देहरादून,17 जुलाई 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पोर्टल, जिसे जनता की समस्याओं के त्वरित समाधान और सुशासन के प्रतीक के रूप में लॉन्च किया गया था, अब कुछ असामाजिक तत्वों के लिए अवैध वसूली का जरिया बनता जा रहा है। कुंडा और जसपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्ट्री संचालकों और छोटे उद्योगपतियों को इस पोर्टल पर दर्ज कराई जा रहीं झूठी शिकायतों के आधार पर परेशान कर उनसे अवैध वसूली की कोशिशें की जा रही हैं। इस 'गोरखधंधे' ने न केवल व्यवसायों को मुश्किल में डाला है, बल्कि जनता की एक महत्वपूर्ण लोक-केंद्रित सेवा के प्रति विश्वास को भी गहरा नुकसान पहुंचाया है। कैसे हो रहा है 'लोक पोर्टल' का दुरुपयोग? मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पोर्टल (सीएम पोर्टल) को आम जनता और मुख्यमंत्री के बीच सीधा संवाद स्थापित करने के लिए बनाया गया था, ताकि नागरिक अपनी शिकायतें और सुझाव सीधे उच्च स्तर तक पहुंचा सकें और उनका समाधान हो सके। यह एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था का हिस्सा था। लेकिन, कुछ शातिर और असामाजिक तत्वों ने इसकी इसी पारदर्शिता का फायदा उठाना शुरू कर दिया है। उनकी सुनियोजित योजना यह है कि वे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, खासकर फैक्ट्रियों और छोटे उद्योगों के खिलाफ पोर्टल पर झूठी और मनगढ़ंत शिकायतें दर्ज कराते हैं। इन शिकायतों में अक्सर गंभीर आरोप लगाए जाते हैं, जैसे: अवैध निर्माण: फैक्ट्री परिसर में बिना अनुमति के निर्माण कार्य करने का आरोप। पर्यावरण नियमों का उल्लंघन: उद्योगों द्वारा प्रदूषण फैलाने या निर्धारित पर्यावरणीय मानकों का पालन न करने की झूठी शिकायतें। भूमि संबंधित विवाद: फैक्ट्री की जमीन पर कब्जा या भूमि से जुड़े विवादों का मनगढ़ंत हवाला देना। ये आरोप इतने गंभीर होते हैं कि ये सीधे संबंधित विभागों जैसे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राजस्व विभाग, या स्थानीय प्रशासन को सक्रिय कर सकते हैं, जिससे अधिकारियों द्वारा जांच या कार्रवाई शुरू होने का डर पैदा होता है। डर दिखाकर वसूली: 'अधिकारियों का झांसा देकर' हो रहा है खेल शिकायत दर्ज कराने के बाद, ये असामाजिक तत्व फैक्ट्री संचालकों और व्यवसायियों से संपर्क साधते हैं। वे उन्हें यह कहकर डराते हैं कि उनके खिलाफ सीएम पोर्टल पर गंभीर शिकायत दर्ज की गई है और जल्द ही संबंधित अधिकारी जांच या कार्रवाई के लिए पहुंचेंगे। वे उन्हें यह झांसा देते हैं कि अगर वे "नियमानुसार" मामले को निपटाना चाहते हैं, तो उन्हें पैसे देने पड़ेंगे, अन्यथा जांच और कार्रवाई के गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। यह एक सीधा-साधा ब्लैकमेलिंग का तरीका है, जिसमें पोर्टल की विश्वसनीयता और अधिकारियों की जांच की शक्ति का दुरुपयोग किया जा रहा है। छोटे व्यवसायियों के पास अक्सर इतना समय या संसाधन नहीं होता कि वे इन झूठी शिकायतों की लंबी कानूनी प्रक्रियाओं में उलझें, और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर उनसे अवैध वसूली की जाती है। वे बदनामी और सरकारी कार्रवाई से बचने के लिए पैसे देने को मजबूर हो जाते हैं। देहरादून से जसपुर-काशीपुर तक फैला है यह 'खेल' जनता की आस्था पर चोट: 'विश्वसनीयता को नुकसान', विश्वास डगमगाया सीएम पोर्टल का दुरुपयोग बेहद चिंताजनक है, क्योंकि यह सीधे तौर पर जनता के विश्वास पर चोट करता है। यह पोर्टल सरकार और जनता के बीच सीधा पुल था, जो शिकायतों के निष्पक्ष और समयबद्ध समाधान का आश्वासन देता था। जब इस तरह के 'लोक केंद्रित पोर्टल' का उपयोग अवैध वसूली के लिए होने लगता है, तो इसकी विश्वसनीयता को भारी नुकसान पहुँचता है। जनता का विश्वास डगमगाता है और उन्हें लगता है कि उनकी वास्तविक समस्याओं को भी गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, क्योंकि झूठी शिकायतों का अंबार लग जाएगा। यह स्थिति सुशासन के सिद्धांतों के खिलाफ है और इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। आवश्यकता है त्वरित और कठोर कार्रवाई की इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है: पुलिस की सक्रियता: पुलिस को ऐसे असामाजिक तत्वों के खिलाफ कठोर अभियान चलाना चाहिए। झूठी शिकायतें दर्ज करने वालों और वसूली की कोशिश करने वालों की पहचान कर उन पर तुरंत मुकदमा दर्ज कर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए। देहरादून जैसा मामला एक मिसाल कायम कर सकता है। पोर्टल पर तकनीकी सुधार: सरकार को सीएम पोर्टल पर शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया में और अधिक सत्यापन के तरीके जोड़ने चाहिए। यह ओटीपी आधारित सत्यापन, शिकायतकर्ता के पहचान पत्र का अनिवार्य अपलोड, या गंभीर शिकायतों के लिए प्रारंभिक सत्यापन कॉल शामिल हो सकते हैं, ताकि झूठी शिकायतों को दर्ज होने से पहले ही रोका जा सके। जागरूकता अभियान: व्यवसायियों और आम जनता को ऐसे ठगों से सतर्क रहने और किसी भी तरह की धमकी या वसूली की कोशिश होने पर तुरंत पुलिस को सूचना देने के लिए जागरूक किया जाना चाहिए। उन्हें डरकर पैसे न देने की सलाह दी जाए। सरकारी विभागों का समन्वय: संबंधित विभागों (जैसे पर्यावरण, राजस्व, स्थानीय निकाय) को सीएम पोर्टल पर आने वाली शिकायतों की गंभीरता और सत्यता की प्रारंभिक जांच के लिए एक त्वरित तंत्र विकसित करना चाहिए, ताकि वे अनावश्यक रूप से परेशान न हों। उत्तराखंड सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि सीएम पोर्टल, जो जनता की भलाई के लिए बनाया गया है, उसका दुरुपयोग न हो। ऐसा करके ही जनता का विश्वास बरकरार रखा जा सकेगा और राज्य में व्यापार के लिए एक सुरक्षित और भयमुक्त माहौल सुनिश्चित किया जा सकेगा।

उत्तराखंड में ‘सीएम पोर्टल’ का दुरुपयोग: फैक्ट्री संचालकों से अवैध वसूली का ‘गोरखधंधा’, जनता का विश्वास डगमगाया

देहरादून,17 जुलाई 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के सीएम पोर्टल, जिसे जनता की समस्याओं के त्वरित समाधान और सुशासन के प्रतीक के रूप में लॉन्च किया गया था, अब कुछ असामाजिक तत्वों के लिए अवैध वसूली का जरिया बनता जा रहा है। कुंडा और जसपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्ट्री संचालकों और…

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देहरादून, 15 जुलाई 2025 (समय बोल रहा): उत्तराखंड के विद्यालयी शिक्षा विभाग में जल्द ही सैकड़ों युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलने जा रहे हैं। विभाग समग्र शिक्षा अभियान के तहत स्वीकृत 1556 संविदा पदों को आउटसोर्सिंग के माध्यम से भरने की तैयारी में है। इस महत्वपूर्ण पहल को लेकर विभागीय मंत्री ने अधिकारियों को एक माह के भीतर भर्ती प्रक्रिया पूरी करने के सख्त निर्देश दिए हैं, जिससे प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ बेरोजगारी कम करने की दिशा में भी बड़ा कदम उठाया जा सके। विद्यालयी शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने आज अपने शासकीय आवास पर समग्र शिक्षा के तहत स्वीकृत संविदा पदों पर भर्ती को लेकर एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक की। बैठक के बाद मीडिया को जारी एक बयान में उन्होंने बताया कि प्रदेश में शैक्षणिक गतिविधियों में सुधार और शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के उद्देश्य से समग्र शिक्षा के तहत रिक्त पदों को शीघ्रता से भरा जाएगा। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि इन पदों पर भर्ती के लिए प्रयाग पोर्टल के माध्यम से आउटसोर्स एजेंसी का चयन पहले ही कर लिया गया है, जिससे भर्ती प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाया जा सके। विभिन्न संवर्गों में 1556 पद स्वीकृत राज्य समग्र शिक्षा परियोजना के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित विभिन्न संवर्गों में कुल 1556 पद स्वीकृत किए गए हैं। इन पदों में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए 161 विशेष शिक्षक शामिल हैं, जो समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इसके अलावा, प्रशासनिक और वित्तीय कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए 324 लेखाकार-सह-सपोर्टिंग स्टाफ के पद भी भरे जाएंगे। युवाओं को सही करियर मार्गदर्शन देने के लिए 95 करियर काउंसलर की नियुक्ति की जाएगी, जो छात्रों को उनके भविष्य के लिए उचित दिशा-निर्देश प्रदान करेंगे। डिजिटल शिक्षा और डेटा प्रबंधन को मजबूत करने के लिए विद्या समीक्षा केंद्र के 18 पदों पर भी भर्ती होगी। इसके अतिरिक्त, मनोविज्ञानी, मैनेजर (आईसीटी) और मैनेजर (ट्रेनिंग) के एक-एक महत्वपूर्ण पद भी आउटसोर्सिंग के जरिए भरे जाएंगे। मंत्री डॉ. रावत ने स्पष्ट किया कि इन सभी पदों पर युवाओं को मेरिट के आधार पर भर्ती किया जाएगा, जिससे पारदर्शिता और योग्यता को प्राथमिकता दी जा सके। उन्होंने विभागीय अधिकारियों को एक माह के भीतर इस पूरी भर्ती प्रक्रिया को पूर्ण करने के निर्देश दिए हैं, ताकि शैक्षणिक सत्र में बिना किसी देरी के नए कर्मी अपना योगदान दे सकें। बीआरपी-सीआरपी के 955 पदों पर अंतिम चरण में भर्ती डॉ. धन सिंह रावत ने यह भी बताया कि समग्र शिक्षा के अंतर्गत बीआरपी (ब्लॉक रिसोर्स पर्सन) और सीआरपी (क्लस्टर रिसोर्स पर्सन) के 955 पदों पर भर्ती प्रक्रिया पहले से ही अंतिम चरण में है। इन पदों पर चयनित युवाओं की तैनाती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव-2025 के दृष्टिगत राज्य में लागू आदर्श आचार संहिता समाप्त होते ही कर दी जाएगी। उन्होंने आउटसोर्स एजेंसी को निर्देश दिए हैं कि काउन्सिलिंग प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी तरीके से संपादित किया जाए। साथ ही, चयनित अभ्यर्थियों को उनके मण्डल और गृह विकासखंड के अनुरूप तैनाती में वरीयता दी जाए, ताकि उन्हें अपने गृह क्षेत्र के करीब काम करने का अवसर मिल सके। इससे न केवल कर्मचारियों को सुविधा होगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर शिक्षा व्यवस्था को समझने और उसमें योगदान देने में भी मदद मिलेगी। शैक्षणिक गुणवत्ता सुधार पर जोर शिक्षा विभाग का यह कदम प्रदेश में शैक्षणिक गतिविधियों में सुधार और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने की सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इन भर्तियों से विद्यालयों में स्टाफ की कमी दूर होगी, जिससे छात्रों को बेहतर शिक्षण-अधिगम वातावरण मिल पाएगा। विशेष शिक्षकों की नियुक्ति से दिव्यांग बच्चों की शिक्षा में आ रही बाधाएं कम होंगी, वहीं करियर काउंसलर छात्रों को सही दिशा देने में सहायक होंगे। लेखाकार और अन्य सहायक स्टाफ की नियुक्ति से प्रशासनिक कार्य अधिक सुचारु और कुशल बनेंगे। बैठक में सुश्री दीप्ति सिंह, राज्य परियोजना निदेशक, समग्र शिक्षा उत्तराखण्ड, कुलदीप गैरोला, अपर राज्य परियोजना निदेशक, समग्र शिक्षा उत्तराखण्ड, अजीत भण्डारी, उप राज्य परियोजना निदेशक, समग्र शिक्षा उत्तराखण्ड, भगवती प्रसाद मैन्दोली, स्टॉफ ऑफिसर, समग्र शिक्षा उत्तराखण्ड के साथ-साथ चयनित आउटसोर्स एजेंसी के प्रतिनिधि मोर सिंह व हरिओम भी उपस्थित रहे। सभी अधिकारियों ने मंत्री द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने और भर्ती प्रक्रिया को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का आश्वासन दिया। यह एक महत्वपूर्ण पहल है जो न केवल युवाओं को रोजगार प्रदान करेगी, बल्कि उत्तराखंड के शिक्षा परिदृश्य को मजबूत करने में भी सहायक सिद्ध होगी। इन नियुक्तियों के बाद, उम्मीद है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का स्तर और भी बेहतर होगा, जिसका सीधा लाभ हजारों छात्रों को मिलेगा।

उत्तराखंड में शिक्षा विभाग में 1556 पदों पर आउटसोर्सिंग से होगी भर्ती, हजारों युवाओं को मिलेगा रोजगार

देहरादून, 15 जुलाई 2025 (समय बोल रहा): उत्तराखंड के विद्यालयी शिक्षा विभाग में जल्द ही सैकड़ों युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलने जा रहे हैं। विभाग समग्र शिक्षा अभियान के तहत स्वीकृत 1556 संविदा पदों को आउटसोर्सिंग के माध्यम से भरने की तैयारी में है। इस महत्वपूर्ण पहल को लेकर विभागीय मंत्री ने अधिकारियों…

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देहरादून, 14 जुलाई 2025 ( समय बोल रहा )– उत्तराखंड में पंचायत उपचुनावों को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई में आज एक बड़ा फैसला आया, जिससे चुनावी प्रक्रिया में आई अनिश्चितता समाप्त हो गई है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग ने निर्वाचन प्रतीक (चुनाव चिन्ह) आवंटन की प्रक्रिया को तत्काल प्रभाव से बहाल कर दिया है। न्यायालय ने न केवल आयोग को कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी, बल्कि इस तरह के चुनाव को 'सुचारू रूप से जारी रखने' की मंजूरी भी दी, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि चुनाव प्रक्रिया अब नहीं रुकेगी। बीते दिन की अनिश्चितता और आज का फैसला दरअसल, रिट याचिका संख्या 503 (एम०बी०) 2025 – शक्ति सिंह बर्थवाल बनाम राज्य निर्वाचन आयोग एवं अन्य में 11 जुलाई 2025 को उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के बाद, आयोग के सामने कुछ कानूनी स्पष्टता की आवश्यकता थी। इसी कारण, आयोग ने 13 जुलाई 2025 को आदेश संख्या 1759 के माध्यम से, 14 जुलाई 2025 को होने वाली प्रतीक आवंटन की कार्यवाही को दोपहर 2:00 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया था। राज्य भर के उम्मीदवारों, राजनीतिक दलों और आम जनता की नजरें हाई कोर्ट पर टिकी थीं, क्योंकि इस फैसले पर ही चुनाव का भविष्य टिका था। आज, 14 जुलाई 2025 को हुई सुनवाई में, माननीय उच्च न्यायालय ने राज्य निर्वाचन आयोग को स्पष्ट निर्देश दिए। न्यायालय ने आयोग को आश्वस्त किया कि वह निर्धारित चुनावी प्रक्रिया को जारी रख सकता है। न्यायालय के इस रुख के बाद, निर्वाचन आयोग ने बिना किसी देरी के, चुनाव चिन्ह आवंटन के लिए संशोधित कार्यक्रम जारी कर दिया। संशोधित कार्यक्रम जारी: आज ही शुरू हुआ काम, कल भी जारी रहेगा उच्च न्यायालय से निर्देश प्राप्त होते ही, राज्य निर्वाचन आयोग, उत्तराखंड ने एक संशोधित आदेश जारी किया। इस आदेश में स्पष्ट किया गया है कि: आज 14 जुलाई 2025 को दोपहर 2:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक निर्वाचन प्रतीक आवंटन की कार्यवाही संचालित की जाएगी। शेष निर्वाचन प्रतीक आवंटन की प्रक्रिया 15 जुलाई 2025 को प्रातः 8:00 बजे से कार्य समाप्ति तक पूरी कराई जाएगी। इस फैसले ने उन हजारों उम्मीदवारों के लिए बड़ी राहत लाई है, जो पिछले 24 घंटों से अनिश्चितता के दौर में थे। प्रतीक आवंटन के बिना, वे अपनी चुनाव प्रचार सामग्री जैसे पोस्टर, बैनर और पैम्फलेट नहीं बनवा पा रहे थे, जिससे उनकी तैयारियों में बाधा आ रही थी। अब प्रक्रिया फिर से शुरू होने से उनके अभियान में नई ऊर्जा का संचार हुआ है। आयोग ने अधिकारियों को दिए तत्काल निर्देश राज्य निर्वाचन आयोग ने अपनी अधिसूचना (संशोधित) संख्या 1303, दिनांक 28 जून 2025 को इस सीमा तक संशोधित माना है, जिसका सीधा अर्थ है कि केवल प्रतीक आवंटन का कार्यक्रम बदला है, बाकी सभी चुनावी प्रक्रियाएं पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही संपन्न कराई जाएंगी। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि चुनाव की पूरी प्रक्रिया अब बिना किसी रुकावट के चलेगी। यह आदेश समस्त जिलाधिकारियों, उप जिला निर्वाचन अधिकारियों, सचिव पंचायतीराज एवं संबंधित अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से भेज दिया गया है ताकि जमीनी स्तर पर भी किसी तरह का कोई भ्रम न रहे और पंचायत चुनावों की प्रक्रिया पारदर्शी, निष्पक्ष और समयबद्ध तरीके से पूरी की जा सके। यह कदम यह भी दर्शाता है कि प्रशासन और न्यायपालिका के बीच बेहतरीन समन्वय है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत किया जा रहा है। कानूनी प्रक्रिया और लोकतंत्र की जीत यह पूरा घटनाक्रम यह साबित करता है कि भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। भले ही एक याचिका के कारण कुछ समय के लिए चुनावी प्रक्रिया रुकी, लेकिन यह सुनिश्चित किया गया कि पूरी प्रक्रिया कानूनी रूप से सही और न्यायसंगत हो। उच्च न्यायालय ने भी मामले की गंभीरता को समझते हुए जल्द सुनवाई की और स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए, जिससे चुनाव में देरी नहीं हुई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला सभी उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के हित में है। अब वे अपने अभियान को बिना किसी कानूनी डर के आगे बढ़ा सकते हैं। यह उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार में तेजी आएगी और मतदाता भी पूरे उत्साह के साथ मतदान प्रक्रिया में हिस्सा लेंगे। इस कानूनी उलझन का समाधान होने के बाद, उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में चुनावी माहौल फिर से गरमा गया है। अब सभी की निगाहें 15 जुलाई की सुबह पर टिकी हैं, जब शेष उम्मीदवारों को उनके चुनाव चिन्ह आवंटित होंगे और वे पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरेंगे।

ब्रेकिंग न्यूज़: उत्तराखंड में पंचायत चुनाव को हाईकोर्ट की मंजूरी, अब नहीं रुकेगा चुनाव चिन्ह आवंटन

देहरादून, 14 जुलाई 2025 ( समय बोल रहा )– उत्तराखंड में पंचायत उपचुनावों को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई में आज एक बड़ा फैसला आया, जिससे चुनावी प्रक्रिया में आई अनिश्चितता समाप्त हो गई है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग ने निर्वाचन प्रतीक (चुनाव चिन्ह) आवंटन की प्रक्रिया को…

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देहरादून 13 जुलाई, 2025 (समय बोल रहा)– उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की सरगर्मियों के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है, जिसने चुनावी प्रक्रिया को फिलहाल के लिए रोक दिया है। कल यानी 14 जुलाई, 2025 को होने वाला चुनाव चिन्ह का आवंटन फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। राज्य निर्वाचन आयोग ने यह फैसला नैनीताल स्थित उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक आदेश के बाद लिया है, जिससे चुनावी मैदान में उतरे हजारों प्रत्याशियों के लिए अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई है। उक्त आदेश जारी करते हुए राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने बताया कि हाईकोर्ट, उत्तराखंड, नैनीताल में एक रिट याचिका दाखिल की गई थी। यह याचिका शक्ति सिंह बर्थवाल बनाम राज्य निर्वाचन आयोग एवं अन्य के नाम से योजित थी। माननीय न्यायालय ने इस पर सुनवाई करते हुए दिनांक 11 जुलाई, 2025 को एक आदेश पारित किया था। आयोग के अनुसार, इस आदेश के कुछ बिंदुओं पर स्पष्टता (clarification) प्राप्त करने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग, उत्तराखंड द्वारा न्यायालय में एक प्रार्थना-पत्र दाखिल किया गया है। आयोग का यह कदम कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के लिए लिया गया है, और इस पर हाईकोर्ट में 14 जुलाई, 2025 को पूर्वाह्न में सुनवाई होनी नियत हुई है। चूंकि चुनाव चिन्हों का आवंटन और अन्य महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं इसी के बाद होनी थीं, इसलिए राज्य निर्वाचन आयोग ने यह फैसला लिया कि जब तक न्यायालय से कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं मिल जाता, तब तक चुनाव चिन्ह आवंटन का कार्य रोक दिया जाए। मैदान में उतरे उम्मीदवारों की रणनीति पर 'ब्रेक' चुनाव चिन्हों का आवंटन स्थगित होने से चुनावी मैदान में उतरे सभी उम्मीदवारों की रणनीति पर अचानक 'ब्रेक' लग गया है। चुनाव चिन्ह मिलने के बाद ही कोई भी उम्मीदवार अपने प्रचार अभियान को अंतिम रूप देता है। यह चिन्ह ही उसके पोस्टर, बैनर, और डोर-टू-डोर कैंपेन का मुख्य आधार होता है। कई उम्मीदवारों ने तो चुनाव चिन्ह मिलने की तारीख को देखते हुए पहले ही पोस्टर और अन्य प्रचार सामग्री का डिजाइन तैयार करवा लिया था। एक स्थानीय उम्मीदवार, जो अपनी पहचान गुप्त रखना चाहते थे, ने बताया, "हम सब कल के दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। हमने अपने समर्थकों को भी तैयार रहने को कहा था। यह खबर हमारे लिए एक बड़ा झटका है। हमें नहीं पता कि अब हम आगे क्या करें।" एक अन्य प्रत्याशी ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि इस अनिश्चितता से न केवल उनका समय बर्बाद हो रहा है, बल्कि चुनाव प्रचार में लगाया गया उनका पैसा भी अधर में लटक गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कानूनी चुनौती चुनाव आयोग की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने की दिशा में एक कदम है। उनका कहना है कि याचिका में शायद वार्डों के आरक्षण, मतदाता सूची या अन्य प्रक्रियात्मक खामियों को लेकर सवाल उठाए गए होंगे। हालांकि, इससे जमीनी स्तर पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के लिए बहुत परेशानी हो रही है। न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका: निष्पक्ष चुनाव की गारंटी यह घटना एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करती है। भले ही यह कदम चुनावी प्रक्रिया में देरी कर रहा हो, लेकिन यह सुनिश्चित करता है कि पूरा चुनाव निष्पक्ष और नियमों के अनुसार हो। राज्य निर्वाचन आयोग ने भी जल्दबाजी में कोई फैसला लेने के बजाय, न्यायालय से स्पष्टता मांगकर एक सही और कानूनी रूप से मजबूत रास्ता चुना है। इससे भविष्य में किसी भी कानूनी चुनौती का सामना करने में आसानी होगी। अब सभी की निगाहें सोमवार सुबह हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई पर टिकी हुई हैं। इस सुनवाई का परिणाम ही यह तय करेगा कि उत्तराखंड में पंचायत चुनावों का अगला कदम क्या होगा। अगर हाईकोर्ट आयोग के स्पष्टीकरण से संतुष्ट होता है और उसे आगे बढ़ने की अनुमति देता है, तो चुनाव प्रक्रिया फिर से शुरू हो जाएगी। लेकिन अगर न्यायालय कोई नया आदेश देता है या किसी विशेष प्रक्रिया में सुधार के लिए कहता है, तो चुनाव की पूरी समय-सारणी में बदलाव हो सकता है। फिलहाल, चुनाव चिन्हों की प्रतीक्षा कर रहे हजारों उम्मीदवार, उनके समर्थक और राजनीतिक दल सभी अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं। चुनाव की रणभेरी कुछ समय के लिए शांत हो गई है और सभी उम्मीदवार न्याय के देवता के निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। यह घटना बताती है कि पंचायत चुनाव, जो अक्सर ग्रामीण राजनीति का सबसे बड़ा महोत्सव माना जाता है, अब कानूनी और तकनीकी पेचीदगियों से भी प्रभावित होने लगा है।

उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया थमी: हाईकोर्ट के आदेश पर चुनाव चिन्ह आवंटन स्थगित, अनिश्चितता के घेरे में हजारों प्रत्याशी

देहरादून 13 जुलाई, 2025 (समय बोल रहा)– उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की सरगर्मियों के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है, जिसने चुनावी प्रक्रिया को फिलहाल के लिए रोक दिया है। कल यानी 14 जुलाई, 2025 को होने वाला चुनाव चिन्ह का आवंटन फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। राज्य निर्वाचन आयोग ने यह फैसला…

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देहरादून, 12 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड, जिसे 'देवभूमि' के नाम से जाना जाता है, अपनी आध्यात्मिक पवित्रता और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन, पिछले कुछ समय से इस पवित्र छवि को कुछ ढोंगी और फर्जी बाबाओं द्वारा धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा था। इसी को देखते हुए, उत्तराखंड पुलिस ने एक बड़ा और निर्णायक कदम उठाया है। सनातन धर्म की आड़ में लोगों को ठगने वाले ऐसे ढोंगी बाबाओं के खिलाफ राज्य में 'ऑपरेशन कालनेमि' की शुरुआत की गई है, और इसके पहले ही दिन पुलिस ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। इस ऑपरेशन के तहत प्रदेश भर से 38 ढोंगी बाबाओं को गिरफ्तार किया गया है, जिसमें एक बांग्लादेशी नागरिक भी शामिल है जो भेष बदलकर रह रहा था। 'कालनेमि': धोखेबाज का प्रतीक, ऑपरेशन का नाम पौराणिक कथाओं में 'कालनेमि' एक ऐसा असुर था, जिसने साधु का वेश धारण कर भगवान हनुमान को धोखा देने का प्रयास किया था। ठीक इसी तरह, 'ऑपरेशन कालनेमि' का नाम ऐसे धोखेबाजों के खिलाफ शुरू किए गए इस अभियान के लिए बिल्कुल सटीक है, जो सनातन धर्म की पवित्रता को ढोंग और धोखाधड़ी से खराब करते हैं। यह ऑपरेशन, पुलिस की तरफ से एक साफ संदेश है कि देवभूमि में ऐसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है, जो धर्म की आड़ में आम जनता को ठगने और उनकी भावनाओं को आहत करने का काम करते हैं। पहले ही दिन 38 गिरफ्तारियां, देहरादून और हरिद्वार मुख्य केंद्र पुलिस ने 'ऑपरेशन कालनेमि' के तहत पहले दिन ही राज्य के विभिन्न हिस्सों में ताबड़तोड़ कार्रवाई की। इस अभियान के तहत सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां दो प्रमुख जिलों से हुईं, जो धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों के केंद्र हैं: देहरादून और हरिद्वार। देहरादून में 25 गिरफ्तारियां: राजधानी देहरादून में पुलिस ने सबसे ज्यादा सक्रियता दिखाई और यहां से कुल 25 ढोंगी बाबाओं को हिरासत में लिया। ये लोग बिना किसी ज्ञान के और गलत इरादों के साथ साधु-संतों का वेश धारण किए हुए थे और लोगों को ठग रहे थे। हरिद्वार में 13 गिरफ्तारियां: वहीं, धार्मिक नगरी हरिद्वार, जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु और साधु-संत आते हैं, वहां भी पुलिस ने कड़ी कार्रवाई करते हुए 13 ढोंगी बाबाओं को पकड़ा। पुलिस ने बताया कि पकड़े गए इन 38 लोगों में से अधिकतर के पास अपनी पहचान या निवास को साबित करने के लिए कोई वैध दस्तावेज नहीं थे। अंतरराज्यीय और अंतरराष्ट्रीय कनेक्शन: बांग्लादेशी भी पकड़ा गया इस ऑपरेशन के दौरान एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ। पकड़े गए लोगों में से एक बांग्लादेशी नागरिक भी है, जो साधु का भेष बदलकर उत्तराखंड में रह रहा था। ऐसे व्यक्तियों का धार्मिक वेश में रहना न केवल सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि यह भी दिखाता है कि धर्म की आड़ में अन्य गैरकानूनी गतिविधियां भी चल सकती हैं। इसके अलावा, पुलिस ने यह भी बताया कि पकड़े गए 38 लोगों में से 20 से ज्यादा ऐसे हैं जो उत्तराखंड के निवासी नहीं हैं। वे उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, असम और अन्य राज्यों से आए हुए हैं। ये लोग अलग-अलग धार्मिक स्थलों और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर खुद को साधु बताकर रह रहे थे। जब पुलिस ने उनसे दस्तावेज मांगे, तो वे कोई भी वैध कागजात नहीं दिखा पाए, जिससे उनके इरादों पर शक और गहरा हो गया। एसएसपी अजय सिंह का सख्त संदेश: 'सनातन धर्म की आड़ में धोखा बर्दाश्त नहीं' देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) अजय सिंह ने इस ऑपरेशन की पुष्टि करते हुए कहा कि, "सनातन धर्म की आड़ में ठगी करने वालों के खिलाफ यह अभियान शुरू किया गया है। पुलिस ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई कर रही है जो बिना किसी ज्ञान के साधु-संतों का भेष धारण करके लोगों को ठग रहे हैं। ये लोग न केवल भोले-भाले लोगों को चूना लगाते हैं, बल्कि देवभूमि के स्वरूप को भी खराब करने का काम करते हैं। इससे हिंदुओं की भावना को भी ठेस पहुंचती है।" एसएसपी ने साफ किया कि इस अभियान का मुख्य उद्देश्य उन लोगों को पकड़ना है जो आस्था का दुरुपयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पुलिस इन सभी गिरफ्तार लोगों से गहन पूछताछ कर रही है और उनके आपराधिक रिकॉर्ड को भी खंगाल रही है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या ये किसी बड़े आपराधिक गिरोह से जुड़े हैं। समाज पर प्रभाव और भविष्य की चुनौतियां 'ऑपरेशन कालनेमि' की यह शुरुआत एक स्वागत योग्य कदम है, जो धर्म के नाम पर हो रही धोखाधड़ी पर लगाम लगाएगा। यह अभियान समाज में यह संदेश भी देगा कि धार्मिक वेशभूषा पहनकर कोई भी व्यक्ति आस्था का दुरुपयोग नहीं कर सकता। यह कार्रवाई उन लोगों के लिए भी एक चेतावनी है जो वैध दस्तावेजों के बिना, संदिग्ध गतिविधियों में शामिल होने के इरादे से उत्तराखंड में प्रवेश करते हैं और यहां की शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं। पुलिस की यह मुहिम एक लंबी प्रक्रिया है और यह देखना बाकी है कि यह अभियान कितने समय तक चलता है और इससे कितने और ढोंगी बाबाओं को पकड़ा जाता है। लेकिन पहले ही दि

उत्तराखंड में ‘ऑपरेशन कालनेमि’ का हल्लाबोल! देवभूमि में 38 ढोंगी बाबा दबोचे, एक बांग्लादेशी भी गिरफ्तार; सनातन धर्म की आड़ में धोखाधड़ी पर नकेल!

देहरादून, 12 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ के नाम से जाना जाता है, अपनी आध्यात्मिक पवित्रता और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन, पिछले कुछ समय से इस पवित्र छवि को कुछ ढोंगी और फर्जी बाबाओं द्वारा धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा था। इसी को देखते…

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देहरादून, 10 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की रणभेरी बजते ही, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी रणनीति पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने और पंचायती राज व्यवस्था के तीनों स्तरों पर प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य से, भाजपा ने अब ब्लॉक प्रमुख चुनावों के लिए व्यापक स्तर पर प्रभारियों की नियुक्ति कर दी है। यह कदम भाजपा की दूरगामी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसका लक्ष्य जमीनी स्तर तक अपनी पैठ बनाना है। भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी श्री मनवीर चौहान ने इस महत्वपूर्ण घोषणा की जानकारी देते हुए बताया कि प्रदेश अध्यक्ष श्री महेंद्र भट्ट के निर्देश पर, राज्य के सभी जिलों में ब्लॉक प्रमुख चुनावों के लिए योग्य और अनुभवी पदाधिकारियों को प्रभारी घोषित कर दिया गया है। यह नियुक्तियां पार्टी की संगठनात्मक शक्ति और आगामी चुनावों के प्रति उसकी गंभीरता को दर्शाती हैं। ब्लॉक प्रमुख चुनाव: ग्रामीण सत्ता की दूसरी सबसे बड़ी सीढ़ी ग्राम प्रधान के बाद, ब्लॉक प्रमुख का पद ग्रामीण सत्ता संरचना की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण सीढ़ी माना जाता है। ब्लॉक प्रमुख, क्षेत्र पंचायत समिति (ब्लॉक पंचायत) का मुखिया होता है, जो कई ग्राम पंचायतों को जोड़कर बनता है। यह पद ग्रामीण विकास योजनाओं के क्रियान्वयन, फंड्स के वितरण और ब्लॉक स्तर पर प्रशासनिक समन्वय में अहम भूमिका निभाता है। हालांकि, ब्लॉक प्रमुख का चुनाव सीधे जनता द्वारा नहीं होता, बल्कि क्षेत्र पंचायत सदस्यों द्वारा किया जाता है, जो पहले ग्राम पंचायत चुनावों में चुनकर आते हैं। ऐसे में, ब्लॉक प्रमुख के चुनाव के लिए प्रभारियों की नियुक्ति भाजपा की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है ताकि वे क्षेत्र पंचायत सदस्यों के बीच अपना प्रभाव स्थापित कर सकें और पार्टी समर्थित उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित कर सकें। भाजपा की रणनीति: जमीनी स्तर पर पकड़ और संगठनात्मक मजबूती भाजपा ने इन प्रभारियों की नियुक्ति करके यह स्पष्ट कर दिया है कि वह पंचायत चुनावों को कितनी गंभीरता से ले रही है। इन प्रभारियों का मुख्य कार्य संबंधित ब्लॉकों में चुनावी रणनीति तैयार करना, योग्य उम्मीदवारों की पहचान करना और उन्हें समर्थन देना, स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय स्थापित करना और यह सुनिश्चित करना है कि पार्टी समर्थित उम्मीदवार चुनाव जीतें। यह कदम भाजपा को ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पकड़ और मजबूत करने में मदद करेगा, जिससे भविष्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी पार्टी को फायदा मिल सकता है। इन नियुक्तियों के माध्यम से भाजपा ग्रामीण मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बढ़ाने और उन्हें पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों से जोड़ने का प्रयास कर रही है। जिलावार प्रभारियों की लंबी सूची: अनुभवी नेताओं पर भरोसा भाजपा ने ब्लॉक प्रमुख चुनावों के लिए जिन प्रभारियों की घोषणा की है, उनमें पार्टी के कई अनुभवी और जमीनी स्तर पर सक्रिय नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह सूची प्रदेश के सभी जिलों और उनके अंतर्गत आने वाले विभिन्न ब्लॉकों को कवर करती है, जिससे स्पष्ट होता है कि भाजपा ने इस चुनाव के लिए व्यापक स्तर पर तैयारी की है: उत्तरकाशी जनपद: नौगांव ब्लॉक: डॉ. विजय बडोनी पुरोला ब्लॉक: श्री सत्ये सिंह राणा मोरी ब्लॉक: श्री नारायण सिंह चौहान चिनयौलीसैन: श्री जगत सिंह चौहान भटवाड़ी: श्री राम सुंदर नौटियाल डूंडा: श्री धन सिंह नेगी चमोली जनपद: दसौली: श्री राजकुमार पुरोहित पोखरी: श्री हरक सिंह नेगी ज्योतिर्मठ: श्री रामचंद्र गौड़ नंदा नगर: श्री समीर मिश्रा नारायणबगड़: श्री रघुवीर सिंह बिष्ट थराली: श्री गजेंद्र सिंह रावत देवल: श्री विनोद नेगी गैरसैण: श्री कृष्ण मणि थपलियाल कर्णप्रयाग: श्री विक्रम भंडारी रुद्रप्रयाग जनपद: अगस्तमुनि: श्री रमेश गाड़िया ऊखीमठ: श्री वाचस्पति सेमवाल जखोली: श्री रमेश मैखुरी टिहरी जनपद: भिलंगना: श्री अतर सिंह तोमर कीर्ति नगर: श्री विनोद रतूड़ी देवप्रयाग: श्री जोत सिंह बिष्ट नरेंद्र नगर: श्री रविंद्र राणा प्रताप नगर: श्री महावीर सिंह रंगड़ जाखड़ीधार: श्री सुभाष रमोला चंबा: श्री दिनेश घने थौलधार: श्री विनोद सुयाल जौनपुर: श्री खेम सिंह चौहान देहरादून जनपद: कालसी: श्री दिगंबर नेगी चकराता: श्री भुवन विक्रम डबराल विकासनगर: श्री यशपाल नेगी सहसपुर: श्री संजय गुप्ता रायपुर: श्री ओमवीर राघव डोईवाला: श्री नलिन भट्ट पौड़ी जनपद: पौड़ी: श्री ऋषि कंडवाल कोट: श्री वीरेंद्र रावत क्लजीखाल: श्री सुधीर जोशी खिर्सू: श्री मीरा रतूड़ी थलीसैंण: श्रीमती सुषमा रावत पाबो: श्री यशपाल बेनाम पोखडा: श्री जगमोहन रावत एकेश्वर: श्री विकास कुकरेती बीरोंखाल: श्री गिरीश पैन्यूली कोटद्वार: 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ढंग से लागू किया जा सके। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा की यह 'मास्टरस्ट्रोक' रणनीति ब्लॉक प्रमुख चुनावों में कितनी सफल होती है और उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में सत्ता का समीकरण कैसे बदलता है।

जमीनी जंग की तैयारी! भाजपा ने उतारे ब्लॉक प्रमुख चुनावों के ‘प्रभारी’, हर ब्लॉक के लिए कमान सौंपी, जानें किसे मिली जिम्मेदारी

देहरादून, 10 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की रणभेरी बजते ही, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी रणनीति पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने और पंचायती राज व्यवस्था के तीनों स्तरों पर प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य…

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देहरादून, 9 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में आज हुई कैबिनेट बैठक में कई महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रस्तावों पर मुहर लगाई गई है। सचिवालय में सुबह 12 बजे शुरू हुई और लगभग 2 घंटे तक चली इस बैठक में राज्य सरकार ने जनता के हित में कई बड़े निर्णय लिए हैं। इनमें राज्य की पहली जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी को मंजूरी मिलना और विधवा व वृद्धावस्था पेंशन को लेकर लिया गया एक बड़ा सामाजिक निर्णय सबसे अहम हैं, जो सीधे तौर पर आम लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगे। पंचायत चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने के कारण, इस कैबिनेट बैठक की आधिकारिक ब्रीफिंग नहीं हो पाई। हालांकि, विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, इन फैसलों को राज्य के विकास और सामाजिक कल्याण की दिशा में महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है। उत्तराखंड की ऊर्जा क्रांति: पहली जियोथर्मल पॉलिसी को मंजूरी कैबिनेट बैठक का सबसे महत्वपूर्ण फैसला उत्तराखंड की पहली जियोथर्मल एनर्जी पॉलिसी को मंजूरी देना है। यह एक गेमचेंजर पॉलिसी साबित हो सकती है, खासकर उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य के लिए जहां नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की अपार संभावनाएं हैं। जियोथर्मल ऊर्जा, धरती की आंतरिक गर्मी का उपयोग कर बिजली उत्पादन करने की तकनीक है, जो स्वच्छ, निरंतर और पर्यावरण के अनुकूल होती है। उत्तराखंड में भूगर्भीय ताप (जियोथर्मल) की क्षमता व्यापक है, विशेषकर हिमालयी क्षेत्रों में। इस नीति को मंजूरी मिलने से राज्य में जियोथर्मल ऊर्जा के अन्वेषण, विकास और दोहन का रास्ता खुल गया है। यह न केवल राज्य की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी सहायक होगा। इससे राज्य में नए निवेश आकर्षित होंगे, जिससे रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा। यह फैसला उत्तराखंड को हरित ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी राज्यों में से एक बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। लाखों परिवारों को राहत: अब बेटे के 18 साल पर भी नहीं रुकेगी विधवा/वृद्धा पेंशन समाज कल्याण विभाग से जुड़ा एक और ऐतिहासिक और मानवीय फैसला कैबिनेट ने लिया है, जो सीधे तौर पर समाज के कमजोर और जरूरतमंद तबके को राहत पहुंचाएगा। अब तक के नियमों के तहत, विधवा या वृद्धावस्था पेंशन अक्सर तब रोक दी जाती थी जब पेंशन धारक का पुत्र 18 वर्ष का हो जाता था, यह मानते हुए कि अब वह अपनी माँ या बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल कर सकता है। लेकिन, कैबिनेट ने इस नियम में बड़ा बदलाव करते हुए यह निर्णय लिया है कि पुत्र के 18 साल पूरे होने पर भी वृद्धावस्था और विधवा पेंशन मिलती रहेगी। यह उन लाखों माताओं और बुजुर्गों के लिए एक बड़ी राहत है जो अक्सर अपने बच्चों के बालिग होने के बाद भी आर्थिक रूप से कमजोर रहते हैं और पेंशन पर ही निर्भर होते हैं। यह फैसला समाज के एक बड़े वर्ग को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करेगा और उन्हें अनिश्चितता के दौर में आर्थिक रूप से सशक्त बनाएगा। यह धामी सरकार की सामाजिक संवेदनशीलता और कल्याणकारी नीतियों का प्रतीक माना जा रहा है। बुनियादी ढांचे और सुशासन पर भी अहम मुहर कैबिनेट बैठक में केवल ऊर्जा और सामाजिक कल्याण ही नहीं, बल्कि राज्य के बुनियादी ढांचे और सुशासन से जुड़े कई अन्य महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर भी मुहर लगी है। सूत्रों के मुताबिक, इन प्रस्तावों में शामिल हैं: पुलों की वहन क्षमता का उन्नयन: पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग) के तहत प्रदेश में 'बी' ग्रेड के पुलों को 'ए' ग्रेड में अपग्रेड किए जाने का फैसला लिया गया है। इसके लिए एक प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (PMU) की स्थापना को भी मंजूरी दी गई है, जो इन पुलों की वहन क्षमता बढ़ाने के लिए अध्ययन और योजना तैयार करेगी। यह निर्णय पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, जहां मजबूत पुल सड़कें और आवागमन की जीवनरेखा होते हैं। इससे कनेक्टिविटी बेहतर होगी और दुर्घटनाओं का जोखिम भी कम होगा। डिजिटल फॉरेंसिक लेबोरेटरी: राज्य कर विभाग में डिजिटल फॉरेंसिक लेबोरेटरी की स्थापना को मंजूरी दी गई है। यह लैब डिजिटल अपराधों, साइबर धोखाधड़ी और वित्तीय घोटालों की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जिससे राज्य की जांच एजेंसियों की क्षमताएं बढ़ेंगी और वित्तीय अपराधों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। वित्त सेवा संवर्ग का पुनर्गठन: उत्तराखंड के वित्त सेवा संवर्ग के पुनर्गठन को भी मंजूरी मिल गई है। यह कदम राज्य के वित्तीय प्रबंधन को और अधिक कुशल और आधुनिक बनाने की दिशा में उठाया गया है। सतर्कता विभाग का सशक्तिकरण: सतर्कता विभाग के संशोधित ढांचे को मंजूरी दी गई है, जिसके तहत इसमें पदों की संख्या बढ़ाकर 152 कर दी गई है। यह भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है और राज्य में पारदर्शिता एवं जवाबदेही को मजबूत करेगा। खनिज अन्वेषण और फाउंडेशन न्यास: उत्तराखंड राज्य खनिज अन्वेषण न्यास, 2025 और उत्तराखंड जिला खनिज फाउंडेशन न्यास, 2025 को प्रख्यापित किए जाने को भी मंजूरी मिली है। यह राज्य के खनिज संसाधनों के अन्वेषण, प्रबंधन और खनन प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों के कल्याण के लिए एक व्यवस्थित ढांचा प्रदान करेगा। धामी सरकार का 'समग्र विकास' विजन ये सभी फैसले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के 'समग्र विकास' और 'सबका साथ, सबका विकास' के विजन को दर्शाते हैं। एक ओर जहां जियोथर्मल पॉलिसी और पुलों का उन्नयन राज्य के आर्थिक और भौतिक विकास को गति देगा, वहीं विधवा/वृद्धा पेंशन में बदलाव और सतर्कता विभाग का सशक्तिकरण सामाजिक न्याय और सुशासन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। हालांकि, पंचायत चुनाव की आचार संहिता के चलते इन फैसलों का विस्तृत विवरण अभी सामने नहीं आया है, लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही सरकार इन महत्वपूर्ण निर्णयों को जनता के सामने रखेगी और इनके क्रियान्वयन की प्रक्रिया शुरू होगी। यह कैबिनेट बैठक निश्चित रूप से उत्तराखंड के भविष्य के लिए कई नई राहें खोलेगी।

उत्तराखंड कैबिनेट बैठक का ऐतिहासिक फैसला: राज्य की पहली जियोथर्मल पॉलिसी को मिली हरी झंडी, अब बेटे के 18 साल पूरे होने पर भी नहीं रुकेगी विधवा/वृद्धा पेंशन! आम आदमी को बड़ी राहत

देहरादून, 9 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में आज हुई कैबिनेट बैठक में कई महत्वपूर्ण और दूरगामी प्रस्तावों पर मुहर लगाई गई है। सचिवालय में सुबह 12 बजे शुरू हुई और लगभग 2 घंटे तक चली इस बैठक में राज्य सरकार ने जनता के…

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देहरादून, 08 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है, जिसने कई छोटे राजनीतिक दलों के अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और चुनाव आयोग ने राज्य में पंजीकृत 6 अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (RUPPs) को नोटिस जारी किया है। इन दलों पर आरोप है कि वे पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनैतिक दल बने रहने की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। आयोग के इस कदम ने इन दलों के लिए 21 जुलाई की शाम 5 बजे तक का अल्टीमेटम दिया है, जिसके बाद उनके अंतिम डीलिस्टिंग (पंजीकरण रद्द करने) का निर्णय लिया जाएगा। यह कार्रवाई उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। क्यों चला आयोग का 'डंडा'? शर्तों पर खरे नहीं उतर रहे कई दल भारत निर्वाचन आयोग, देश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों के पंजीकरण और उनके कामकाज पर कड़ी नजर रखता है। आयोग के निर्देशानुसार, उत्तराखंड में कुल 42 पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (RUPPs) हैं। ये वो दल होते हैं, जिन्हें राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त वोट प्रतिशत या सीटें नहीं मिली होतीं, लेकिन वे चुनाव आयोग के पास पंजीकृत होते हैं। हालांकि, चुनाव आयोग की जांच में सामने आया है कि इन 42 दलों में से कई ऐसे हैं जो 'पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनैतिक दल' बने रहने की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इन शर्तों में मुख्य रूप से शामिल हैं: नियमित आंतरिक चुनाव: दलों को अपने भीतर नियमित रूप से संगठनात्मक चुनाव कराने होते हैं, ताकि आंतरिक लोकतंत्र बना रहे। वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट जमा करना: वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखने के लिए दलों को हर साल अपनी आय-व्यय की ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंपनी होती है। योगदान रिपोर्ट दाखिल करना: दलों को अपने प्राप्त चंदे (कंट्रीब्यूशन) की जानकारी आयोग को देनी होती है। चुनावी गतिविधियों में भागीदारी: दलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे लगातार चुनाव (विधानसभा या लोकसभा) में भाग लें, भले ही वे सीटें न जीतें। सक्रिय कार्यालय का पता: आयोग ने विशेष रूप से यह भी पाया है कि इन दलों के कार्यालय का कोई सही या सक्रिय पता नहीं है। यानी ये दल केवल कागजों पर मौजूद हैं, जमीनी स्तर पर इनकी कोई सक्रियता नहीं दिख रही है। आयोग ने इन्हीं मानदंडों के आधार पर उत्तराखंड के 6 ऐसे विशिष्ट दलों की पहचान की है, जिन्हें अब नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया है। अस्तित्व पर खतरा: 21 जुलाई शाम 5 बजे की डेडलाइन नोटिस प्राप्त करने वाले इन 6 दलों को 21 जुलाई, शाम 5 बजे तक अपना जवाब चुनाव आयोग को भेजना होगा। इस जवाब में उन्हें यह साबित करना होगा कि वे आयोग द्वारा निर्धारित सभी शर्तों का पालन कर रहे हैं या क्यों उन्हें डीलिस्ट नहीं किया जाना चाहिए। यदि ये दल निर्धारित समय-सीमा के भीतर संतोषजनक जवाब प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं या अपने दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं दे पाते हैं, तो भारत निर्वाचन आयोग इनकी अंतिम डीलिस्टिंग का निर्णय लेगा। डीलिस्टिंग का अर्थ है कि इन दलों का पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा, और वे अब चुनाव आयोग द्वारा पंजीकृत राजनीतिक दल नहीं रह जाएंगे। क्यों महत्वपूर्ण है यह कार्रवाई? पारदर्शिता और जवाबदेही की पहल चुनाव आयोग द्वारा यह कार्रवाई केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि देश भर में ऐसे निष्क्रिय और गैर-अनुपालनकारी राजनीतिक दलों के खिलाफ अभियान का हिस्सा है। आयोग का मुख्य उद्देश्य है कि: राजनीतिक प्रणाली को साफ-सुथरा बनाना: ऐसे दल जो केवल कागजों पर मौजूद हैं और जिनका कोई वास्तविक राजनीतिक उद्देश्य नहीं है, उन्हें प्रणाली से हटाना। फंडिंग में पारदर्शिता: कई बार ऐसे निष्क्रिय दलों का उपयोग धन के लेन-देन या कर चोरी के लिए भी किया जाता है। आयोग ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगाना चाहता है। संसाधनों का कुशल उपयोग: चुनाव आयोग के सीमित संसाधनों का उपयोग केवल सक्रिय और वास्तविक राजनीतिक दलों के लिए हो। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करना: केवल वास्तविक और सक्रिय दल ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लें, जिससे राजनीतिक प्रणाली की विश्वसनीयता बढ़े। यह कदम उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य में भी एक नई बहस छेड़ सकता है, खासकर उन छोटे दलों के बीच जो अपनी पहचान बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रभाव और चुनौतियाँ: क्या खोएंगे ये दल? यदि इन 6 दलों का पंजीकरण रद्द होता है, तो उन्हें कई लाभों से वंचित होना पड़ेगा, जिनमें शामिल हैं: निर्वाचक नामावली (Electoral Rolls) की निःशुल्क प्रतियां प्राप्त करने का अधिकार। सार्वजनिक प्रसारकों (जैसे दूरदर्शन और आकाशवाणी) पर मुफ्त हवाई समय। चुनाव के दौरान अपने उम्मीदवारों के लिए साझा चुनाव चिह्न की सुविधा (यदि आयोग द्वारा आवंटित की जाती है)। डीलिस्ट होने के बाद, यदि ये दल भविष्य में चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो उन्हें नए सिरे से पंजीकरण प्रक्रिया से गुजरना होगा, जो एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है। यह चुनौती इन दलों के लिए उनके अस्तित्व को बचाने की आखिरी लड़ाई साबित हो सकती है। चुनाव आयोग का यह कदम स्पष्ट संदेश है कि राजनीतिक दलों को अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेना होगा और केवल कागजों पर पंजीकृत होकर ही राजनीतिक दल बने नहीं रहा जा सकता। उत्तराखंड में जिन दलों को नोटिस मिला है, उन्हें अब 21 जुलाई तक अपने अस्तित्व को बचाने के लिए मजबूत दलीलें और प्रमाण पेश करने होंगे। इस फैसले से राज्य की छोटी राजनीतिक पार्टियों के कामकाज में निश्चित रूप से अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही देखने को मिलेगी।

उत्तराखंड की सियासत में भूचाल! चुनाव आयोग का ‘डंडा’ चला, 6 राजनीतिक दलों पर लटकी ‘अस्तित्व’ की तलवार, 21 जुलाई तक ‘आखिरी मौका’

देहरादून, 08 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है, जिसने कई छोटे राजनीतिक दलों के अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और चुनाव आयोग ने राज्य में पंजीकृत 6 अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (RUPPs) को नोटिस जारी किया…

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tristariye chunav uttarakhand ayi datye 10 jjulai ko hoga eletion 1 1

55 हजार ग्राम पंचायत सदस्य पद ‘लावारिस’? उत्तराखंड पंचायत चुनाव में चौंकाने वाली तस्वीर, क्या खाली रह जाएंगी हजारों गांवों की सीटें?

देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का ‘महाकुंभ’…

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बिग ब्रेकिंग: उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025 में ऐतिहासिक बदलाव! नतीजे ऑनलाइन, वोटर लिस्ट घर बैठे, खर्च सीमा बढ़ी-निगरानी सख्त; आयोग ने ‘विश्वसनीयता’ को दी नई परिभाषा

देहरादून, 30 जून, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड में आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2025 को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग ने बड़े और दूरगामी बदलावों की घोषणा की है। इन अभूतपूर्व सुधारों का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को पहले से कहीं अधिक विश्वसनीय, पारदर्शी और जनसुलभ बनाना है। राज्य निर्वाचन आयुक्त श्री सुशील कुमार…

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