चेक बाउंस मामले में कड़ा फैसला: काशीपुर में दोषी को 3 माह का कारावास और ₹2.05 लाख का जुर्माना

काशीपुर, 2 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – वित्तीय धोखाधड़ी और चेक अनादरण (बाउंस) के एक महत्वपूर्ण मामले में, काशीपुर की अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट/सिविल जज (सीडि) पायल सिंह की अदालत ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने चेक बाउंस के दोषी पाए गए व्यक्ति को तीन माह के कारावास के साथ-साथ 2 लाख 5 हजार रुपये (₹2.05 लाख) के भारी जुर्माने से दंडित किया है। यह फैसला वित्तीय लेनदेन में पारदर्शिता और विश्वास सुनिश्चित करने की दिशा में एक कड़ा संदेश माना जा रहा है।
क्या था मामला? विश्वास के बदले मिला धोखा
यह मामला मोहल्ला पक्काकोट निवासी सिमरन पत्नी शंकर द्वारा अधिवक्ता देवेंद्र कुमार पाल के माध्यम से न्यायालय में दायर किए गए एक परिवाद (शिकायत) से जुड़ा है। सिमरन ने अपनी शिकायत में बताया कि उसी मोहल्ले के निवासी अशरफी लाल ने उनसे 11 दिसंबर, 2020 को 1 लाख 80 हजार रुपये (₹1.80 लाख) की बड़ी रकम बतौर उधार ली थी। यह लेन-देन आपसी विश्वास और परिचित होने के नाते किया गया था।
उधार ली गई इस राशि के भुगतान के एवज में, अशरफी लाल ने सिमरन को दो चेक जारी किए थे। ये चेक उधार की राशि लौटाने के लिए थे और यह एक कानूनी दस्तावेज होता है जो भुगतान का आश्वासन देता है। सिमरन ने जब इन चेकों को उनके भुगतान के लिए बैंक में प्रस्तुत किया, तो दुर्भाग्यवश, दोनों चेक बाउंस हो गए। इसका अर्थ था कि अशरफी लाल के खाते में पर्याप्त धनराशि नहीं थी, या किसी अन्य तकनीकी कारण से बैंक ने भुगतान करने से इनकार कर दिया था। चेक बाउंस होना नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत एक गंभीर अपराध है, क्योंकि यह वित्तीय लेनदेन में भरोसे को तोड़ता है।
कानूनी प्रक्रिया और न्यायालय का अवलोकन
चेक बाउंस होने के बाद, सिमरन ने कई बार अशरफी लाल से संपर्क करने का प्रयास किया ताकि वे अपनी उधार ली गई रकम वापस पा सकें, लेकिन जब सभी प्रयास विफल हो गए, तो उन्होंने कानूनी रास्ता अपनाने का फैसला किया। उन्होंने अपने अधिवक्ता देवेंद्र कुमार पाल के माध्यम से न्यायालय में परिवाद दायर किया और अशरफी लाल के खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा चलाने की अपील की।
मामले की सुनवाई अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट/सिविल जज (सीडि) पायल सिंह की अदालत में चली। इस दौरान दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं ने अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए। परिवादी सिमरन के अधिवक्ता ने चेकों के बाउंस होने, उधार के प्रमाण और अशरफी लाल की भुगतान करने में विफलता से संबंधित सभी साक्ष्यों को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया। इसमें बैंक की मेमो, लेन-देन के रिकॉर्ड और अन्य संबंधित दस्तावेज शामिल थे। वहीं, बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने अशरफी लाल का पक्ष रखा, हालांकि उनके तर्क और प्रस्तुत साक्ष्य न्यायालय को संतुष्ट नहीं कर पाए।
न्यायालय का फैसला: सजा और आर्थिक दंड
अधिवक्ताओं की बहस और सभी साक्ष्यों की गहन समीक्षा के बाद, न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अशरफी लाल ने चेक बाउंस कर कानून का उल्लंघन किया है। न्यायालय ने अशरफी लाल को चेक बाउंस के मामले में दोषसिद्ध घोषित किया।
दोषसिद्ध होने के बाद, न्यायालय ने अशरफी लाल को तीन माह के साधारण कारावास की सजा सुनाई। यह सजा यह सुनिश्चित करती है कि दोषी को उसके कृत्य के लिए व्यक्तिगत रूप से भी जवाबदेह ठहराया जाए। कारावास की सजा के अतिरिक्त, न्यायालय ने अशरफी लाल पर 2 लाख 5 हजार रुपये (₹2.05 लाख) का आर्थिक जुर्माना भी लगाया। यह जुर्माना उधार ली गई मूल राशि (₹1.80 लाख) से अधिक है, जो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत एक सामान्य प्रावधान है। इस एक्ट के तहत अक्सर जुर्माने की राशि चेक की राशि के दोगुने तक हो सकती है, ताकि दोषी पर वित्तीय दबाव पड़े और वह भविष्य में ऐसे अपराधों से बचे। यह अतिरिक्त राशि परिवादी सिमरन को हुए नुकसान की भरपाई और आरोपी के लिए दंड के तौर पर भी कार्य करती है।
अधिवक्ता की भूमिका और न्यायिक प्रक्रिया का महत्व
इस पूरे मामले में परिवादी सिमरन के अधिवक्ता देवेंद्र कुमार पाल की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने प्रभावी ढंग से सिमरन का पक्ष न्यायालय के समक्ष रखा, सभी आवश्यक साक्ष्य प्रस्तुत किए और कानूनी दांव-पेच के बीच अपने मुवक्किल को न्याय दिलाने में सफल रहे। यह फैसला दर्शाता है कि कानूनी प्रक्रिया और एक कुशल अधिवक्ता के माध्यम से न्याय प्राप्त किया जा सकता है, भले ही वित्तीय धोखाधड़ी के मामले जटिल हों।