उत्तराखंड में ‘सीएम पोर्टल’ का दुरुपयोग: फैक्ट्री संचालकों से अवैध वसूली का ‘गोरखधंधा’, जनता का विश्वास डगमगाया

देहरादून,17 जुलाई 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पोर्टल, जिसे जनता की समस्याओं के त्वरित समाधान और सुशासन के प्रतीक के रूप में लॉन्च किया गया था, अब कुछ असामाजिक तत्वों के लिए अवैध वसूली का जरिया बनता जा रहा है। कुंडा और जसपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्ट्री संचालकों और छोटे उद्योगपतियों को इस पोर्टल पर दर्ज कराई जा रहीं झूठी शिकायतों के आधार पर परेशान कर उनसे अवैध वसूली की कोशिशें की जा रही हैं। इस 'गोरखधंधे' ने न केवल व्यवसायों को मुश्किल में डाला है, बल्कि जनता की एक महत्वपूर्ण लोक-केंद्रित सेवा के प्रति विश्वास को भी गहरा नुकसान पहुंचाया है। कैसे हो रहा है 'लोक पोर्टल' का दुरुपयोग? मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पोर्टल (सीएम पोर्टल) को आम जनता और मुख्यमंत्री के बीच सीधा संवाद स्थापित करने के लिए बनाया गया था, ताकि नागरिक अपनी शिकायतें और सुझाव सीधे उच्च स्तर तक पहुंचा सकें और उनका समाधान हो सके। यह एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था का हिस्सा था। लेकिन, कुछ शातिर और असामाजिक तत्वों ने इसकी इसी पारदर्शिता का फायदा उठाना शुरू कर दिया है। उनकी सुनियोजित योजना यह है कि वे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, खासकर फैक्ट्रियों और छोटे उद्योगों के खिलाफ पोर्टल पर झूठी और मनगढ़ंत शिकायतें दर्ज कराते हैं। इन शिकायतों में अक्सर गंभीर आरोप लगाए जाते हैं, जैसे: अवैध निर्माण: फैक्ट्री परिसर में बिना अनुमति के निर्माण कार्य करने का आरोप। पर्यावरण नियमों का उल्लंघन: उद्योगों द्वारा प्रदूषण फैलाने या निर्धारित पर्यावरणीय मानकों का पालन न करने की झूठी शिकायतें। भूमि संबंधित विवाद: फैक्ट्री की जमीन पर कब्जा या भूमि से जुड़े विवादों का मनगढ़ंत हवाला देना। ये आरोप इतने गंभीर होते हैं कि ये सीधे संबंधित विभागों जैसे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राजस्व विभाग, या स्थानीय प्रशासन को सक्रिय कर सकते हैं, जिससे अधिकारियों द्वारा जांच या कार्रवाई शुरू होने का डर पैदा होता है। डर दिखाकर वसूली: 'अधिकारियों का झांसा देकर' हो रहा है खेल शिकायत दर्ज कराने के बाद, ये असामाजिक तत्व फैक्ट्री संचालकों और व्यवसायियों से संपर्क साधते हैं। वे उन्हें यह कहकर डराते हैं कि उनके खिलाफ सीएम पोर्टल पर गंभीर शिकायत दर्ज की गई है और जल्द ही संबंधित अधिकारी जांच या कार्रवाई के लिए पहुंचेंगे। वे उन्हें यह झांसा देते हैं कि अगर वे "नियमानुसार" मामले को निपटाना चाहते हैं, तो उन्हें पैसे देने पड़ेंगे, अन्यथा जांच और कार्रवाई के गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। यह एक सीधा-साधा ब्लैकमेलिंग का तरीका है, जिसमें पोर्टल की विश्वसनीयता और अधिकारियों की जांच की शक्ति का दुरुपयोग किया जा रहा है। छोटे व्यवसायियों के पास अक्सर इतना समय या संसाधन नहीं होता कि वे इन झूठी शिकायतों की लंबी कानूनी प्रक्रियाओं में उलझें, और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर उनसे अवैध वसूली की जाती है। वे बदनामी और सरकारी कार्रवाई से बचने के लिए पैसे देने को मजबूर हो जाते हैं। देहरादून से जसपुर-काशीपुर तक फैला है यह 'खेल' जनता की आस्था पर चोट: 'विश्वसनीयता को नुकसान', विश्वास डगमगाया सीएम पोर्टल का दुरुपयोग बेहद चिंताजनक है, क्योंकि यह सीधे तौर पर जनता के विश्वास पर चोट करता है। यह पोर्टल सरकार और जनता के बीच सीधा पुल था, जो शिकायतों के निष्पक्ष और समयबद्ध समाधान का आश्वासन देता था। जब इस तरह के 'लोक केंद्रित पोर्टल' का उपयोग अवैध वसूली के लिए होने लगता है, तो इसकी विश्वसनीयता को भारी नुकसान पहुँचता है। जनता का विश्वास डगमगाता है और उन्हें लगता है कि उनकी वास्तविक समस्याओं को भी गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, क्योंकि झूठी शिकायतों का अंबार लग जाएगा। यह स्थिति सुशासन के सिद्धांतों के खिलाफ है और इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। आवश्यकता है त्वरित और कठोर कार्रवाई की इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है: पुलिस की सक्रियता: पुलिस को ऐसे असामाजिक तत्वों के खिलाफ कठोर अभियान चलाना चाहिए। झूठी शिकायतें दर्ज करने वालों और वसूली की कोशिश करने वालों की पहचान कर उन पर तुरंत मुकदमा दर्ज कर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए। देहरादून जैसा मामला एक मिसाल कायम कर सकता है। पोर्टल पर तकनीकी सुधार: सरकार को सीएम पोर्टल पर शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया में और अधिक सत्यापन के तरीके जोड़ने चाहिए। यह ओटीपी आधारित सत्यापन, शिकायतकर्ता के पहचान पत्र का अनिवार्य अपलोड, या गंभीर शिकायतों के लिए प्रारंभिक सत्यापन कॉल शामिल हो सकते हैं, ताकि झूठी शिकायतों को दर्ज होने से पहले ही रोका जा सके। जागरूकता अभियान: व्यवसायियों और आम जनता को ऐसे ठगों से सतर्क रहने और किसी भी तरह की धमकी या वसूली की कोशिश होने पर तुरंत पुलिस को सूचना देने के लिए जागरूक किया जाना चाहिए। उन्हें डरकर पैसे न देने की सलाह दी जाए। सरकारी विभागों का समन्वय: संबंधित विभागों (जैसे पर्यावरण, राजस्व, स्थानीय निकाय) को सीएम पोर्टल पर आने वाली शिकायतों की गंभीरता और सत्यता की प्रारंभिक जांच के लिए एक त्वरित तंत्र विकसित करना चाहिए, ताकि वे अनावश्यक रूप से परेशान न हों। उत्तराखंड सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि सीएम पोर्टल, जो जनता की भलाई के लिए बनाया गया है, उसका दुरुपयोग न हो। ऐसा करके ही जनता का विश्वास बरकरार रखा जा सकेगा और राज्य में व्यापार के लिए एक सुरक्षित और भयमुक्त माहौल सुनिश्चित किया जा सकेगा।

देहरादून,17 जुलाई 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के सीएम पोर्टल, जिसे जनता की समस्याओं के त्वरित समाधान और सुशासन के प्रतीक के रूप में लॉन्च किया गया था, अब कुछ असामाजिक तत्वों के लिए अवैध वसूली का जरिया बनता जा रहा है। कुंडा और जसपुर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्ट्री संचालकों और छोटे उद्योगपतियों को इस पोर्टल पर दर्ज कराई जा रहीं झूठी शिकायतों के आधार पर परेशान कर उनसे अवैध वसूली की कोशिशें की जा रही हैं। इस ‘गोरखधंधे’ ने न केवल व्यवसायों को मुश्किल में डाला है, बल्कि जनता की एक महत्वपूर्ण लोक-केंद्रित सेवा के प्रति विश्वास को भी गहरा नुकसान पहुंचाया है।


कैसे हो रहा है ‘लोक पोर्टल’ का दुरुपयोग?

मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पोर्टल (सीएम पोर्टल) को आम जनता और मुख्यमंत्री के बीच सीधा संवाद स्थापित करने के लिए बनाया गया था, ताकि नागरिक अपनी शिकायतें और सुझाव सीधे उच्च स्तर तक पहुंचा सकें और उनका समाधान हो सके। यह एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था का हिस्सा था। लेकिन, कुछ शातिर और असामाजिक तत्वों ने इसकी इसी पारदर्शिता का फायदा उठाना शुरू कर दिया है।

उनकी सुनियोजित योजना यह है कि वे व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, खासकर फैक्ट्रियों और छोटे उद्योगों के खिलाफ पोर्टल पर झूठी और मनगढ़ंत शिकायतें दर्ज कराते हैं। इन शिकायतों में अक्सर गंभीर आरोप लगाए जाते हैं, जैसे:

  • अवैध निर्माण: फैक्ट्री परिसर में बिना अनुमति के निर्माण कार्य करने का आरोप।
  • पर्यावरण नियमों का उल्लंघन: उद्योगों द्वारा प्रदूषण फैलाने या निर्धारित पर्यावरणीय मानकों का पालन न करने की झूठी शिकायतें।
  • भूमि संबंधित विवाद: फैक्ट्री की जमीन पर कब्जा या भूमि से जुड़े विवादों का मनगढ़ंत हवाला देना।

ये आरोप इतने गंभीर होते हैं कि ये सीधे संबंधित विभागों जैसे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राजस्व विभाग, या स्थानीय प्रशासन को सक्रिय कर सकते हैं, जिससे अधिकारियों द्वारा जांच या कार्रवाई शुरू होने का डर पैदा होता है।


डर दिखाकर वसूली: ‘अधिकारियों का झांसा देकर’ हो रहा है खेल

शिकायत दर्ज कराने के बाद, ये असामाजिक तत्व फैक्ट्री संचालकों और व्यवसायियों से संपर्क साधते हैं। वे उन्हें यह कहकर डराते हैं कि उनके खिलाफ सीएम पोर्टल पर गंभीर शिकायत दर्ज की गई है और जल्द ही संबंधित अधिकारी जांच या कार्रवाई के लिए पहुंचेंगे। वे उन्हें यह झांसा देते हैं कि अगर वे “नियमानुसार” मामले को निपटाना चाहते हैं, तो उन्हें पैसे देने पड़ेंगे, अन्यथा जांच और कार्रवाई के गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

यह एक सीधा-साधा ब्लैकमेलिंग का तरीका है, जिसमें पोर्टल की विश्वसनीयता और अधिकारियों की जांच की शक्ति का दुरुपयोग किया जा रहा है। छोटे व्यवसायियों के पास अक्सर इतना समय या संसाधन नहीं होता कि वे इन झूठी शिकायतों की लंबी कानूनी प्रक्रियाओं में उलझें, और इसी कमजोरी का फायदा उठाकर उनसे अवैध वसूली की जाती है। वे बदनामी और सरकारी कार्रवाई से बचने के लिए पैसे देने को मजबूर हो जाते हैं।


देहरादून से जसपुर-काशीपुर तक फैला है यह ‘खेल’


जनता की आस्था पर चोट: ‘विश्वसनीयता को नुकसान’, विश्वास डगमगाया

सीएम पोर्टल का दुरुपयोग बेहद चिंताजनक है, क्योंकि यह सीधे तौर पर जनता के विश्वास पर चोट करता है। यह पोर्टल सरकार और जनता के बीच सीधा पुल था, जो शिकायतों के निष्पक्ष और समयबद्ध समाधान का आश्वासन देता था। जब इस तरह के ‘लोक केंद्रित पोर्टल’ का उपयोग अवैध वसूली के लिए होने लगता है, तो इसकी विश्वसनीयता को भारी नुकसान पहुँचता है। जनता का विश्वास डगमगाता है और उन्हें लगता है कि उनकी वास्तविक समस्याओं को भी गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, क्योंकि झूठी शिकायतों का अंबार लग जाएगा।

यह स्थिति सुशासन के सिद्धांतों के खिलाफ है और इस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है।


आवश्यकता है त्वरित और कठोर कार्रवाई की

इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है:

  1. पुलिस की सक्रियता: पुलिस को ऐसे असामाजिक तत्वों के खिलाफ कठोर अभियान चलाना चाहिए। झूठी शिकायतें दर्ज करने वालों और वसूली की कोशिश करने वालों की पहचान कर उन पर तुरंत मुकदमा दर्ज कर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए। देहरादून जैसा मामला एक मिसाल कायम कर सकता है।
  2. पोर्टल पर तकनीकी सुधार: सरकार को सीएम पोर्टल पर शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया में और अधिक सत्यापन के तरीके जोड़ने चाहिए। यह ओटीपी आधारित सत्यापन, शिकायतकर्ता के पहचान पत्र का अनिवार्य अपलोड, या गंभीर शिकायतों के लिए प्रारंभिक सत्यापन कॉल शामिल हो सकते हैं, ताकि झूठी शिकायतों को दर्ज होने से पहले ही रोका जा सके।
  3. जागरूकता अभियान: व्यवसायियों और आम जनता को ऐसे ठगों से सतर्क रहने और किसी भी तरह की धमकी या वसूली की कोशिश होने पर तुरंत पुलिस को सूचना देने के लिए जागरूक किया जाना चाहिए। उन्हें डरकर पैसे न देने की सलाह दी जाए।
  4. सरकारी विभागों का समन्वय: संबंधित विभागों (जैसे पर्यावरण, राजस्व, स्थानीय निकाय) को सीएम पोर्टल पर आने वाली शिकायतों की गंभीरता और सत्यता की प्रारंभिक जांच के लिए एक त्वरित तंत्र विकसित करना चाहिए, ताकि वे अनावश्यक रूप से परेशान न हों।

उत्तराखंड सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि सीएम पोर्टल, जो जनता की भलाई के लिए बनाया गया है, उसका दुरुपयोग न हो। ऐसा करके ही जनता का विश्वास बरकरार रखा जा सकेगा और राज्य में व्यापार के लिए एक सुरक्षित और भयमुक्त माहौल सुनिश्चित किया जा सकेगा।

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