था में बड़ी संख्या में पद रिक्त रह सकते हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अंकों की जुबानी, उदासीनता की कहानी: सदस्य पदों पर सन्नाटा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी प्रारंभिक आंकड़ों ने इस असमानता को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। नामांकन के पहले तीन दिनों में, चुनाव आयोग के समक्ष कुल 66,418 पदों के लिए केवल 32,239 नामांकन दाखिल हुए थे। यह अपने आप में एक बड़ा गैप दिखाता है, लेकिन जब हम इसे पदों के अनुसार देखते हैं तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। ग्राम प्रधान पद पर बंपर नामांकन: ग्राम प्रधान के कुल 7,499 पदों के लिए, पहले तीन दिनों में ही रिकॉर्ड तोड़ 15,917 नामांकन दर्ज हुए। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस प्रतिष्ठित पद को लेकर ग्रामीण आबादी में कितना जबरदस्त उत्साह और प्रतिस्पर्धा है। कई सीटों पर तो एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतरने को तैयार दिख रहे हैं। शनिवार को अंतिम दिन यह आंकड़ा और भी तेजी से बढ़ा, हालांकि खबर लिखे जाने तक आयोग द्वारा अंतिम और पूर्ण आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। प्रधान का पद गांव के मुखिया का होता है, जिसके पास विकास योजनाओं पर निर्णय लेने और करोड़ों के फंड्स का प्रबंधन करने का अधिकार होता है, शायद यही वजह है कि यह पद लोगों के लिए इतना आकर्षक है। ग्राम पंचायत सदस्य पद पर 'उदासीनता' का सन्नाटा: इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के कुल 55,587 पदों के लिए पहले तीन दिनों में मात्र 7,235 नामांकन ही आए। यह आंकड़ा बेहद निराशाजनक है, क्योंकि यह कुल पदों का 15% भी नहीं है। अंतिम दिन भी इस पद के लिए नामांकन को लेकर कोई खास उत्साह या भीड़ देखने को नहीं मिली, जो प्रधान पद के लिए उमड़ी भीड़ से बिल्कुल अलग था। यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए आमजन की रुचि अपेक्षा से कहीं अधिक कम है। कई वार्डों में तो एक भी नामांकन दाखिल नहीं हुआ है, जिससे ये सीटें सीधे तौर पर खाली रहने के कगार पर हैं। क्यों आई यह 'उदासीनता'? सत्ता-विहीन पदों का आकर्षण कम सवाल उठता है कि आखिर ग्रामीण लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई कहे जाने वाले ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के लिए इतनी उदासीनता क्यों है? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं: सत्ता और संसाधनों का अभाव: ग्राम प्रधान के पास सीधे तौर पर विकास कार्यों के लिए धन का आवंटन और निर्णय लेने की शक्ति होती है। इसके विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के पास न तो कोई बड़ा फंड होता है और न ही निर्णय लेने की सीधी शक्ति। उनका काम मुख्य रूप से ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेना और प्रधान के फैसलों पर मुहर लगाना होता है, जिससे यह पद 'सत्ता-विहीन' या कम प्रभावशाली माना जाता है। कम सामाजिक सम्मान: प्रधान पद की तुलना में ग्राम पंचायत सदस्य के पद को सामाजिक रूप से कम महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे लोग इस पद के लिए समय और धन खर्च करने को तैयार नहीं होते। जागरूकता की कमी: ग्रामीण आबादी में ग्राम पंचायत सदस्य के वास्तविक कर्तव्यों, अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण हो सकती है। अभियान का खर्च: भले ही यह एक छोटा पद हो, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए कुछ न्यूनतम खर्च तो आता ही है। जब पद में कोई सीधा लाभ या प्रतिष्ठा न हो, तो लोग उस पर पैसा खर्च करने से कतराते हैं। बढ़ती शहरीकरण की प्रवृत्ति: ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का शहरों की ओर पलायन भी एक कारण हो सकता है, जिससे सक्रिय युवा भागीदारी कम हो रही है। आगे की प्रक्रिया: जांच से मतदान तक का चुनावी कार्यक्रम नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग अब अगले चरण में प्रवेश करेगा। नामांकन पत्रों की जांच: 7 से 9 जुलाई तक राज्य निर्वाचन आयोग दोनों चरणों के लिए दाखिल हुए सभी नामांकन पत्रों की गहन जांच करेगा। इस दौरान यह देखा जाएगा कि सभी आवेदन वैध हैं और उम्मीदवारों ने नियमों का पालन किया है। नाम वापसी का अवसर: नामांकन पत्रों की जांच के बाद, इच्छुक उम्मीदवार 10 और 11 जुलाई को अपने नाम वापस ले सकेंगे। इसके बाद ही चुनाव मैदान में बचे उम्मीदवारों की अंतिम सूची स्पष्ट हो पाएगी। चुनाव चिह्न आवंटन: नाम वापसी के बाद, चुनाव मैदान में टिके उम्मीदवारों को उनके चुनाव चिह्न आवंटित किए जाएंगे। पहले चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 14 जुलाई दूसरे चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 18 जुलाई मतदान की तिथियां: पहले चरण का मतदान: 24 जुलाई दूसरे चरण का मतदान: 28 जुलाई परिणामों की घोषणा: दोनों चरणों के लिए डाले गए मतों की गणना के बाद, परिणामों की घोषणा 31 जुलाई को की जाएगी। लोकतंत्र पर सवाल और आयोग की चुनौती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान पद के लिए पर्याप्त नामांकन होना तो अच्छी बात है, लेकिन सदस्य पदों के लिए यह उदासीनता निश्चित रूप से चिंता का विषय है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर एक गहरी जागरूकता की कमी और राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है। अगर बड़ी संख्या में सदस्य पद खाली रह जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु संचालन और ग्रामीण स्तर पर प्रभावी प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा। आगामी दिनों में राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि इन रिक्त पदों पर पुनः चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए या किसी वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे नामित प्रतिनिधियों की व्यवस्था, यदि कानूनी ढांचा इसकी अनुमति देता है) पर विचार किया जाए। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि नाम वापसी के बाद उम्मीदवारों की अंतिम सूची में कितनी विविधता और वास्तविक प्रतिस्पर्धा नजर आती है। इस पूरी प्रक्रिया पर ग्रामीण विकास और लोकतांत्रिक सुदृढ़ता के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है।

बड़ी खबर! उत्तराखंड चुनाव आयोग ने जारी किया पूरा , त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव, कार्यक्रम: देखें आपके गांव में कब होगी वोटिंग और गिनती की तारीखें!

देहरादून, 22 जून, 2025(समय बोल रहा) – उत्तराखंड के ग्रामीण लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव, औपचारिक रूप से शुरू हो चुका है! राज्य निर्वाचन आयोग ने शनिवार को एक धमाकेदार प्रेसवार्ता आयोजित कर पूरे चुनाव कार्यक्रम का विस्तृत ऐलान कर दिया है। इस घोषणा के साथ ही, प्रदेश के 12 जिलों में…

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उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत देहरादून, 09 जून, 2025 (समय बोल रहा ) उत्तराखंड की त्रिस्तरीय पंचायतों (हरिद्वार को छोड़कर) में एक बड़ा प्रशासनिक बदलाव आया है। पूर्व में नियुक्त प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त होने और जुलाई में प्रस्तावित चुनावों में देरी के कारण, राज्य सरकार ने पंचायतों के सुचारू संचालन के लिए नए प्रशासकों की नियुक्ति की अधिसूचना जारी कर दी है। अब जिला पंचायतों की कमान जिलाधिकारी/जिला मजिस्ट्रेट संभालेंगे, क्षेत्र पंचायतों का जिम्मा उपजिलाधिकारी देखेंगे, और ग्राम पंचायतों में सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) प्रशासक होंगे। यह निर्णय तब लिया गया है जब वर्ष 2019 में गठित पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और नए चुनाव अभी संभव नहीं हो सके हैं। इस बदलाव का सीधा असर प्रदेश की लाखों ग्रामीण जनता पर पड़ेगा। कार्यकाल समाप्ति और चुनाव में देरी: क्यों पड़ी प्रशासकों की जरूरत? उत्तराखंड पंचायतीराज अधिनियम-2016 की धारा-130 (6) के तहत, वर्ष 2019 में गठित प्रदेश की त्रिस्तरीय पंचायतों (जनपद हरिद्वार को छोड़कर) का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। इन पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, शासन ने पूर्व में अधिसूचना संख्या-256316/XII(1)/2024-86(15)/2013/ई-68985 दिनांक 26.11.2024 और अन्य संबंधित अधिसूचनाओं के माध्यम से ग्राम पंचायतों, क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों के लिए प्रशासकों की नियुक्ति का अधिकार संबंधित जिलाधिकारियों को दिया था। ये प्रशासक कार्यकाल समाप्ति की तिथि से छह महीने तक या नई पंचायतों के गठन तक, जो भी पहले हो, के लिए नियुक्त किए गए थे। हालांकि, इन नियुक्त प्रशासकों का कार्यकाल भी अब समाप्त हो चुका है। ग्राम पंचायतों में 27 मई 2025 को, क्षेत्र पंचायतों में 29 मई 2025 को, और जिला पंचायतों में 01 जून 2025 को कार्यकाल समाप्त हो गया है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि "अति अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण" त्रिस्तरीय पंचायतों का सामान्य निर्वाचन, प्रशासकों के कार्यकाल समाप्ति की तिथि से पूर्व कराया जाना साध्य नहीं हो सका है। इसी अप्रत्याशित देरी के कारण, अब नई अंतरिम व्यवस्था लागू की गई है। नई प्रशासकीय व्यवस्था: कौन संभालेगा किसकी कमान? वर्तमान की "अपरिहार्य परिस्थिति" को देखते हुए, प्रदेश में जुलाई 2025 में प्रस्तावित आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (हरिद्वार को छोड़कर) प्रक्रिया संपन्न होने तक या नवीन पंचायतों के गठन तक, अथवा 31 जुलाई 2025 (जो भी पहले हो) तक, कार्यहित, जनहित और पंचायतों की प्रशासनिक व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए नए अधिकारियों को प्रशासक के रूप में अधिकृत किया गया है। यह निर्णय प्रमोद कुमार बिजलवान, समीक्षा अधिकारी, पंचायती राज विभाग द्वारा 09/06/2025 को जारी अधिसूचना (संख्या: 305002 जैनराज बिंदु-1 /XII(1)/2025/86(15)/2013/ई-68985) में विस्तृत रूप से बताया गया है। नई व्यवस्था के तहत, निम्नवत् अधिकारियों को प्रशासक की जिम्मेदारी सौंपी गई है: जिला पंचायतों में: संबंधित जिलाधिकारी / जिला मजिस्ट्रेट को जिला पंचायतों का प्रशासक नियुक्त किया गया है। यह दिखाता है कि जिला स्तर पर शासन ने सबसे उच्च अधिकारी पर भरोसा जताया है ताकि विकास कार्य और प्रशासनिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहे। क्षेत्र पंचायतों में: संबंधित उपजिलाधिकारी (अपनी क्षेत्राधिकारिता में) क्षेत्र पंचायतों का कार्यभार संभालेंगे। उपजिलाधिकारी की नियुक्ति से ब्लॉक स्तर पर प्रभावी निगरानी और निर्णय लेने की क्षमता बनी रहेगी। ग्राम पंचायतों में: संबंधित विकासखंड में तैनात सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) को ग्राम पंचायतों का प्रशासक नियुक्त किया गया है। यह पद ग्रामीण स्तर पर सीधे जनता से जुड़ा होता है और योजनाओं के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह व्यवस्था सुनिश्चित करेगी कि चुनावी प्रक्रिया पूरी होने और नई निर्वाचित पंचायतों के गठन तक ग्रामीण विकास कार्य और जन सेवाएं बाधित न हों। पुरानी शर्तों का यथावत् रहना और आगे की राह अधिसूचना में स्पष्ट किया गया है कि प्रदेश की त्रिस्तरीय पंचायतों (हरिद्वार को छोड़कर) में प्रशासक नियुक्त किए जाने संबंधी प्रस्तर-1 में उल्लिखित पूर्व निर्गत अधिसूचनाओं में निहित शेष शर्ते यथावत रहेंगी। इसका अर्थ है कि प्रशासकों के अधिकार और जिम्मेदारियां पूर्व में निर्धारित नियमों के अनुरूप ही होंगी। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था के सुचारू संचालन की आवश्यकता है। हरिद्वार जिले को इस व्यवस्था से बाहर रखा गया है, संभवतः वहां की चुनावी या प्रशासनिक स्थिति अलग होने के कारण। अब सभी की निगाहें जुलाई 2025 में होने वाले प्रस्तावित पंचायत चुनावों पर टिकी हैं, जो नई निर्वाचित पंचायतों को सत्ता में लाएंगे और ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को फिर से स्थापित करेंगे। इस बीच, नए प्रशासक जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने और विकास कार्यों को गति देने की चुनौती का सामना करेंगे।

उत्तराखंड में ‘प्रशासक राज’ का नया दौर: पंचायतों में बड़े बदलाव, अब ये अधिकारी संभालेंगे कमान! जानिए पूरी खबर

देहरादून, 09 जून, 2025 (समय बोल रहा ) उत्तराखंड की त्रिस्तरीय पंचायतों (हरिद्वार को छोड़कर) में एक बड़ा प्रशासनिक बदलाव आया है। पूर्व में नियुक्त प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त होने और जुलाई में प्रस्तावित चुनावों में देरी के कारण, राज्य सरकार ने पंचायतों के सुचारू संचालन के लिए नए प्रशासकों की नियुक्ति की अधिसूचना जारी…

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