महाराष्ट्र में 58वां वार्षिक निरंकारी संत समागम: भक्ति, सेवा और मानवता के संदेश






काशीपुर (पिंपरी-पुणे), 25 जनवरी 2025: “विस्तार केवल बाहर से ही नहीं, भीतर से भी होना चाहिए। हर कार्य करते हुए निरंकार प्रभु का एहसास किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए सबसे पहले उसकी पहचान आवश्यक है।” ये प्रेरक वचन सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने महाराष्ट्र के 58वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के पहले दिन विशाल मानव परिवार को संबोधित करते हुए कहे।
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और आदरणीय निरंकारी राजपिता रमित जी के पावन सान्निध्य में आयोजित इस तीन दिवसीय समागम में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु शामिल हुए। श्रद्धालुओं ने सतगुरु जी के दिव्य प्रवचनों और आशीर्वचनों का लाभ लिया।
पहले दिन का संदेश: भक्ति और सेवा का महत्व
सतगुरु माता जी ने अपने प्रवचनों में कहा कि भक्ति का कोई निश्चित समय या स्थान नहीं होता। उन्होंने समझाया, “जैसे एक फूल बिना किसी प्रयास के अपनी खुशबू चारों ओर फैलाता है, वैसे ही भक्ति का वास्तविक अनुभव बिना दिखावे के आत्मसात किया जाना चाहिए।”
भक्ति केवल एक क्रिया नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में परमात्मा की उपस्थिति का एहसास है।
सतगुरु माता जी ने यह भी स्पष्ट किया कि भक्ति के साथ मानवता की सेवा और सामाजिक कर्तव्यों का पालन परमात्मा के निराकार स्वरूप से जुड़ा हुआ है।
“सच्ची भक्ति वही है, जो मन, वचन और कर्म से परमात्मा से जुड़ती है।” यह भक्ति समाज में प्रेम, सेवा और सकारात्मक परिवर्तन का आधार बन सकती है।
दूसरे दिन का आकर्षण: सेवादल रैली
समागम के दूसरे दिन एक भव्य सेवादल रैली का आयोजन किया गया। इसमें हजारों महिला और पुरुष स्वयंसेवकों ने अपनी खाकी वर्दियों में भाग लिया। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज और आदरणीय निरंकारी राजपिता रमित जी के आगमन पर उनका भव्य स्वागत किया गया।
इस रैली में मिशन की शिक्षाओं पर आधारित लघुनाटिकाएं और शारीरिक प्रदर्शन किए गए। इन प्रस्तुतियों के माध्यम से “यात्रा विवेक की ओर” और “सेवा में कर्तव्य” जैसे महत्वपूर्ण संदेश दिए गए। शारीरिक व्यायाम और मल्लखंभ जैसे करतब भी प्रस्तुत किए गए, जिनसे मानसिक और शारीरिक तंदुरुस्ती को बढ़ावा मिला।
सतगुरु माता जी ने अपने आशीर्वचनों में सेवादल के सदस्यों को प्रेरित करते हुए कहा, “सेवा हमेशा तन्मयता और समर्पण के साथ होनी चाहिए। वर्दी पहनकर या बिना वर्दी के भी सेवा की जा सकती है, लेकिन वर्दी के साथ सेवा करने से जिम्मेदारी बढ़ जाती है।”
बाल प्रदर्शनी: बच्चों की रचनात्मकता का परिचय
समागम का प्रमुख आकर्षण बाल प्रदर्शनी रही। इसमें महाराष्ट्र के 17 शहरों से आए बच्चों ने प्रेरणादायक मॉडल्स प्रस्तुत किए।
- “विस्तार असीम की ओर”* मॉडल ने जीवन को असीम परमात्मा की ओर विस्तारित करने का संदेश दिया।
- “चाइनीज बांस की कहानी”* ने सिखाया कि जैसे बांस के पेड़ को चार साल तक लगातार पोषण देना पड़ता है और उसके बाद पांचवें साल वह तेजी से बढ़ता है, वैसे ही जीवन में किसी लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर प्रयास, संयम और विश्वास जरूरी है।
प्रदर्शनी को देखने आए श्रद्धालुओं और छात्रों ने बच्चों की रचनात्मकता की खूब प्रशंसा की। यह प्रदर्शनी जीवन जीने की सुंदर शिक्षाओं को सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने में सफल रही।
निष्कर्ष:
महाराष्ट्र के 58वें निरंकारी संत समागम ने भक्ति, सेवा और मानवता के संदेशों के माध्यम से समाज में सकारात्मकता फैलाने का प्रयास किया। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के प्रवचनों ने यह प्रेरणा दी कि जीवन में आत्मिक उन्नति के लिए भक्ति और सेवा को प्राथमिकता दें।