अक्षय तृतीया पर रुद्रपुर में धर्मगुरुओं और प्रशासन की साझी पहल, बाल विवाह मुक्त भारत अभियान का सशक्त शुभारंभ

रुद्रपुर, 30 अप्रैल 2025 – (समय बोल रहा ) अक्षय तृतीया पर धर्मगुरुओं और प्रशासन की साझी पहल, "बाल विवाह मुक्त भारत" अभियान की उधम सिंह नगर में सशक्त शुरुआत देशभर में बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए चल रहे सबसे बड़े सामाजिक नेटवर्क "जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन" के सहयोग से, उधम सिंह नगर जिले में "इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डेवलपमेंट (ISD)" द्वारा बाल विवाह के खिलाफ एक महत्वपूर्ण पहल की गई। अक्षय तृतीया के अवसर पर विकास भवन स्थित शहीद उधम सिंह सभागार में "बाल विवाह मुक्त भारत अभियान" के तहत एक कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें धर्मगुरुओं, प्रशासनिक अधिकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी व आशा कार्यकर्ताओं सहित कई संस्थाओं ने भाग लिया। कार्यशाला की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुई, जिसे विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं ने संपन्न किया। यह प्रतीकात्मक शुरुआत बाल विवाह जैसे गंभीर सामाजिक मुद्दे पर एकजुटता का संदेश देती है। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था – जिले को बाल विवाह मुक्त बनाना, बाल विवाह की सामाजिक व कानूनी जटिलताओं पर प्रकाश डालना और इसे रोकने के लिए समुदाय, प्रशासन और धार्मिक नेतृत्व को एक मंच पर लाना। अधिकारियों ने दिए ज़िम्मेदारी के निर्देश जिला कार्यक्रम अधिकारी मुकुल चौधरी ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को निर्देशित किया कि वे अपने क्षेत्र में बाल विवाह जैसी घटनाओं पर सतर्क दृष्टि रखें और यदि कहीं भी बाल विवाह की आशंका हो तो तुरंत विभाग को सूचित करें। उन्होंने बताया कि जमीनी स्तर पर कार्य करने वाली महिलाओं की भागीदारी इस सामाजिक कुप्रथा को समाप्त करने में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। जिला प्रोबेशन अधिकारी व्योमा जैन ने बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 और आपातकालीन सेवा 112 की जानकारी देते हुए बताया कि ये संसाधन बच्चों के अधिकारों की रक्षा और बाल विवाह की रोकथाम के लिए बेहद कारगर हैं। उन्होंने बताया कि बाल विवाह में लिप्त पाए जाने वाले अभिभावकों और धर्मगुरुओं के विरुद्ध कानूनन कठोर कार्यवाही का प्रावधान है। बाल विवाह से प्रभावित महिलाओं का प्रेरक अनुभव कार्यशाला के दौरान पूर्व प्रधानाचार्य पार्वती देवी ने अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि जब वे केवल 13 वर्ष की थीं, तब उनका विवाह कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि बचपन में विवाह के कारण महिलाओं को शिक्षा और आत्मनिर्भरता से वंचित होना पड़ता है। उन्होंने अपने अनुभव से बताया कि कैसे उन्होंने पर्दा प्रथा के बावजूद ससुराल पक्ष के सहयोग से एमए, बीएड की शिक्षा प्राप्त की और उत्तराखंड के दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षिका बनकर सेवा दी। बाद में वे एक इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य पद तक पहुंचीं और अब गरीब बच्चियों की शिक्षा के लिए लगातार कार्य कर रही हैं। बाल विवाह का स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि बाल विवाह केवल सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी खतरनाक है। उन्होंने बताया कि कम उम्र में गर्भधारण करने वाली लड़कियां अधिकतर कुपोषित बच्चों को जन्म देती हैं और खुद भी स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिमों से जूझती हैं। ऐसी माताओं की गर्भावस्था अक्सर "हाई रिस्क" मानी जाती है, जिससे मां और बच्चे दोनों के जीवन पर खतरा मंडराता है। धर्मगुरुओं की भूमिका और संकल्प आईएसडी के अध्यक्ष डॉ. अमित कुमार श्रीवास्तव ने "एक्सेस टू जस्टिस" अभियान के अंतर्गत जिले में बाल विवाह व बाल श्रम के खिलाफ की गई पहलों की जानकारी दी और कहा कि धर्मगुरुओं की भागीदारी से इस लड़ाई को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि अगर धर्मगुरु बाल विवाह में सहयोग करने से मना कर दें और ऐसे विवाहों का सामाजिक रूप से बहिष्कार करें, तो यह प्रथा स्वतः ही खत्म होने लगेगी। आईएसडी की परियोजना निदेशक विदु वासिनी ने कहा कि भारत तभी विकसित बन सकता है जब यहां के बच्चे बाल विवाह जैसी कुप्रथा से मुक्त हों। उन्होंने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि देश में अब भी 23.3% बाल विवाह हो रहे हैं, जो चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि धर्मगुरु यदि ऐसे विवाह संपन्न न कराएं तो समाज में बदलाव आ सकता है। कार्यक्रम के अंत में धर्मगुरुओं ने सामूहिक रूप से शपथ ली कि वे बाल विवाह का समर्थन नहीं करेंगे और जहां कहीं भी बाल विवाह की जानकारी मिलेगी, उसका विरोध करेंगे। सहभागिता कार्यशाला में चाइल्डलाइन, बाल कल्याण समिति, बाल विकास परियोजना, आशा व आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, और आईएसडी के कार्यकर्ता प्रेम, रईस, रविंद्र, आरती, बबली सरकार, रुचिता, मलिक आदि उपस्थित थे। सभी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इस सामाजिक बदलाव में सक्रिय भागीदारी का संकल्प लिया।

रुद्रपुर, 30 अप्रैल 2025 – (समय बोल रहा )
अक्षय तृतीया पर धर्मगुरुओं और प्रशासन की साझी पहल, “बाल विवाह मुक्त भारत” अभियान की उधम सिंह नगर में सशक्त शुरुआत

देशभर में बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए चल रहे सबसे बड़े सामाजिक नेटवर्क “जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन” के सहयोग से, उधम सिंह नगर जिले में “इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डेवलपमेंट (ISD)” द्वारा बाल विवाह के खिलाफ एक महत्वपूर्ण पहल की गई। अक्षय तृतीया के अवसर पर विकास भवन स्थित शहीद उधम सिंह सभागार में बाल विवाह मुक्त भारत अभियान” के तहत एक कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें धर्मगुरुओं, प्रशासनिक अधिकारियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी व आशा कार्यकर्ताओं सहित कई संस्थाओं ने भाग लिया।

कार्यशाला की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुई, जिसे विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं ने संपन्न किया। यह प्रतीकात्मक शुरुआत बाल विवाह जैसे गंभीर सामाजिक मुद्दे पर एकजुटता का संदेश देती है। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था – जिले को बाल विवाह मुक्त बनाना, बाल विवाह की सामाजिक व कानूनी जटिलताओं पर प्रकाश डालना और इसे रोकने के लिए समुदाय, प्रशासन और धार्मिक नेतृत्व को एक मंच पर लाना।

अधिकारियों ने दिए ज़िम्मेदारी के निर्देश

जिला कार्यक्रम अधिकारी मुकुल चौधरी ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को निर्देशित किया कि वे अपने क्षेत्र में बाल विवाह जैसी घटनाओं पर सतर्क दृष्टि रखें और यदि कहीं भी बाल विवाह की आशंका हो तो तुरंत विभाग को सूचित करें। उन्होंने बताया कि जमीनी स्तर पर कार्य करने वाली महिलाओं की भागीदारी इस सामाजिक कुप्रथा को समाप्त करने में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

जिला प्रोबेशन अधिकारी व्योमा जैन ने बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 और आपातकालीन सेवा 112 की जानकारी देते हुए बताया कि ये संसाधन बच्चों के अधिकारों की रक्षा और बाल विवाह की रोकथाम के लिए बेहद कारगर हैं। उन्होंने बताया कि बाल विवाह में लिप्त पाए जाने वाले अभिभावकों और धर्मगुरुओं के विरुद्ध कानूनन कठोर कार्यवाही का प्रावधान है।

बाल विवाह से प्रभावित महिलाओं का प्रेरक अनुभव

कार्यशाला के दौरान पूर्व प्रधानाचार्य पार्वती देवी ने अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि जब वे केवल 13 वर्ष की थीं, तब उनका विवाह कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि बचपन में विवाह के कारण महिलाओं को शिक्षा और आत्मनिर्भरता से वंचित होना पड़ता है। उन्होंने अपने अनुभव से बताया कि कैसे उन्होंने पर्दा प्रथा के बावजूद ससुराल पक्ष के सहयोग से एमए, बीएड की शिक्षा प्राप्त की और उत्तराखंड के दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षिका बनकर सेवा दी। बाद में वे एक इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य पद तक पहुंचीं और अब गरीब बच्चियों की शिक्षा के लिए लगातार कार्य कर रही हैं।

बाल विवाह का स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा कि बाल विवाह केवल सामाजिक समस्या नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी खतरनाक है। उन्होंने बताया कि कम उम्र में गर्भधारण करने वाली लड़कियां अधिकतर कुपोषित बच्चों को जन्म देती हैं और खुद भी स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिमों से जूझती हैं। ऐसी माताओं की गर्भावस्था अक्सर “हाई रिस्क” मानी जाती है, जिससे मां और बच्चे दोनों के जीवन पर खतरा मंडराता है।

धर्मगुरुओं की भूमिका और संकल्प

आईएसडी के अध्यक्ष डॉ. अमित कुमार श्रीवास्तव ने “एक्सेस टू जस्टिस” अभियान के अंतर्गत जिले में बाल विवाह व बाल श्रम के खिलाफ की गई पहलों की जानकारी दी और कहा कि धर्मगुरुओं की भागीदारी से इस लड़ाई को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि अगर धर्मगुरु बाल विवाह में सहयोग करने से मना कर दें और ऐसे विवाहों का सामाजिक रूप से बहिष्कार करें, तो यह प्रथा स्वतः ही खत्म होने लगेगी

आईएसडी की परियोजना निदेशक विदु वासिनी ने कहा कि भारत तभी विकसित बन सकता है जब यहां के बच्चे बाल विवाह जैसी कुप्रथा से मुक्त हों। उन्होंने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि देश में अब भी 23.3% बाल विवाह हो रहे हैं, जो चिंताजनक है। उन्होंने कहा कि धर्मगुरु यदि ऐसे विवाह संपन्न न कराएं तो समाज में बदलाव आ सकता है।

कार्यक्रम के अंत में धर्मगुरुओं ने सामूहिक रूप से शपथ ली कि वे बाल विवाह का समर्थन नहीं करेंगे और जहां कहीं भी बाल विवाह की जानकारी मिलेगी, उसका विरोध करेंगे।

सहभागिता

कार्यशाला में चाइल्डलाइन, बाल कल्याण समिति, बाल विकास परियोजना, आशा व आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, और आईएसडी के कार्यकर्ता प्रेम, रईस, रविंद्र, आरती, बबली सरकार, रुचिता, मलिक आदि उपस्थित थे। सभी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इस सामाजिक बदलाव में सक्रिय भागीदारी का संकल्प लिया।

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