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देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का 'महाकुंभ' देखने को मिला, नेताओं और स्थानीय ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह दिखा, लेकिन इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए उम्मीद के मुताबिक नामांकन दाखिल नहीं हो पाए। इस स्थिति ने राज्य निर्वाचन आयोग और ग्रामीण लोकतंत्र के विशेषज्ञों को सकते में डाल दिया है, क्योंकि इन शुरुआती आंकड़ों से साफ संकेत मिल रहा है कि इस बार पंचायती राज व्यवस्था में बड़ी संख्या में पद रिक्त रह सकते हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अंकों की जुबानी, उदासीनता की कहानी: सदस्य पदों पर सन्नाटा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी प्रारंभिक आंकड़ों ने इस असमानता को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। नामांकन के पहले तीन दिनों में, चुनाव आयोग के समक्ष कुल 66,418 पदों के लिए केवल 32,239 नामांकन दाखिल हुए थे। यह अपने आप में एक बड़ा गैप दिखाता है, लेकिन जब हम इसे पदों के अनुसार देखते हैं तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। ग्राम प्रधान पद पर बंपर नामांकन: ग्राम प्रधान के कुल 7,499 पदों के लिए, पहले तीन दिनों में ही रिकॉर्ड तोड़ 15,917 नामांकन दर्ज हुए। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस प्रतिष्ठित पद को लेकर ग्रामीण आबादी में कितना जबरदस्त उत्साह और प्रतिस्पर्धा है। कई सीटों पर तो एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतरने को तैयार दिख रहे हैं। शनिवार को अंतिम दिन यह आंकड़ा और भी तेजी से बढ़ा, हालांकि खबर लिखे जाने तक आयोग द्वारा अंतिम और पूर्ण आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। प्रधान का पद गांव के मुखिया का होता है, जिसके पास विकास योजनाओं पर निर्णय लेने और करोड़ों के फंड्स का प्रबंधन करने का अधिकार होता है, शायद यही वजह है कि यह पद लोगों के लिए इतना आकर्षक है। ग्राम पंचायत सदस्य पद पर 'उदासीनता' का सन्नाटा: इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के कुल 55,587 पदों के लिए पहले तीन दिनों में मात्र 7,235 नामांकन ही आए। यह आंकड़ा बेहद निराशाजनक है, क्योंकि यह कुल पदों का 15% भी नहीं है। अंतिम दिन भी इस पद के लिए नामांकन को लेकर कोई खास उत्साह या भीड़ देखने को नहीं मिली, जो प्रधान पद के लिए उमड़ी भीड़ से बिल्कुल अलग था। यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए आमजन की रुचि अपेक्षा से कहीं अधिक कम है। कई वार्डों में तो एक भी नामांकन दाखिल नहीं हुआ है, जिससे ये सीटें सीधे तौर पर खाली रहने के कगार पर हैं। क्यों आई यह 'उदासीनता'? सत्ता-विहीन पदों का आकर्षण कम सवाल उठता है कि आखिर ग्रामीण लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई कहे जाने वाले ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के लिए इतनी उदासीनता क्यों है? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं: सत्ता और संसाधनों का अभाव: ग्राम प्रधान के पास सीधे तौर पर विकास कार्यों के लिए धन का आवंटन और निर्णय लेने की शक्ति होती है। इसके विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के पास न तो कोई बड़ा फंड होता है और न ही निर्णय लेने की सीधी शक्ति। उनका काम मुख्य रूप से ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेना और प्रधान के फैसलों पर मुहर लगाना होता है, जिससे यह पद 'सत्ता-विहीन' या कम प्रभावशाली माना जाता है। कम सामाजिक सम्मान: प्रधान पद की तुलना में ग्राम पंचायत सदस्य के पद को सामाजिक रूप से कम महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे लोग इस पद के लिए समय और धन खर्च करने को तैयार नहीं होते। जागरूकता की कमी: ग्रामीण आबादी में ग्राम पंचायत सदस्य के वास्तविक कर्तव्यों, अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण हो सकती है। अभियान का खर्च: भले ही यह एक छोटा पद हो, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए कुछ न्यूनतम खर्च तो आता ही है। जब पद में कोई सीधा लाभ या प्रतिष्ठा न हो, तो लोग उस पर पैसा खर्च करने से कतराते हैं। बढ़ती शहरीकरण की प्रवृत्ति: ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का शहरों की ओर पलायन भी एक कारण हो सकता है, जिससे सक्रिय युवा भागीदारी कम हो रही है। आगे की प्रक्रिया: जांच से मतदान तक का चुनावी कार्यक्रम नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग अब अगले चरण में प्रवेश करेगा। नामांकन पत्रों की जांच: 7 से 9 जुलाई तक राज्य निर्वाचन आयोग दोनों चरणों के लिए दाखिल हुए सभी नामांकन पत्रों की गहन जांच करेगा। इस दौरान यह देखा जाएगा कि सभी आवेदन वैध हैं और उम्मीदवारों ने नियमों का पालन किया है। नाम वापसी का अवसर: नामांकन पत्रों की जांच के बाद, इच्छुक उम्मीदवार 10 और 11 जुलाई को अपने नाम वापस ले सकेंगे। इसके बाद ही चुनाव मैदान में बचे उम्मीदवारों की अंतिम सूची स्पष्ट हो पाएगी। चुनाव चिह्न आवंटन: नाम वापसी के बाद, चुनाव मैदान में टिके उम्मीदवारों को उनके चुनाव चिह्न आवंटित किए जाएंगे। पहले चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 14 जुलाई दूसरे चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 18 जुलाई मतदान की तिथियां: पहले चरण का मतदान: 24 जुलाई दूसरे चरण का मतदान: 28 जुलाई परिणामों की घोषणा: दोनों चरणों के लिए डाले गए मतों की गणना के बाद, परिणामों की घोषणा 31 जुलाई को की जाएगी। लोकतंत्र पर सवाल और आयोग की चुनौती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान पद के लिए पर्याप्त नामांकन होना तो अच्छी बात है, लेकिन सदस्य पदों के लिए यह उदासीनता निश्चित रूप से चिंता का विषय है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर एक गहरी जागरूकता की कमी और राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है। अगर बड़ी संख्या में सदस्य पद खाली रह जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु संचालन और ग्रामीण स्तर पर प्रभावी प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा। आगामी दिनों में राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि इन रिक्त पदों पर पुनः चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए या किसी वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे नामित प्रतिनिधियों की व्यवस्था, यदि कानूनी ढांचा इसकी अनुमति देता है) पर विचार किया जाए। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि नाम वापसी के बाद उम्मीदवारों की अंतिम सूची में कितनी विविधता और वास्तविक प्रतिस्पर्धा नजर आती है। इस पूरी प्रक्रिया पर ग्रामीण विकास और लोकतांत्रिक सुदृढ़ता के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है।

उत्तराखंड पंचायत चुनावों से हटा ग्रहण, हाईकोर्ट ने दी हरी झंडी; आयोग ने जारी किया ‘नया’ और ‘अंतिम’ कार्यक्रम, देखें आपकी वोटिंग-गिनती की तारीखें!

देहरादून, 28 जून, 2025 – (समय बोल रहा) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों पर छाया अनिश्चितता का बादल आखिरकार छंट गया है! मा० उच्च न्यायालय, उत्तराखंड, नैनीताल ने रिट याचिका में अपना स्थगनादेश समाप्त कर दिया है, जिसके तुरंत बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने भी सक्रियता दिखाते हुए पंचायत चुनावों का संशोधित और अंतिम…

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काशीपुर, 28 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – काशीपुर के टांडा चौराहे पर एक बार फिर एक भीषण सड़क हादसा हुआ है, जिसने एक युवा जिंदगी को असमय लील लिया। गुरुवार दोपहर करीब 2 बजे, रामनगर की ओर से काशीपुर आ रही एक तेज रफ्तार कार अनियंत्रित होकर सड़क के बीच बने डिवाइडर से टकरा गई। इस दर्दनाक हादसे में कार में सवार चार लोगों में से एक युवक की मौके पर ही मौत हो गई। यह दुर्घटना एक बार फिर टांडा चौराहे पर बने उस डिवाइडर पर सवाल खड़े कर रही है, जिसे स्थानीय लोग 'मौत का डिवाइडर' कहते हैं क्योंकि यह बनने के बाद से कई लोगों की जान ले चुका है। दोपहर में हुआ हादसा: तेज रफ्तार बनी काल यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना दिन के उजाले में तब घटी जब रामनगर-काशीपुर मार्ग पर वाहनों की सामान्य आवाजाही थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार, गुरुवार दोपहर लगभग 2 बजे, रामनगर की दिशा से काशीपुर की ओर एक तेज गति से आ रही कार काशीपुर के टांडा चौराहे पर पहुंचते ही अनियंत्रित हो गई। चालक वाहन पर नियंत्रण नहीं रख सका और कार सीधे सड़क के बीच बने डिवाइडर से जा टकराई। टक्कर इतनी भीषण थी कि कार का अगला हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया, और उसमें सवार लोगों को गंभीर चोटें आईं। हादसे की सूचना मिलते ही स्थानीय पुलिस और बचाव दल तुरंत मौके पर पहुंचे। उन्होंने देखा कि कार बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी थी और उसमें सवार चार लोगों में से एक व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो चुकी थी। अन्य घायलों को तुरंत नजदीकी अस्पताल पहुंचाया गया, जहां उनका उपचार जारी है। उनकी विस्तृत स्थिति के बारे में अभी पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है, लेकिन उन्हें भी गंभीर चोटें आने की आशंका है। पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है। मृतक की पहचान: मुरादाबाद का आदित्य (24) इस दर्दनाक हादसे में अपनी जान गंवाने वाले युवक की पहचान आदित्य (उम्र 24 वर्ष) के रूप में हुई है। वह मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश के निवासी श्री सत्येंद्र सिंह के पुत्र थे। आदित्य की असामयिक मृत्यु ने उनके परिवार और दोस्तों को गहरे सदमे में डाल दिया है। एक युवा और होनहार जीवन का सड़क हादसे में यूं समाप्त हो जाना बेहद दुखद है। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पंचनामा भरवाया और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है। उनके परिजनों को घटना की सूचना दे दी गई है, और वे काशीपुर के लिए रवाना हो चुके हैं। यह घटना एक बार फिर सड़क सुरक्षा के महत्व और वाहन चालकों द्वारा गति सीमा का पालन करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। दिन के समय भी अत्यधिक गति दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण बन सकती है। टांडा चौराहे का 'मौत का डिवाइडर': चिंता का सबब इस दुर्घटना ने एक बार फिर काशीपुर के टांडा चौराहे पर बने डिवाइडर की डिजाइन और सुरक्षा मानकों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय लोगों और सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह डिवाइडर बनने के बाद से ही हादसों का सबब बना हुआ है। कई बार इसे 'मौत का डिवाइडर' या 'ब्लैक स्पॉट' भी कहा जाता है, क्योंकि यहां पहले भी कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यह चौराहा काशीपुर और रामनगर के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है, और यहां की भौगोलिक स्थिति तथा वाहनों की तेज गति इसे और खतरनाक बना देती है। जानकारों के अनुसार, इस डिवाइडर की बनावट में कुछ खामियां हो सकती हैं। जैसे: अस्पष्ट साइनेज: डिवाइडर से पहले पर्याप्त चेतावनी संकेत या रिफ्लेक्टिव मार्कर न होने से चालक को अचानक इसका सामना करना पड़ता है, खासकर जब वे तेज़ गति में हों। डिजाइन संबंधी मुद्दे: कुछ डिवाइडर ऐसे बनाए जाते हैं जिनकी शुरुआती ऊंचाई या ढलान ठीक नहीं होती, जिससे तेज रफ्तार वाहनों के टकराने की आशंका बढ़ जाती है। चालकों की लापरवाही: ओवरस्पीडिंग, लापरवाही से ड्राइविंग, या ध्यान भंग होना भी ऐसे हादसों को जन्म देता है। स्थानीय प्रशासन और लोक निर्माण विभाग को इस डिवाइडर की डिजाइन और सुरक्षा उपायों की तत्काल समीक्षा करने की आवश्यकता है। यहां स्पष्ट चेतावनी बोर्ड, रिफ्लेक्टर और गति नियंत्रित करने वाले उपाय जैसे स्पीड ब्रेकर या रंबल स्ट्रिप्स लगाने अनिवार्य हो गए हैं, ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोका जा सके और यह चौराहा लोगों के लिए सुरक्षित बन सके। पुलिस जांच जारी: सड़क सुरक्षा पर गंभीर मंथन की जरूरत हादसे की सूचना मिलते ही पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की और मौके पर पहुंचकर बचाव कार्य शुरू किया। पुलिस ने क्षतिग्रस्त कार को हटाकर मार्ग को सामान्य किया और घटना के संबंध में आवश्यक साक्ष्य जुटाए। पुलिस ने आवश्यक धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है और आगे की जांच जारी है। दुर्घटना कैसे हुई, कहीं चालक नशे में तो नहीं था, या वाहन की गति क्या थी, इन सभी पहलुओं की गहन जांच की जा रही है। जरूरत पड़ने पर तकनीकी विशेषज्ञों की मदद भी ली जाएगी। यह दुखद घटना उत्तराखंड में बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं की ओर भी ध्यान खींचती है। सड़कों की स्थिति और चालकों की लापरवाही, दोनों ही दुर्घटनाओं का कारण बन रही हैं। सरकार और संबंधित विभागों को ब्लैक स्पॉट की पहचान करने, सड़कों के बुनियादी ढांचे में सुधार करने, और सड़क सुरक्षा जागरूकता अभियानों को तेज करने की आवश्यकता है। वाहन चालकों को भी वाहन चलाते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, गति सीमा का पालन करना चाहिए, और थकान या नशे की हालत में वाहन चलाने से बचना चाहिए। आदित्य की मृत्यु एक दुखद रिमाइंडर है कि सड़क पर एक छोटी सी चूक या बुनियादी ढांचे की खामी कितनी भारी पड़ सकती है। इस घटना से सबक लेकर टांडा चौराहे पर सुरक्षा उपायों को तत्काल मजबूत करने की उम्मीद की जा रही है, ताकि यह 'मौत का डिवाइडर' फिर किसी की जान न ले सके।

रामनगर मे टांडा चौराहे पर ‘मौत के डिवाइडर’ से टकराई कार, काशीपुर की ओर से आ रहे 24 वर्षीय युवक की मौत

रामनगर 28 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – रामनगर के टांडा चौराहे पर एक बार फिर एक भीषण सड़क हादसा हुआ है, जिसने एक युवा जिंदगी को असमय लील लिया। गुरुवार दोपहर करीब 2 बजे, काशीपुर की ओर से रामनगर आ रही एक तेज रफ्तार कार अनियंत्रित होकर सड़क के बीच बने डिवाइडर…

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काशीपुर, 25 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक, 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर आज काशीपुर में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। गौतमी हाईट्स होटल में आयोजित इस कार्यक्रम में देश और उत्तराखंड के लोकतंत्र प्रेमियों ने एकजुट होकर आपातकाल के दमनकारी प्रभावों को याद किया और भविष्य में लोकतंत्र की रक्षा के लिए सजग रहने का सामूहिक संकल्प दोहराया। वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि यह दिन केवल स्मरण का नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए निरंतर सजग रहने का संकल्प दिवस है। मुख्य अतिथि अजय भट्ट: "आपातकाल देश की आत्मा पर हमला था" कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री एवं नैनीताल-ऊधमसिंह नगर के सांसद श्री अजय भट्ट उपस्थित रहे। अपने संबोधन में उन्होंने आपातकाल के दौर को याद करते हुए उसे भारतीय इतिहास का एक दुखद और चुनौतीपूर्ण अध्याय बताया। श्री भट्ट ने जोर देते हुए कहा, "आपातकाल देश की आत्मा पर हमला था, जिसे देशवासियों की दृढ़ इच्छाशक्ति और संघर्ष ने पीछे धकेला।" उन्होंने बताया कि कैसे उस दौरान नागरिक अधिकारों का हनन किया गया, प्रेस की स्वतंत्रता छीनी गई और राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाल दिया गया था। भट्ट ने उन गुमनाम नायकों को भी याद किया जिन्होंने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया और लोकतंत्र की बहाली के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। उन्होंने वर्तमान पीढ़ी से आह्वान किया कि वे आपातकाल के इतिहास से सबक लें और भविष्य में ऐसी किसी भी स्थिति को पनपने न दें, जो लोकतंत्र के मूल्यों को कमजोर करती हो। उनका यह संबोधन लोकतंत्र के प्रति गहरी निष्ठा और उसकी रक्षा के संकल्प को दर्शाता था। मनोज पाल: "वर्तमान पीढ़ी को आपातकाल की सच्चाई बताना आवश्यक" कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय जनता पार्टी के ऊधमसिंह नगर के जिलाध्यक्ष श्री मनोज पाल ने की। अपने प्रभावशाली संबोधन में उन्होंने आपातकाल के दौरान की सच्चाई को वर्तमान पीढ़ी तक पहुंचाने की महत्ता पर जोर दिया। श्री पाल ने कहा, "आपातकाल की सच्चाई को वर्तमान पीढ़ी तक पहुंचाना आवश्यक है ताकि वह जान सकें कि लोकतंत्र कितने संघर्षों से मिला है।" उन्होंने बताया कि कैसे एक लोकतांत्रिक देश में संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था और आम नागरिकों को भय के माहौल में जीना पड़ा था। मनोज पाल ने युवाओं से आग्रह किया कि वे इतिहास को समझें, लोकतंत्र के महत्व को पहचानें और उसे किसी भी कीमत पर कमजोर न पड़ने दें। उन्होंने कहा कि यह हमारा सामूहिक दायित्व है कि हम उन संघर्षों को याद रखें जिनके बल पर हमें यह स्वतंत्र और लोकतांत्रिक व्यवस्था मिली है, और यह सुनिश्चित करें कि भविष्य में ऐसी तानाशाही प्रवृत्तियां कभी सिर न उठा पाएं। प्रमुख नेताओं व जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति ने बढ़ाया गरिमा इस महत्वपूर्ण अवसर पर बड़ी संख्या में गणमान्य लोग, नेता और जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे, जिन्होंने कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाया और लोकतंत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। उपस्थित प्रमुख व्यक्तियों में शामिल थे: काशीपुर विधायक श्री त्रिलोक सिंह चीमा काशीपुर मेयर श्री दीपक बाली पीसीयू अध्यक्ष श्री राम मल्होत्रा पूर्व विधायक डॉ. शैलेन्द्र मोहन सिंघल प्रदेश मंत्री श्री गुरविंदर सिंह चंडोक गन्ना राज्य मंत्री श्री मनजीत सिंह राजू पूर्व प्रदेश मंत्री श्रीमती सीमा चौहान निवर्तमान जिला महामंत्री श्री मोहन बिष्ट निवर्तमान जिला महामंत्री डॉ. सुदेश मंडल अध्यक्ष श्री राजकुमार गुंबर मंडल अध्यक्ष श्री पंकज छाबड़ा श्री भास्कर तिवारी पार्षद श्रीमती बिना नेगी पार्षद श्रीमती कल्पना राणा पार्षद श्री जसवीर सिंह सैनी इन सभी नेताओं और जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति ने इस बात को बल दिया कि लोकतंत्र की रक्षा और आपातकाल जैसे काले अध्याय को याद रखना किसी एक दल या व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरे समाज का सामूहिक कर्तव्य है। लोकतंत्र की रक्षा का संकल्प दिवस कार्यक्रम में उपस्थित सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि 25 जून का दिन केवल इतिहास के एक काले अध्याय को स्मरण करने का नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की रक्षा के लिए सजग रहने का संकल्प दिवस है। उन्होंने कहा कि नागरिकों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहना होगा, और किसी भी ऐसी शक्ति को पनपने नहीं देना होगा जो लोकतांत्रिक संस्थाओं और मूल्यों को कमजोर करना चाहती हो। वक्ताओं ने प्रेस की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों के महत्व पर विशेष जोर दिया। उन्होंने कहा कि आपातकाल ने हमें सिखाया कि लोकतंत्र कितना नाजुक हो सकता है और इसे बनाए रखने के लिए निरंतर चौकसी की आवश्यकता होती है। यह कार्यक्रम एक मजबूत संदेश के साथ संपन्न हुआ कि भारतीय समाज अपने लोकतांत्रिक आदर्शों के लिए हमेशा खड़ा रहेगा और किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए एकजुट रहेगा। इस आयोजन ने न केवल 50 साल पुरानी घटना को याद किया, बल्कि भविष्य के लिए लोकतंत्र को मजबूत करने की प्रेरणा

आपातकाल के 50 साल: काशीपुर में अजय भट्ट बोले- ‘ये देश की आत्मा पर हमला था’; नई पीढ़ी के लिए अहम संदेश

काशीपुर, 25 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक, 25 जून 1975 को लगाए गए आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर आज काशीपुर में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। गौतमी हाईट्स होटल में आयोजित इस कार्यक्रम में देश और उत्तराखंड के लोकतंत्र…

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काशीपुर, 27 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – काशीपुर में अवैध शराब के खिलाफ पैगा चौकी पुलिस ने एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया है। गुरुवार की देर रात गश्त के दौरान पुलिस टीम ने एक व्यक्ति को 25 लीटर कच्ची शराब के साथ रंगे हाथों गिरफ्तार किया है। आरोपी की पहचान अजय सिंह के रूप में हुई है, जिसके खिलाफ आबकारी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। इस गिरफ्तारी से इलाके में अवैध शराब के धंधे में लिप्त लोगों में हड़कंप मच गया है, और पुलिस की इस कार्रवाई को आम जनता द्वारा सराहा जा रहा है। मुखबिर की सूचना पर पुलिस की ताबड़तोड़ कार्रवाई यह पूरा मामला गुरुवार रात का है, जब पैगा चौकी प्रभारी एसआई दीवान सिंह बिष्ट अपनी टीम के साथ क्षेत्र में नियमित गश्त पर थे। पुलिस टीम लगातार क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखने और अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए मुस्तैदी से काम कर रही थी। इसी दौरान, उन्हें एक विश्वसनीय मुखबिर से गुप्त सूचना मिली। मुखबिर ने पुलिस को बताया कि आयुर्वेद अस्पताल के पास स्थित तिराहे पर एक व्यक्ति खुलेआम कच्ची शराब बेच रहा है, जिससे इलाके का माहौल खराब हो रहा है और युवा पीढ़ी गलत रास्ते पर जा सकती है। सूचना की गंभीरता को समझते हुए, चौकी प्रभारी दीवान सिंह बिष्ट ने बिना देर किए अपनी टीम को अलर्ट किया। टीम ने तुरंत योजना बनाई और मुखबिर द्वारा बताए गए स्थान की ओर तेजी से रवाना हो गई। मौके पर पहुंचकर पुलिस टीम ने देखा कि आयुर्वेद अस्पताल के तिराहे के पास वाकई एक व्यक्ति कच्ची शराब बेचते हुए मौजूद था। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए उसे चारों ओर से घेर लिया और धर दबोचा। आरोपी को पकड़ने के बाद, पुलिस टीम ने उसकी तलाशी ली। तलाशी के दौरान, पुलिस को उसके कब्जे से 25 लीटर कच्ची शराब बरामद हुई, जिसे वह छोटे-छोटे पैकेटों में भरकर बेचने की फिराक में था। अवैध शराब का धंधा: समाज के लिए बड़ा खतरा अवैध कच्ची शराब का निर्माण और उसकी बिक्री समाज के लिए एक गंभीर खतरा है। यह न केवल सरकार को राजस्व का नुकसान पहुंचाता है, बल्कि इससे कई सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। अक्सर यह कच्ची शराब बिना किसी गुणवत्ता नियंत्रण के तैयार की जाती है, जिसमें हानिकारक रसायन मिले होते हैं। ऐसे में, इसका सेवन करने वाले लोगों के स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचता है, और कई बार तो जानलेवा साबित होता है। कच्ची शराब के सेवन से लीवर की बीमारी, अंधापन और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है। इसके अलावा, अवैध शराब का धंधा अक्सर अन्य आपराधिक गतिविधियों से भी जुड़ा होता है। इससे इलाके में अपराध दर बढ़ सकती है, कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है, और सामाजिक अशांति फैल सकती है। ऐसे धंधे अक्सर युवाओं को नशे की लत में धकेलते हैं, जिससे उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। पैगा पुलिस द्वारा की गई यह कार्रवाई समाज में इन बुराइयों पर अंकुश लगाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आबकारी अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई पकड़े गए आरोपी अजय सिंह के खिलाफ पुलिस ने आबकारी अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है। आबकारी अधिनियम शराब और अन्य नशीले पदार्थों के निर्माण, बिक्री, परिवहन और कब्जे को विनियमित करने के लिए बनाया गया है। अवैध रूप से शराब का उत्पादन या बिक्री करना इस अधिनियम के तहत एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। पुलिस ने बरामद की गई 25 लीटर कच्ची शराब को जब्त कर लिया है और उसे आगे की जांच के लिए भेजा गया है। पुलिस यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही है कि अजय सिंह यह कच्ची शराब कहां से ला रहा था, और इस धंधे में उसके साथ और कौन-कौन लोग शामिल हैं। इस मामले में एक विस्तृत जांच की जाएगी ताकि इस पूरे नेटवर्क को ध्वस्त किया जा सके। पुलिस की मुस्तैदी और भविष्य की कार्रवाई काशीपुर में पैगा चौकी पुलिस की यह त्वरित और प्रभावी कार्रवाई उनकी मुस्तैदी और अपराधों के प्रति जीरो-टॉलरेंस की नीति को दर्शाती है। पुलिस लगातार ऐसे असामाजिक तत्वों पर नकेल कसने के लिए अभियान चला रही है, जो अवैध धंधों से समाज में जहर घोलते हैं। पुलिस अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि अवैध शराब के खिलाफ यह अभियान जारी रहेगा और ऐसे किसी भी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा जो इस तरह की गतिविधियों में लिप्त पाया जाएगा। इस गिरफ्तारी से यह संदेश गया है कि कानून तोड़ने वालों को बख्शा नहीं जाएगा और पुलिस हर हाल में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। आरोपी अजय सिंह को अब न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाएगा, जहां से उसके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। यह उम्मीद की जाती है कि इस तरह की कार्रवाइयां अवैध शराब के कारोबार पर लगाम कसने और समाज में शांति व सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक होंगी

काशीपुर बड़ी खबर! पैगा पुलिस ने दबोचा शराब तस्कर, 25 लीटर कच्ची शराब के साथ ‘अजय सिंह’ गिरफ्तार, पूरे इलाके में हड़कंप

काशीपुर, 27 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – काशीपुर में अवैध शराब के खिलाफ पैगा चौकी पुलिस ने एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया है। गुरुवार की देर रात गश्त के दौरान पुलिस टीम ने एक व्यक्ति को 25 लीटर कच्ची शराब के साथ रंगे हाथों गिरफ्तार किया है। आरोपी की पहचान अजय…

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देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का 'महाकुंभ' देखने को मिला, नेताओं और स्थानीय ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह दिखा, लेकिन इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए उम्मीद के मुताबिक नामांकन दाखिल नहीं हो पाए। इस स्थिति ने राज्य निर्वाचन आयोग और ग्रामीण लोकतंत्र के विशेषज्ञों को सकते में डाल दिया है, क्योंकि इन शुरुआती आंकड़ों से साफ संकेत मिल रहा है कि इस बार पंचायती राज व्यवस्था में बड़ी संख्या में पद रिक्त रह सकते हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अंकों की जुबानी, उदासीनता की कहानी: सदस्य पदों पर सन्नाटा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी प्रारंभिक आंकड़ों ने इस असमानता को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। नामांकन के पहले तीन दिनों में, चुनाव आयोग के समक्ष कुल 66,418 पदों के लिए केवल 32,239 नामांकन दाखिल हुए थे। यह अपने आप में एक बड़ा गैप दिखाता है, लेकिन जब हम इसे पदों के अनुसार देखते हैं तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। ग्राम प्रधान पद पर बंपर नामांकन: ग्राम प्रधान के कुल 7,499 पदों के लिए, पहले तीन दिनों में ही रिकॉर्ड तोड़ 15,917 नामांकन दर्ज हुए। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस प्रतिष्ठित पद को लेकर ग्रामीण आबादी में कितना जबरदस्त उत्साह और प्रतिस्पर्धा है। कई सीटों पर तो एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतरने को तैयार दिख रहे हैं। शनिवार को अंतिम दिन यह आंकड़ा और भी तेजी से बढ़ा, हालांकि खबर लिखे जाने तक आयोग द्वारा अंतिम और पूर्ण आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। प्रधान का पद गांव के मुखिया का होता है, जिसके पास विकास योजनाओं पर निर्णय लेने और करोड़ों के फंड्स का प्रबंधन करने का अधिकार होता है, शायद यही वजह है कि यह पद लोगों के लिए इतना आकर्षक है। ग्राम पंचायत सदस्य पद पर 'उदासीनता' का सन्नाटा: इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के कुल 55,587 पदों के लिए पहले तीन दिनों में मात्र 7,235 नामांकन ही आए। यह आंकड़ा बेहद निराशाजनक है, क्योंकि यह कुल पदों का 15% भी नहीं है। अंतिम दिन भी इस पद के लिए नामांकन को लेकर कोई खास उत्साह या भीड़ देखने को नहीं मिली, जो प्रधान पद के लिए उमड़ी भीड़ से बिल्कुल अलग था। यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए आमजन की रुचि अपेक्षा से कहीं अधिक कम है। कई वार्डों में तो एक भी नामांकन दाखिल नहीं हुआ है, जिससे ये सीटें सीधे तौर पर खाली रहने के कगार पर हैं। क्यों आई यह 'उदासीनता'? सत्ता-विहीन पदों का आकर्षण कम सवाल उठता है कि आखिर ग्रामीण लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई कहे जाने वाले ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के लिए इतनी उदासीनता क्यों है? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं: सत्ता और संसाधनों का अभाव: ग्राम प्रधान के पास सीधे तौर पर विकास कार्यों के लिए धन का आवंटन और निर्णय लेने की शक्ति होती है। इसके विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के पास न तो कोई बड़ा फंड होता है और न ही निर्णय लेने की सीधी शक्ति। उनका काम मुख्य रूप से ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेना और प्रधान के फैसलों पर मुहर लगाना होता है, जिससे यह पद 'सत्ता-विहीन' या कम प्रभावशाली माना जाता है। कम सामाजिक सम्मान: प्रधान पद की तुलना में ग्राम पंचायत सदस्य के पद को सामाजिक रूप से कम महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे लोग इस पद के लिए समय और धन खर्च करने को तैयार नहीं होते। जागरूकता की कमी: ग्रामीण आबादी में ग्राम पंचायत सदस्य के वास्तविक कर्तव्यों, अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण हो सकती है। अभियान का खर्च: भले ही यह एक छोटा पद हो, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए कुछ न्यूनतम खर्च तो आता ही है। जब पद में कोई सीधा लाभ या प्रतिष्ठा न हो, तो लोग उस पर पैसा खर्च करने से कतराते हैं। बढ़ती शहरीकरण की प्रवृत्ति: ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का शहरों की ओर पलायन भी एक कारण हो सकता है, जिससे सक्रिय युवा भागीदारी कम हो रही है। आगे की प्रक्रिया: जांच से मतदान तक का चुनावी कार्यक्रम नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग अब अगले चरण में प्रवेश करेगा। नामांकन पत्रों की जांच: 7 से 9 जुलाई तक राज्य निर्वाचन आयोग दोनों चरणों के लिए दाखिल हुए सभी नामांकन पत्रों की गहन जांच करेगा। इस दौरान यह देखा जाएगा कि सभी आवेदन वैध हैं और उम्मीदवारों ने नियमों का पालन किया है। नाम वापसी का अवसर: नामांकन पत्रों की जांच के बाद, इच्छुक उम्मीदवार 10 और 11 जुलाई को अपने नाम वापस ले सकेंगे। इसके बाद ही चुनाव मैदान में बचे उम्मीदवारों की अंतिम सूची स्पष्ट हो पाएगी। चुनाव चिह्न आवंटन: नाम वापसी के बाद, चुनाव मैदान में टिके उम्मीदवारों को उनके चुनाव चिह्न आवंटित किए जाएंगे। पहले चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 14 जुलाई दूसरे चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 18 जुलाई मतदान की तिथियां: पहले चरण का मतदान: 24 जुलाई दूसरे चरण का मतदान: 28 जुलाई परिणामों की घोषणा: दोनों चरणों के लिए डाले गए मतों की गणना के बाद, परिणामों की घोषणा 31 जुलाई को की जाएगी। लोकतंत्र पर सवाल और आयोग की चुनौती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान पद के लिए पर्याप्त नामांकन होना तो अच्छी बात है, लेकिन सदस्य पदों के लिए यह उदासीनता निश्चित रूप से चिंता का विषय है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर एक गहरी जागरूकता की कमी और राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है। अगर बड़ी संख्या में सदस्य पद खाली रह जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु संचालन और ग्रामीण स्तर पर प्रभावी प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा। आगामी दिनों में राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि इन रिक्त पदों पर पुनः चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए या किसी वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे नामित प्रतिनिधियों की व्यवस्था, यदि कानूनी ढांचा इसकी अनुमति देता है) पर विचार किया जाए। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि नाम वापसी के बाद उम्मीदवारों की अंतिम सूची में कितनी विविधता और वास्तविक प्रतिस्पर्धा नजर आती है। इस पूरी प्रक्रिया पर ग्रामीण विकास और लोकतांत्रिक सुदृढ़ता के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है।

उत्तराखंड में हड़कंप! नामांकन से पहले पंचायत चुनावों पर हाईकोर्ट ने लगाई ‘ब्रेक’, जानें क्यों अटकी पूरी प्रक्रिया?

देहरादून, 23 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों को लेकर एक बड़ी खबर सामने आई है, जिसने पूरे राज्य में हड़कंप मचा दिया है। राज्य के बहुप्रतीक्षित पंचायत चुनावों पर हाईकोर्ट ने फिलहाल रोक लगा दी है। यह फैसला ऐसे समय में आया है, जब राज्य निर्वाचन आयोग…

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काशीपुर, 21 जून, 2025 (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में मजहबी सिख समुदाय के सशक्तिकरण और एकजुटता की दिशा में आज एक नया अध्याय जुड़ गया। काशीपुर में उत्तराखंड प्रदेश मजहबी सिख महासभा की विधिवत स्थापना की गई, जिसके साथ ही संगठन की पहली बैठक में अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की नियुक्ति भी की गई। इस ऐतिहासिक अवसर पर, सर्वसम्मति से चरणजीत सिंह संजोता को महासभा का पहला अध्यक्ष चुना गया। यह पहल राज्य भर के मजहबी सिख समुदाय को एक मजबूत मंच प्रदान करेगी, जिससे उनके सामाजिक और आर्थिक हितों की रक्षा की जा सकेगी। महासभा की नींव: समुदाय की एकता का प्रतीक उत्तराखंड प्रदेश मजहबी सिख महासभा की स्थापना एक लंबे समय से महसूस की जा रही आवश्यकता का परिणाम है। मजहबी सिख समुदाय, जो राज्य के विभिन्न हिस्सों में निवास करता है, को अक्सर अपनी विशिष्ट पहचान और जरूरतों को सामने रखने के लिए एक संगठित मंच की कमी महसूस होती थी। आज काशीपुर में इस महासभा की नींव रखे जाने के साथ, समुदाय ने अपनी एकता और सामूहिक शक्ति का प्रदर्शन किया है। इस स्थापना बैठक के लिए एक निश्चित तिथि निर्धारित की गई थी, जिसके चलते राज्य के कोने-कोने से मजहबी सिख समाज के लोग बड़ी संख्या में काशीपुर पहुंचे। बैठक में समुदाय के भविष्य और उसके उत्थान को लेकर गहन विचार-विमर्श किया गया। इस महासभा का प्राथमिक उद्देश्य मजहबी सिख समुदाय के सभी वर्गों को एक साथ लाना है। यह संगठन समुदाय के भीतर आपसी सहयोग, भाईचारे और समझ को बढ़ावा देगा। साथ ही, यह एक ऐसे सशक्त मंच के रूप में कार्य करेगा जो समुदाय की आवाज को सरकारी स्तर पर और समाज के अन्य वर्गों के सामने प्रभावी ढंग से रख सके। इस स्थापना से समुदाय को अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और आने वाली पीढ़ियों में मूल्यों को स्थापित करने में भी मदद मिलेगी। नेतृत्व का चयन: प्रदेश अध्यक्ष से लेकर सचिव तक, ये हैं मुख्य पदाधिकारी महासभा की स्थापना के साथ ही, आज की बैठक में संगठन के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां भी की गईं। अध्यक्ष से लेकर सचिव तक, सभी पदाधिकारियों का चयन सर्वसम्मति से हुआ, जो समुदाय के भीतर मौजूद एकता को दर्शाता है। उत्तराखंड प्रदेश मजहबी सिख महासभा के नव नियुक्त पदाधिकारी इस प्रकार हैं: प्रदेश अध्यक्ष: चरनजीत सिंह संजोता उपाध्यक्ष: हरनेक सिंह कोषाध्यक्ष: जरनैल सिंह महासचिव: रिंकू बाबा सचिव: लाभ सिंह इन पदाधिकारियों के चुनाव से समुदाय में उत्साह का माहौल है। यह आशा की जा रही है कि यह सशक्त नेतृत्व महासभा को उसके उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त करने में सफल बनाएगा। अध्यक्ष चरणजीत सिंह संजोता का संकल्प: "तन, मन, धन से साथ रहूंगा" अध्यक्ष चुने जाने के बाद, चरणजीत सिंह संजोता ने महासभा के सभी सदस्यों और समुदाय के लोगों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि उनके समाज के लोगों ने उन्हें यह अध्यक्ष का दर्जा दिया है, और वह इस पर खरा उतरने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। संजोता ने अपने संबोधन में मजहबी सिख समुदाय के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता व्यक्त की। उन्होंने दृढ़ संकल्प के साथ कहा, "मैं मजहबी समाज के सिखों के लिए सदैव तत्पर रहूंगा। जो भी मजहबी समाज आर्थिक रूप से कमजोर है, मैं उसके साथ तन, मन और धन से खड़ा रहूंगा।" यह कथन उनके नेतृत्व की दिशा और प्राथमिकताओं को स्पष्ट करता है। संजोता ने जोर दिया कि महासभा विशेष रूप से समुदाय के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की सहायता के लिए काम करेगी। इसमें सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाना, स्वरोजगार के अवसर पैदा करना, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना शामिल होगा। उनका लक्ष्य मजहबी सिख समुदाय को सामाजिक और आर्थिक रूप से और अधिक मजबूत बनाना है, ताकि वे समाज की मुख्यधारा में सशक्त रूप से शामिल हो सकें। प्रमुख सिख भाई रहे उपस्थित: समुदाय की एकजुटता का प्रदर्शन इस ऐतिहासिक बैठक में मजहबी सिख समाज के अनेक गणमान्य व्यक्ति और भाई उपस्थित थे, जिन्होंने इस नई पहल का समर्थन किया। उपस्थित लोगों में रणजीत सिंह, गुरमीत सिंह, लाभ सिंह, कर्म सिंह, धर्मेन्द्र सिंह, रेशम सिंह, गुरभजन सिंह, और सुखविंदर सिंह जैसे कई प्रमुख सिख भाई शामिल थे। विभिन्न क्षेत्रों से आए इन प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने महासभा की व्यापक पहुंच और समुदाय के भीतर इसकी स्वीकार्यता को दर्शाया। सभी ने मिलकर इस नए संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। महासभा के प्रमुख उद्देश्य: आर्थिक सहायता और सरकारी योजनाओं का लाभ उत्तराखंड प्रदेश मजहबी सिख महासभा की स्थापना का मुख्य उद्देश्य मजहबी सिख समुदाय के समग्र विकास को सुनिश्चित करना है। बैठक में इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ समुदाय के लोगों तक कैसे पहुंचाया जाए। महासभा इन योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाने, पात्र व्यक्तियों की पहचान करने और उन्हें आवेदन प्रक्रिया में सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसके अतिरिक्त, महासभा आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को प्रत्यक्ष सहायता प्रदान करने के तरीके भी तलाशेगी। इसमें छोटे व्यवसायों के लिए सहयोग, शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति, स्वास्थ्य आपात स्थितियों में मदद, और कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से रोजगार के अवसर बढ़ाना शामिल हो सकता है। महासभा सामाजिक एकजुटता बढ़ाने के लिए विभिन्न सामुदायिक कार्यक्रम भी आयोजित करेगी, जिससे आपसी भाईचारा मजबूत हो और समुदाय के भीतर एक सकारात्मक वातावरण बने। आज की यह बैठक केवल एक औपचारिक शुरुआत नहीं है, बल्कि उत्तराखंड के मजहबी सिख समुदाय के लिए एक नए युग की शुरुआत है। चरणजीत सिंह संजोता के सक्षम नेतृत्व में, और अन्य पदाधिकारियों व समुदाय के सहयोग से, यह महासभा आने वाले समय में समुदाय के हितों की रक्षा और उनके उत्थान के

काशीपुर में ऐतिहासिक पहल: उत्तराखंड प्रदेश मजहबी सिख महासभा की स्थापना, चरणजीत सिंह संजोता बने पहले अध्यक्ष

काशीपुर, 21 जून, 2025 (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में मजहबी सिख समुदाय के सशक्तिकरण और एकजुटता की दिशा में आज एक नया अध्याय जुड़ गया। काशीपुर में उत्तराखंड प्रदेश मजहबी सिख महासभा की विधिवत स्थापना की गई, जिसके साथ ही संगठन की पहली बैठक में अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की नियुक्ति…

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देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का 'महाकुंभ' देखने को मिला, नेताओं और स्थानीय ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह दिखा, लेकिन इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए उम्मीद के मुताबिक नामांकन दाखिल नहीं हो पाए। इस स्थिति ने राज्य निर्वाचन आयोग और ग्रामीण लोकतंत्र के विशेषज्ञों को सकते में डाल दिया है, क्योंकि इन शुरुआती आंकड़ों से साफ संकेत मिल रहा है कि इस बार पंचायती राज व्यवस्था में बड़ी संख्या में पद रिक्त रह सकते हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अंकों की जुबानी, उदासीनता की कहानी: सदस्य पदों पर सन्नाटा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी प्रारंभिक आंकड़ों ने इस असमानता को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। नामांकन के पहले तीन दिनों में, चुनाव आयोग के समक्ष कुल 66,418 पदों के लिए केवल 32,239 नामांकन दाखिल हुए थे। यह अपने आप में एक बड़ा गैप दिखाता है, लेकिन जब हम इसे पदों के अनुसार देखते हैं तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। ग्राम प्रधान पद पर बंपर नामांकन: ग्राम प्रधान के कुल 7,499 पदों के लिए, पहले तीन दिनों में ही रिकॉर्ड तोड़ 15,917 नामांकन दर्ज हुए। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस प्रतिष्ठित पद को लेकर ग्रामीण आबादी में कितना जबरदस्त उत्साह और प्रतिस्पर्धा है। कई सीटों पर तो एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतरने को तैयार दिख रहे हैं। शनिवार को अंतिम दिन यह आंकड़ा और भी तेजी से बढ़ा, हालांकि खबर लिखे जाने तक आयोग द्वारा अंतिम और पूर्ण आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। प्रधान का पद गांव के मुखिया का होता है, जिसके पास विकास योजनाओं पर निर्णय लेने और करोड़ों के फंड्स का प्रबंधन करने का अधिकार होता है, शायद यही वजह है कि यह पद लोगों के लिए इतना आकर्षक है। ग्राम पंचायत सदस्य पद पर 'उदासीनता' का सन्नाटा: इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के कुल 55,587 पदों के लिए पहले तीन दिनों में मात्र 7,235 नामांकन ही आए। यह आंकड़ा बेहद निराशाजनक है, क्योंकि यह कुल पदों का 15% भी नहीं है। अंतिम दिन भी इस पद के लिए नामांकन को लेकर कोई खास उत्साह या भीड़ देखने को नहीं मिली, जो प्रधान पद के लिए उमड़ी भीड़ से बिल्कुल अलग था। यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए आमजन की रुचि अपेक्षा से कहीं अधिक कम है। कई वार्डों में तो एक भी नामांकन दाखिल नहीं हुआ है, जिससे ये सीटें सीधे तौर पर खाली रहने के कगार पर हैं। क्यों आई यह 'उदासीनता'? सत्ता-विहीन पदों का आकर्षण कम सवाल उठता है कि आखिर ग्रामीण लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई कहे जाने वाले ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के लिए इतनी उदासीनता क्यों है? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं: सत्ता और संसाधनों का अभाव: ग्राम प्रधान के पास सीधे तौर पर विकास कार्यों के लिए धन का आवंटन और निर्णय लेने की शक्ति होती है। इसके विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के पास न तो कोई बड़ा फंड होता है और न ही निर्णय लेने की सीधी शक्ति। उनका काम मुख्य रूप से ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेना और प्रधान के फैसलों पर मुहर लगाना होता है, जिससे यह पद 'सत्ता-विहीन' या कम प्रभावशाली माना जाता है। कम सामाजिक सम्मान: प्रधान पद की तुलना में ग्राम पंचायत सदस्य के पद को सामाजिक रूप से कम महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे लोग इस पद के लिए समय और धन खर्च करने को तैयार नहीं होते। जागरूकता की कमी: ग्रामीण आबादी में ग्राम पंचायत सदस्य के वास्तविक कर्तव्यों, अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण हो सकती है। अभियान का खर्च: भले ही यह एक छोटा पद हो, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए कुछ न्यूनतम खर्च तो आता ही है। जब पद में कोई सीधा लाभ या प्रतिष्ठा न हो, तो लोग उस पर पैसा खर्च करने से कतराते हैं। बढ़ती शहरीकरण की प्रवृत्ति: ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का शहरों की ओर पलायन भी एक कारण हो सकता है, जिससे सक्रिय युवा भागीदारी कम हो रही है। आगे की प्रक्रिया: जांच से मतदान तक का चुनावी कार्यक्रम नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग अब अगले चरण में प्रवेश करेगा। नामांकन पत्रों की जांच: 7 से 9 जुलाई तक राज्य निर्वाचन आयोग दोनों चरणों के लिए दाखिल हुए सभी नामांकन पत्रों की गहन जांच करेगा। इस दौरान यह देखा जाएगा कि सभी आवेदन वैध हैं और उम्मीदवारों ने नियमों का पालन किया है। नाम वापसी का अवसर: नामांकन पत्रों की जांच के बाद, इच्छुक उम्मीदवार 10 और 11 जुलाई को अपने नाम वापस ले सकेंगे। इसके बाद ही चुनाव मैदान में बचे उम्मीदवारों की अंतिम सूची स्पष्ट हो पाएगी। चुनाव चिह्न आवंटन: नाम वापसी के बाद, चुनाव मैदान में टिके उम्मीदवारों को उनके चुनाव चिह्न आवंटित किए जाएंगे। पहले चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 14 जुलाई दूसरे चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 18 जुलाई मतदान की तिथियां: पहले चरण का मतदान: 24 जुलाई दूसरे चरण का मतदान: 28 जुलाई परिणामों की घोषणा: दोनों चरणों के लिए डाले गए मतों की गणना के बाद, परिणामों की घोषणा 31 जुलाई को की जाएगी। लोकतंत्र पर सवाल और आयोग की चुनौती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान पद के लिए पर्याप्त नामांकन होना तो अच्छी बात है, लेकिन सदस्य पदों के लिए यह उदासीनता निश्चित रूप से चिंता का विषय है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर एक गहरी जागरूकता की कमी और राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है। अगर बड़ी संख्या में सदस्य पद खाली रह जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु संचालन और ग्रामीण स्तर पर प्रभावी प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा। आगामी दिनों में राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि इन रिक्त पदों पर पुनः चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए या किसी वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे नामित प्रतिनिधियों की व्यवस्था, यदि कानूनी ढांचा इसकी अनुमति देता है) पर विचार किया जाए। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि नाम वापसी के बाद उम्मीदवारों की अंतिम सूची में कितनी विविधता और वास्तविक प्रतिस्पर्धा नजर आती है। इस पूरी प्रक्रिया पर ग्रामीण विकास और लोकतांत्रिक सुदृढ़ता के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है।

बड़ी खबर! उत्तराखंड चुनाव आयोग ने जारी किया पूरा , त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव, कार्यक्रम: देखें आपके गांव में कब होगी वोटिंग और गिनती की तारीखें!

देहरादून, 22 जून, 2025(समय बोल रहा) – उत्तराखंड के ग्रामीण लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव, त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव, औपचारिक रूप से शुरू हो चुका है! राज्य निर्वाचन आयोग ने शनिवार को एक धमाकेदार प्रेसवार्ता आयोजित कर पूरे चुनाव कार्यक्रम का विस्तृत ऐलान कर दिया है। इस घोषणा के साथ ही, प्रदेश के 12 जिलों में…

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रूद्रपुर, 19 जून, 2025( समय बोल रहा) - (आंगनबाड़ी कर्मियों ) उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण और बाल विकास के क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने की दिशा में आज एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री, श्रीमती रेखा आर्या ने एपीजे अब्दुल कलाम कलेक्ट्रेट सभागार, रूद्रपुर में आयोजित एक भव्य समारोह में वर्चुअली जुड़कर नव नियुक्त आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों और सहायिकाओं को नियुक्ति पत्र वितरित किए। इस अवसर पर कुल 45 आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों और 218 आंगनबाड़ी सहायिकाओं को उनके नियुक्ति पत्र सौंपे गए, जिनके केंद्रों पर किसी भी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं पाई गई थी। इन नियुक्तियों से जिले में बाल विकास सेवाओं को नई गति मिलेगी और हजारों बच्चों व महिलाओं को सीधे लाभ पहुंचेगा। आंगनबाड़ी केंद्रों की अहमियत: समाज के नींव का पत्थर आंगनबाड़ी केंद्र भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की सबसे महत्वपूर्ण और दूरगामी कल्याणकारी योजनाओं की रीढ़ हैं। ये केंद्र सिर्फ बच्चों के लिए नहीं, बल्कि पूरे समुदाय, खासकर गर्भवती महिलाओं, धात्री माताओं और किशोरियों के स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा के लिए एक आधारशिला का काम करते हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ती और सहायिकाएं जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण, पोषण संबंधी परामर्श, पूर्व-प्राथमिक शिक्षा, और विभिन्न सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाने का महत्वपूर्ण कार्य करती हैं। बच्चों के लिए ये केंद्र उनके प्रारंभिक बचपन के विकास का पहला पायदान होते हैं, जहां उन्हें पोषण युक्त आहार, खेल-खेल में शिक्षा और सामाजिक विकास का अवसर मिलता है। महिलाओं के लिए ये पोषण संबंधी जानकारी, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और विभिन्न सरकारी लाभों का माध्यम बनते हैं। ऐसे में, इन केंद्रों पर रिक्त पदों का भरा जाना अत्यंत आवश्यक था ताकि सेवाओं की निरंतरता और गुणवत्ता बनी रहे। आज की नियुक्तियां रूद्रपुर जिले में इन आवश्यक सेवाओं को और सुदृढ़ करेंगी, जिससे समुदाय के सबसे कमजोर वर्गों को सीधा फायदा मिलेगा। वर्चुअल माध्यम से जुड़कर मंत्री ने दिया उत्साहवर्धन का संदेश नियुक्ति पत्र वितरण समारोह को आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए आयोजित किया गया, जिससे माननीय मंत्री श्रीमती रेखा आर्या देहरादून से ही वर्चुअल माध्यम से रूद्रपुर के कार्यक्रम से जुड़ सकीं। उन्होंने नव चयनित आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों और सहायिकाओं को बधाई दी और उन्हें उनके भविष्य के कार्यों के लिए शुभकामनाएं प्रेषित कीं। मंत्री जी ने अपने संबोधन में आंगनबाड़ी कर्मियों की भूमिका के महत्व पर प्रकाश डाला और उनसे ईमानदारी, समर्पण और सेवा भाव के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का आह्वान किया। उनका यह वर्चुअल संवाद नई नियुक्त हुई कर्मियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना और उनमें अपने कार्य के प्रति उत्साह भरा। रूद्रपुर में, मंत्री के निर्देशों के अनुरूप, स्थानीय विधायक प्रतिनिधि धीरेश गुप्ता ने सभागार में उपस्थित आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों और सहायिकाओं को व्यक्तिगत रूप से नियुक्ति पत्र वितरित किए। इस दौरान सभागार में खुशी और उत्साह का माहौल था, क्योंकि इन महिलाओं को अब समाज सेवा के एक महत्वपूर्ण कार्य में अपनी भूमिका निभाने का अवसर मिला है। चयन प्रक्रिया और सेवाओं में अपेक्षित सुधार ये 263 नियुक्तियां एक पारदर्शी और सख्त चयन प्रक्रिया के बाद की गई हैं। जिला प्रशासन ने उन केंद्रों को प्राथमिकता दी, जिन पर किसी भी प्रकार की कोई आपत्ति या विवाद नहीं था, ताकि नियुक्ति प्रक्रिया में कोई देरी न हो। इन नई नियुक्तियों से जिले भर के आंगनबाड़ी केंद्रों में कर्मियों की कमी दूर होगी, जिससे सेवाओं की दक्षता और पहुंच बढ़ेगी। इन नई कर्मियों की तैनाती से निम्नलिखित क्षेत्रों में सुधार की उम्मीद है: पोषण स्तर में सुधार: बच्चों, गर्भवती और धात्री माताओं के बीच कुपोषण से निपटने के लिए पोषण अभियान के तहत बेहतर निगरानी और पूरक पोषण आहार का वितरण। स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच: नियमित स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण और बीमारियों से बचाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना। प्रारंभिक बचपन की शिक्षा: बच्चों के बौद्धिक और सामाजिक विकास के लिए गुणवत्तापूर्ण पूर्व-प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना। जागरूकता कार्यक्रम: स्वच्छता, परिवार नियोजन और विभिन्न सरकारी योजनाओं के बारे में सामुदायिक स्तर पर जागरूकता बढ़ाना। मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी: गर्भवती महिलाओं की नियमित जांच और सुरक्षित प्रसव के लिए मार्गदर्शन। यह नियुक्तियां केवल संख्यात्मक वृद्धि नहीं हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करती हैं कि रूद्रपुर जिले के हर कोने में, विशेषकर ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में, सरकारी सेवाएं प्रभावी ढंग से पहुंच सकें। कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख अधिकारीगण और भविष्य की कार्ययोजना इस महत्वपूर्ण नियुक्ति पत्र वितरण समारोह में जिला प्रोबेशन अधिकारी और प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी व्योमा जैन की सक्रिय भूमिका रही। उनके साथ बाल विकास परियोजना अधिकारी सुश्री रेणु यादव, बिमल बाराकोटी, बीना भंडारी, इंद्रा बर्गली, शोभा जनोटी और समस्त जिला कार्यक्रम कार्मिक भी उपस्थित रहे। इन अधिकारियों ने नव नियुक्त कर्मियों को बधाई दी और उन्हें उनके आने वाले कर्तव्यों के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया। यह समारोह रूद्रपुर जिले में महिला और बाल विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उम्मीद है कि ये नई नियुक्तियां आंगनबाड़ी केंद्रों को और अधिक मजबूत करेंगी, जिससे 'स्वस्थ बच्चे, स्वस्थ माताएं और सशक्त महिलाएं' के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। जिला प्रशासन ने भी संकेत दिया है कि भविष्य में भी ऐसी आवश्यकतानुसार नियुक्तियां की जाती रहेंगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई

रूद्रपुर में महिला सशक्तिकरण का नया अध्याय: 263 आंगनबाड़ी कर्मियों को मिले नियुक्ति पत्र, मंत्री रेखा आर्या ने वर्चुअली दी बधाई

रूद्रपुर, 19 जून, 2025( समय बोल रहा) – (आंगनबाड़ी कर्मियों ) उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण और बाल विकास के क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने की दिशा में आज एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री, श्रीमती रेखा आर्या ने एपीजे अब्दुल कलाम कलेक्ट्रेट सभागार, रूद्रपुर में आयोजित एक भव्य समारोह में…

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देहरादून, 19 जून, 2025 (समय बोल रहा ) - उत्तराखंड, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के लिए तो जाना ही जाता है, लेकिन अब इसकी ऐतिहासिक विरासत का एक विशाल और 'छिपा हुआ खजाना' भी सामने आया है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के वैज्ञानिकों ने 15 साल के गहन अध्ययन के बाद राज्य के अलग-अलग हिस्सों में 400 से ज़्यादा ऐतिहासिक किले और गढ़ों की खोज की है। यह चौंकाने वाला खुलासा राज्य के इतिहास और पारंपरिक संरचनाओं के बारे में हमारी समझ को पूरी तरह से बदल देगा। अब तक जहां लोगों को केवल 52 गढ़ और किले होने की जानकारी थी, वहीं यूसैक ने कुल 403 किलों की पुष्टि की है, जिनमें 235 गढ़ और 168 किले शामिल हैं। 15 साल का अध्ययन: यूसैक की ऐतिहासिक खोज उत्तराखंड अपनी समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संपदा के लिए प्रसिद्ध है। परमार, कत्यूर, और चंद जैसे शक्तिशाली राजवंशों ने सदियों तक इस क्षेत्र पर शासन किया और इसके इतिहास को आकार देने में प्रमुख भूमिका निभाई। इन राजवंशों ने अपनी सुरक्षा और शासन व्यवस्था के लिए गढ़ों और किलों का निर्माण किया था। राज्य की इसी अनमोल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को जानने और संरक्षित करने के उद्देश्य से उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने एक महत्वाकांक्षी अध्ययन परियोजना हाथ में ली। यूसैक के वैज्ञानिकों ने 2008 से 2023 तक पूरे 15 वर्षों तक राज्य के सभी जिलों में व्यापक सर्वे किया। इस दौरान, उन्होंने अत्याधुनिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और जमीनी सर्वेक्षण दोनों का उपयोग करते हुए ऐतिहासिक स्थलों की पहचान की और उनका गहन अध्ययन किया। इस विस्तृत शोध के परिणामस्वरूप, यूसैक ने कुल 403 गढ़ों और किलों की पुष्टि की है। यह आंकड़ा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक आम जनता और कई ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स में उत्तराखंड में बमुश्किल 52 गढ़ और किले होने की ही जानकारी थी। इस नई खोज ने राज्य की सैन्य वास्तुकला और सामरिक इतिहास की एक बिल्कुल नई तस्वीर पेश की है। खोजे गए इन 403 संरचनाओं में 235 गढ़ (Garrisons) और 168 किले (Forts) शामिल हैं, जो राज्य के विभिन्न भूभागों में फैले हुए हैं। पौड़ी में सर्वाधिक किले: सामरिक महत्व का प्रमाण यूसैक द्वारा किए गए अध्ययन में एक और दिलचस्प तथ्य सामने आया है कि पौड़ी जिले में सर्वाधिक 108 किले दर्ज किए गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इसके कई महत्वपूर्ण कारण हैं। प्रमुख कारणों में से एक यह है कि पौड़ी जिले में स्थित श्रीनगर, गढ़वाल राजवंश की राजधानी हुआ करती थी। राजधानी होने के नाते, इसकी सुरक्षा के लिए आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में किलों और गढ़ों का निर्माण स्वाभाविक था। इसके अलावा, पौड़ी जिला भौगोलिक रूप से कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र की सीमा पर स्थित है। यह एक सामरिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान था, जहां दोनों क्षेत्रों के राजवंशों के बीच अक्सर संघर्ष होते रहते थे। अपनी सीमाओं की रक्षा और नियंत्रण बनाए रखने के लिए, विभिन्न शासकों ने पौड़ी और उसके आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में किलेबंद संरचनाएं बनवाईं। पौड़ी में सर्वाधिक किले होने के पीछे यही मुख्य सामरिक और ऐतिहासिक कारण बताए जा रहे हैं, जो इस जिले को उत्तराखंड के किलेबंद इतिहास का केंद्र बिंदु बनाता है। अन्य जिलों में भी मौजूद हैं गढ़ और किले: एक विस्तृत सूची यूसैक के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन ने राज्य के अन्य जिलों में भी मौजूद गढ़ों और किलों की विस्तृत जानकारी प्रदान की है। यह जानकारी उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में फैली ऐतिहासिक वास्तुकला की विविधता को दर्शाती है: अल्मोड़ा: आठ गढ़ और 29 किले बागेश्वर: एक गढ़ और 11 किले चमोली: 15 गढ़ और पांच किले चम्पावत: 17 किले देहरादून: 19 गढ़ हरिद्वार: चार गढ़ नैनीताल: 18 किले रुद्रप्रयाग: 19 गढ़ और तीन किले उत्तरकाशी: 18 गढ़ और छह किले ऊधमसिंह नगर: एक किला यह भी रोचक है कि इस अध्ययन में कुछ गढ़ों की स्थिति राज्य की सीमाओं से भी जुड़ी हुई पाई गई है। तीन गढ़ हिमाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित हैं, जबकि दो गढ़ उत्तर प्रदेश की सीमा में भी पाए गए हैं। यह तथ्य इन ऐतिहासिक संरचनाओं के क्षेत्रीय महत्व और राज्यों के बीच प्राचीन काल में रहे संबंधों को दर्शाता है। विरासत संरक्षण और पर्यटन को बढ़ावा: आगे की राह इस खोज का उत्तराखंड के पर्यटन और विरासत संरक्षण पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। ये 403 ऐतिहासिक किले और गढ़ राज्य के पर्यटन मानचित्र पर नए आकर्षण जोड़ सकते हैं। इनके उचित संरक्षण और विकास से न केवल इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं को आकर्षित किया जा सकेगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा। इन स्थलों का दस्तावेजीकरण और सार्वजनिक प्रदर्शन उत्तराखंड की समृद्ध ऐतिहासिक पहचान को दुनिया के सामने लाने में मदद करेगा। यूसैक की यह खोज वास्तव में उत्तराखंड के लिए एक 'छिपा हुआ खजाना' है, जिसे अब दुनिया देख सकती है और उसकी समृद्ध विरासत को समझ सकती है।

उत्तराखंड का ‘छिपा खजाना’ सामने आया! स्पेस सेंटर ने खोजे 400 से ज़्यादा ऐतिहासिक किले और गढ़, जानिए आपके ज़िले में कितने!

देहरादून, 19 जून, 2025 (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के लिए तो जाना ही जाता है, लेकिन अब इसकी ऐतिहासिक विरासत का एक विशाल और ‘छिपा हुआ खजाना’ भी सामने आया है। उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के वैज्ञानिकों ने 15 साल के गहन अध्ययन के बाद राज्य…

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हरिद्वार, 16 जून, 2025 (समय बोल रहा ) - देश के अन्नदाताओं के भविष्य और उनके सशक्तिकरण को लेकर एक महत्वपूर्ण पहल आज हरिद्वार में शुरू हो गई है। लाल कोठी परिसर में एक भव्य तीन दिवसीय राष्ट्रीय चिंतन शिविर का शुभारंभ हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य देश के किसानों के अधिकारों, उनकी ज्वलंत समस्याओं और कृषि क्षेत्र की चुनौतियों पर गहन मंथन करना है। 16 से 18 जून तक चलने वाले इस शिविर में देशभर के विभिन्न राज्यों से आए किसान प्रतिनिधि, पदाधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल हुए हैं, जिससे यह आयोजन किसानों के हितों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है। राष्ट्रीय चिंतन शिविर का उद्देश्य और भव्य शुरुआत यह राष्ट्रीय चिंतन शिविर ऐसे समय में आयोजित किया जा रहा है जब देश का कृषि क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), सिंचाई, फसल बीमा, बाजार पहुंच और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए, इस तीन दिवसीय शिविर का आयोजन किया गया है ताकि इन मुद्दों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया जा सके और ठोस समाधान सुझाए जा सकें। आज सुबह शिविर का भव्य शुभारंभ हुआ, जिसमें देशभर से आए हजारों किसानों और किसान नेताओं की उपस्थिति ने माहौल को जीवंत बना दिया। शिविर स्थल पर किसानों की भारी भीड़ उत्साह और एकजुटता का प्रदर्शन कर रही थी। आयोजकों ने बताया कि इस चिंतन शिविर से निकलने वाले सुझावों और प्रस्तावों को जल्द ही नीति-निर्माताओं तक पहुंचाया जाएगा, ताकि उन्हें सरकारी नीतियों में शामिल किया जा सके और किसानों के जीवन में वास्तविक बदलाव आ सके। यह शिविर केवल चर्चा का मंच नहीं, बल्कि किसानों की आवाज़ को बुलंद करने का एक शक्तिशाली माध्यम बनने वाला है। राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह का गर्मजोशी से स्वागत और प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति कार्यक्रम में राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर सिंह के पहुंचने पर किसानों और पदाधिकारियों द्वारा गर्मजोशी से स्वागत किया गया। ढोल-नगाड़ों और किसानों के नारों के साथ उनका अभिनंदन किया गया, जिससे शिविर स्थल पर एक ऊर्जावान माहौल बन गया। युद्धवीर सिंह देश के किसान आंदोलनों में एक जाना-माना चेहरा हैं और उनकी उपस्थिति ने किसानों में नया जोश भर दिया। इस महत्वपूर्ण अवसर पर देश भर से कई प्रमुख किसान नेता और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद रहे, जिनमें शामिल हैं: प्रेम सिंह सहोता, दर्शन सिंह दियोल, बलविंदर सिंह लाड़ी, शेर सिंह, सुखविंदर सिंह पोला, दीदार सिंह, शीतल सिंह, जसवीर सिंह, गुलाब सिंह, हरजिंदर सिंह, पवन सिंह, श्याम अरोड़ा, अर्पित राठी, कमल कुमार, जागीर सिंह, प्रभजोत सिंह, विक्रम सिंह गोराया, बलदेव सिंह, किसन सिंह, और विक्की रंधावा। इन सभी नेताओं की उपस्थिति ने शिविर को एक राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया है और यह दर्शाता है कि किसानों के मुद्दे पर देश के कोने-कोने से प्रतिनिधि एक साथ आए हैं। हजारों किसानों की उपस्थिति और विभिन्न सत्रों में होने वाला व्यापक विचार-विमर्श इस शिविर को निश्चित रूप से ऐतिहासिक बना रहा है। जनसेवा और एकता का संदेश: तीनों दिन चलेगी लंगर व्यवस्था इस राष्ट्रीय चिंतन शिविर की एक और खास बात यह है कि इसमें आने वाले सभी प्रतिभागियों और श्रद्धालुओं के लिए तीनों दिन लंगर की भव्य व्यवस्था की गई है। लंगर, जो सिख धर्म की एक पवित्र परंपरा है, निःस्वार्थ सेवा और समानता का प्रतीक है। इस व्यवस्था के माध्यम से, आयोजकों ने न केवल हजारों लोगों के लिए भोजन का प्रबंध किया है, बल्कि जनसेवा और एकता का एक महत्वपूर्ण संदेश भी दिया है। लंगर में सभी लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, जो सामाजिक समरसता और भाईचारे को बढ़ावा देता है। यह परंपरा यह भी दर्शाती है कि किसान समुदाय न केवल अपने अधिकारों के लिए लड़ रहा है, बल्कि सेवा भाव में भी अग्रणी है। लंगर की व्यवस्था यह भी सुनिश्चित करती है कि देश के दूर-दराज के इलाकों से आए किसानों को भोजन को लेकर किसी तरह की चिंता न करनी पड़े, जिससे वे पूरी तरह से विचार-विमर्श पर ध्यान केंद्रित कर सकें। यह पहल निश्चित रूप से इस शिविर को एक सामाजिक और मानवीय आयाम भी प्रदान करती है, जो केवल राजनीतिक या आर्थिक चर्चा तक सीमित नहीं है। आगे की राह: सुझावों को नीति-निर्माताओं तक पहुंचाना आयोजकों ने स्पष्ट किया है कि यह तीन दिवसीय चिंतन शिविर केवल विचारों के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं रहेगा। इसमें होने वाले विचार-विमर्श और मंथन के बाद जो भी सुझाव, प्रस्ताव और रोडमैप तैयार होंगे, उन्हें एक ठोस दस्तावेज़ के रूप में संकलित किया जाएगा। इस दस्तावेज़ को जल्द ही देश के नीति-निर्माताओं, संबंधित मंत्रालयों और सरकार के उच्चाधिकारियों तक पहुंचाया जाएगा। लक्ष्य यह है कि किसानों द्वारा उठाई गई आवाज को सुना जाए और उनकी समस्याओं का स्थायी समाधान निकाला जा सके। यह शिविर किसानों को एक मंच प्रदान करता है जहाँ वे अपनी समस्याओं को खुलकर रख सकते हैं और उनके लिए सामूहिक रूप से समाधान ढूंढ सकते हैं। उम्मीद है कि यह राष्ट्रीय चिंतन शिविर भारतीय कृषि और किसानों के भविष्य के लिए एक नई दिशा प्रदान करेगा और सरकार को ऐ

हरिद्वार में किसानों का महामंथन शुरू! लाल कोठी में 3 दिवसीय राष्ट्रीय चिंतन शिविर का भव्य आगाज, देशभर से उमड़े किसान नेता

हरिद्वार, 16 जून, 2025 (समय बोल रहा ) – देश के अन्नदाताओं के भविष्य और उनके सशक्तिकरण को लेकर एक महत्वपूर्ण पहल आज हरिद्वार में शुरू हो गई है। लाल कोठी परिसर में एक भव्य तीन दिवसीय राष्ट्रीय चिंतन शिविर का शुभारंभ हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य देश के किसानों के अधिकारों, उनकी ज्वलंत समस्याओं और…

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