उत्तराखंड की सियासत में भूचाल! चुनाव आयोग का ‘डंडा’ चला, 6 राजनीतिक दलों पर लटकी ‘अस्तित्व’ की तलवार, 21 जुलाई तक ‘आखिरी मौका’

देहरादून, 08 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है, जिसने कई छोटे राजनीतिक दलों के अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और चुनाव आयोग ने राज्य में पंजीकृत 6 अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (RUPPs) को नोटिस जारी किया है। इन दलों पर आरोप है कि वे पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनैतिक दल बने रहने की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। आयोग के इस कदम ने इन दलों के लिए 21 जुलाई की शाम 5 बजे तक का अल्टीमेटम दिया है, जिसके बाद उनके अंतिम डीलिस्टिंग (पंजीकरण रद्द करने) का निर्णय लिया जाएगा। यह कार्रवाई उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। क्यों चला आयोग का 'डंडा'? शर्तों पर खरे नहीं उतर रहे कई दल भारत निर्वाचन आयोग, देश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों के पंजीकरण और उनके कामकाज पर कड़ी नजर रखता है। आयोग के निर्देशानुसार, उत्तराखंड में कुल 42 पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (RUPPs) हैं। ये वो दल होते हैं, जिन्हें राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त वोट प्रतिशत या सीटें नहीं मिली होतीं, लेकिन वे चुनाव आयोग के पास पंजीकृत होते हैं। हालांकि, चुनाव आयोग की जांच में सामने आया है कि इन 42 दलों में से कई ऐसे हैं जो 'पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनैतिक दल' बने रहने की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इन शर्तों में मुख्य रूप से शामिल हैं: नियमित आंतरिक चुनाव: दलों को अपने भीतर नियमित रूप से संगठनात्मक चुनाव कराने होते हैं, ताकि आंतरिक लोकतंत्र बना रहे। वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट जमा करना: वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखने के लिए दलों को हर साल अपनी आय-व्यय की ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंपनी होती है। योगदान रिपोर्ट दाखिल करना: दलों को अपने प्राप्त चंदे (कंट्रीब्यूशन) की जानकारी आयोग को देनी होती है। चुनावी गतिविधियों में भागीदारी: दलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे लगातार चुनाव (विधानसभा या लोकसभा) में भाग लें, भले ही वे सीटें न जीतें। सक्रिय कार्यालय का पता: आयोग ने विशेष रूप से यह भी पाया है कि इन दलों के कार्यालय का कोई सही या सक्रिय पता नहीं है। यानी ये दल केवल कागजों पर मौजूद हैं, जमीनी स्तर पर इनकी कोई सक्रियता नहीं दिख रही है। आयोग ने इन्हीं मानदंडों के आधार पर उत्तराखंड के 6 ऐसे विशिष्ट दलों की पहचान की है, जिन्हें अब नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया है। अस्तित्व पर खतरा: 21 जुलाई शाम 5 बजे की डेडलाइन नोटिस प्राप्त करने वाले इन 6 दलों को 21 जुलाई, शाम 5 बजे तक अपना जवाब चुनाव आयोग को भेजना होगा। इस जवाब में उन्हें यह साबित करना होगा कि वे आयोग द्वारा निर्धारित सभी शर्तों का पालन कर रहे हैं या क्यों उन्हें डीलिस्ट नहीं किया जाना चाहिए। यदि ये दल निर्धारित समय-सीमा के भीतर संतोषजनक जवाब प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं या अपने दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं दे पाते हैं, तो भारत निर्वाचन आयोग इनकी अंतिम डीलिस्टिंग का निर्णय लेगा। डीलिस्टिंग का अर्थ है कि इन दलों का पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा, और वे अब चुनाव आयोग द्वारा पंजीकृत राजनीतिक दल नहीं रह जाएंगे। क्यों महत्वपूर्ण है यह कार्रवाई? पारदर्शिता और जवाबदेही की पहल चुनाव आयोग द्वारा यह कार्रवाई केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि देश भर में ऐसे निष्क्रिय और गैर-अनुपालनकारी राजनीतिक दलों के खिलाफ अभियान का हिस्सा है। आयोग का मुख्य उद्देश्य है कि: राजनीतिक प्रणाली को साफ-सुथरा बनाना: ऐसे दल जो केवल कागजों पर मौजूद हैं और जिनका कोई वास्तविक राजनीतिक उद्देश्य नहीं है, उन्हें प्रणाली से हटाना। फंडिंग में पारदर्शिता: कई बार ऐसे निष्क्रिय दलों का उपयोग धन के लेन-देन या कर चोरी के लिए भी किया जाता है। आयोग ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगाना चाहता है। संसाधनों का कुशल उपयोग: चुनाव आयोग के सीमित संसाधनों का उपयोग केवल सक्रिय और वास्तविक राजनीतिक दलों के लिए हो। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करना: केवल वास्तविक और सक्रिय दल ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लें, जिससे राजनीतिक प्रणाली की विश्वसनीयता बढ़े। यह कदम उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य में भी एक नई बहस छेड़ सकता है, खासकर उन छोटे दलों के बीच जो अपनी पहचान बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। प्रभाव और चुनौतियाँ: क्या खोएंगे ये दल? यदि इन 6 दलों का पंजीकरण रद्द होता है, तो उन्हें कई लाभों से वंचित होना पड़ेगा, जिनमें शामिल हैं: निर्वाचक नामावली (Electoral Rolls) की निःशुल्क प्रतियां प्राप्त करने का अधिकार। सार्वजनिक प्रसारकों (जैसे दूरदर्शन और आकाशवाणी) पर मुफ्त हवाई समय। चुनाव के दौरान अपने उम्मीदवारों के लिए साझा चुनाव चिह्न की सुविधा (यदि आयोग द्वारा आवंटित की जाती है)। डीलिस्ट होने के बाद, यदि ये दल भविष्य में चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो उन्हें नए सिरे से पंजीकरण प्रक्रिया से गुजरना होगा, जो एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है। यह चुनौती इन दलों के लिए उनके अस्तित्व को बचाने की आखिरी लड़ाई साबित हो सकती है। चुनाव आयोग का यह कदम स्पष्ट संदेश है कि राजनीतिक दलों को अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेना होगा और केवल कागजों पर पंजीकृत होकर ही राजनीतिक दल बने नहीं रहा जा सकता। उत्तराखंड में जिन दलों को नोटिस मिला है, उन्हें अब 21 जुलाई तक अपने अस्तित्व को बचाने के लिए मजबूत दलीलें और प्रमाण पेश करने होंगे। इस फैसले से राज्य की छोटी राजनीतिक पार्टियों के कामकाज में निश्चित रूप से अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही देखने को मिलेगी।

देहरादून, 08 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा घटनाक्रम सामने आया है, जिसने कई छोटे राजनीतिक दलों के अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) और चुनाव आयोग ने राज्य में पंजीकृत 6 अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (RUPPs) को नोटिस जारी किया है। इन दलों पर आरोप है कि वे पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनैतिक दल बने रहने की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। आयोग के इस कदम ने इन दलों के लिए 21 जुलाई की शाम 5 बजे तक का अल्टीमेटम दिया है, जिसके बाद उनके अंतिम डीलिस्टिंग (पंजीकरण रद्द करने) का निर्णय लिया जाएगा। यह कार्रवाई उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।


क्यों चला आयोग का ‘डंडा’? शर्तों पर खरे नहीं उतर रहे कई दल

भारत निर्वाचन आयोग, देश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक दलों के पंजीकरण और उनके कामकाज पर कड़ी नजर रखता है। आयोग के निर्देशानुसार, उत्तराखंड में कुल 42 पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (RUPPs) हैं। ये वो दल होते हैं, जिन्हें राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त वोट प्रतिशत या सीटें नहीं मिली होतीं, लेकिन वे चुनाव आयोग के पास पंजीकृत होते हैं।

हालांकि, चुनाव आयोग की जांच में सामने आया है कि इन 42 दलों में से कई ऐसे हैं जो ‘पंजीकृत अमान्यता प्राप्त राजनैतिक दल’ बने रहने की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इन शर्तों में मुख्य रूप से शामिल हैं:

  1. नियमित आंतरिक चुनाव: दलों को अपने भीतर नियमित रूप से संगठनात्मक चुनाव कराने होते हैं, ताकि आंतरिक लोकतंत्र बना रहे।
  2. वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट जमा करना: वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखने के लिए दलों को हर साल अपनी आय-व्यय की ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंपनी होती है।
  3. योगदान रिपोर्ट दाखिल करना: दलों को अपने प्राप्त चंदे (कंट्रीब्यूशन) की जानकारी आयोग को देनी होती है।
  4. चुनावी गतिविधियों में भागीदारी: दलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे लगातार चुनाव (विधानसभा या लोकसभा) में भाग लें, भले ही वे सीटें न जीतें।
  5. सक्रिय कार्यालय का पता: आयोग ने विशेष रूप से यह भी पाया है कि इन दलों के कार्यालय का कोई सही या सक्रिय पता नहीं है। यानी ये दल केवल कागजों पर मौजूद हैं, जमीनी स्तर पर इनकी कोई सक्रियता नहीं दिख रही है।

आयोग ने इन्हीं मानदंडों के आधार पर उत्तराखंड के 6 ऐसे विशिष्ट दलों की पहचान की है, जिन्हें अब नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया है।


अस्तित्व पर खतरा: 21 जुलाई शाम 5 बजे की डेडलाइन

नोटिस प्राप्त करने वाले इन 6 दलों को 21 जुलाई, शाम 5 बजे तक अपना जवाब चुनाव आयोग को भेजना होगा। इस जवाब में उन्हें यह साबित करना होगा कि वे आयोग द्वारा निर्धारित सभी शर्तों का पालन कर रहे हैं या क्यों उन्हें डीलिस्ट नहीं किया जाना चाहिए।

यदि ये दल निर्धारित समय-सीमा के भीतर संतोषजनक जवाब प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं या अपने दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त प्रमाण नहीं दे पाते हैं, तो भारत निर्वाचन आयोग इनकी अंतिम डीलिस्टिंग का निर्णय लेगा। डीलिस्टिंग का अर्थ है कि इन दलों का पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा, और वे अब चुनाव आयोग द्वारा पंजीकृत राजनीतिक दल नहीं रह जाएंगे।


क्यों महत्वपूर्ण है यह कार्रवाई? पारदर्शिता और जवाबदेही की पहल

चुनाव आयोग द्वारा यह कार्रवाई केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि देश भर में ऐसे निष्क्रिय और गैर-अनुपालनकारी राजनीतिक दलों के खिलाफ अभियान का हिस्सा है। आयोग का मुख्य उद्देश्य है कि:

  • राजनीतिक प्रणाली को साफ-सुथरा बनाना: ऐसे दल जो केवल कागजों पर मौजूद हैं और जिनका कोई वास्तविक राजनीतिक उद्देश्य नहीं है, उन्हें प्रणाली से हटाना।
  • फंडिंग में पारदर्शिता: कई बार ऐसे निष्क्रिय दलों का उपयोग धन के लेन-देन या कर चोरी के लिए भी किया जाता है। आयोग ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगाना चाहता है।
  • संसाधनों का कुशल उपयोग: चुनाव आयोग के सीमित संसाधनों का उपयोग केवल सक्रिय और वास्तविक राजनीतिक दलों के लिए हो।
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करना: केवल वास्तविक और सक्रिय दल ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लें, जिससे राजनीतिक प्रणाली की विश्वसनीयता बढ़े।

यह कदम उत्तराखंड के राजनीतिक परिदृश्य में भी एक नई बहस छेड़ सकता है, खासकर उन छोटे दलों के बीच जो अपनी पहचान बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।


प्रभाव और चुनौतियाँ: क्या खोएंगे ये दल?

यदि इन 6 दलों का पंजीकरण रद्द होता है, तो उन्हें कई लाभों से वंचित होना पड़ेगा, जिनमें शामिल हैं:

  • निर्वाचक नामावली (Electoral Rolls) की निःशुल्क प्रतियां प्राप्त करने का अधिकार।
  • सार्वजनिक प्रसारकों (जैसे दूरदर्शन और आकाशवाणी) पर मुफ्त हवाई समय।
  • चुनाव के दौरान अपने उम्मीदवारों के लिए साझा चुनाव चिह्न की सुविधा (यदि आयोग द्वारा आवंटित की जाती है)।

डीलिस्ट होने के बाद, यदि ये दल भविष्य में चुनाव लड़ना चाहते हैं, तो उन्हें नए सिरे से पंजीकरण प्रक्रिया से गुजरना होगा, जो एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है। यह चुनौती इन दलों के लिए उनके अस्तित्व को बचाने की आखिरी लड़ाई साबित हो सकती है।

चुनाव आयोग का यह कदम स्पष्ट संदेश है कि राजनीतिक दलों को अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेना होगा और केवल कागजों पर पंजीकृत होकर ही राजनीतिक दल बने नहीं रहा जा सकता। उत्तराखंड में जिन दलों को नोटिस मिला है, उन्हें अब 21 जुलाई तक अपने अस्तित्व को बचाने के लिए मजबूत दलीलें और प्रमाण पेश करने होंगे। इस फैसले से राज्य की छोटी राजनीतिक पार्टियों के कामकाज में निश्चित रूप से अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही देखने को मिलेगी।

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