उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया थमी: हाईकोर्ट के आदेश पर चुनाव चिन्ह आवंटन स्थगित, अनिश्चितता के घेरे में हजारों प्रत्याशी

देहरादून 13 जुलाई, 2025 (समय बोल रहा)– उत्तराखंड में पंचायत चुनाव की सरगर्मियों के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है, जिसने चुनावी प्रक्रिया को फिलहाल के लिए रोक दिया है। कल यानी 14 जुलाई, 2025 को होने वाला चुनाव चिन्ह का आवंटन फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। राज्य निर्वाचन आयोग ने यह फैसला नैनीताल स्थित उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक आदेश के बाद लिया है, जिससे चुनावी मैदान में उतरे हजारों प्रत्याशियों के लिए अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई है।
उक्त आदेश जारी करते हुए राज्य निर्वाचन आयुक्त सुशील कुमार ने बताया कि हाईकोर्ट, उत्तराखंड, नैनीताल में एक रिट याचिका दाखिल की गई थी। यह याचिका शक्ति सिंह बर्थवाल बनाम राज्य निर्वाचन आयोग एवं अन्य के नाम से योजित थी। माननीय न्यायालय ने इस पर सुनवाई करते हुए दिनांक 11 जुलाई, 2025 को एक आदेश पारित किया था।
आयोग के अनुसार, इस आदेश के कुछ बिंदुओं पर स्पष्टता (clarification) प्राप्त करने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग, उत्तराखंड द्वारा न्यायालय में एक प्रार्थना-पत्र दाखिल किया गया है। आयोग का यह कदम कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के लिए लिया गया है, और इस पर हाईकोर्ट में 14 जुलाई, 2025 को पूर्वाह्न में सुनवाई होनी नियत हुई है। चूंकि चुनाव चिन्हों का आवंटन और अन्य महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं इसी के बाद होनी थीं, इसलिए राज्य निर्वाचन आयोग ने यह फैसला लिया कि जब तक न्यायालय से कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं मिल जाता, तब तक चुनाव चिन्ह आवंटन का कार्य रोक दिया जाए।
मैदान में उतरे उम्मीदवारों की रणनीति पर ‘ब्रेक’
चुनाव चिन्हों का आवंटन स्थगित होने से चुनावी मैदान में उतरे सभी उम्मीदवारों की रणनीति पर अचानक ‘ब्रेक’ लग गया है। चुनाव चिन्ह मिलने के बाद ही कोई भी उम्मीदवार अपने प्रचार अभियान को अंतिम रूप देता है। यह चिन्ह ही उसके पोस्टर, बैनर, और डोर-टू-डोर कैंपेन का मुख्य आधार होता है। कई उम्मीदवारों ने तो चुनाव चिन्ह मिलने की तारीख को देखते हुए पहले ही पोस्टर और अन्य प्रचार सामग्री का डिजाइन तैयार करवा लिया था।
एक स्थानीय उम्मीदवार, जो अपनी पहचान गुप्त रखना चाहते थे, ने बताया, “हम सब कल के दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। हमने अपने समर्थकों को भी तैयार रहने को कहा था। यह खबर हमारे लिए एक बड़ा झटका है। हमें नहीं पता कि अब हम आगे क्या करें।” एक अन्य प्रत्याशी ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि इस अनिश्चितता से न केवल उनका समय बर्बाद हो रहा है, बल्कि चुनाव प्रचार में लगाया गया उनका पैसा भी अधर में लटक गया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कानूनी चुनौती चुनाव आयोग की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने की दिशा में एक कदम है। उनका कहना है कि याचिका में शायद वार्डों के आरक्षण, मतदाता सूची या अन्य प्रक्रियात्मक खामियों को लेकर सवाल उठाए गए होंगे। हालांकि, इससे जमीनी स्तर पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के लिए बहुत परेशानी हो रही है।
न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका: निष्पक्ष चुनाव की गारंटी
यह घटना एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करती है। भले ही यह कदम चुनावी प्रक्रिया में देरी कर रहा हो, लेकिन यह सुनिश्चित करता है कि पूरा चुनाव निष्पक्ष और नियमों के अनुसार हो। राज्य निर्वाचन आयोग ने भी जल्दबाजी में कोई फैसला लेने के बजाय, न्यायालय से स्पष्टता मांगकर एक सही और कानूनी रूप से मजबूत रास्ता चुना है। इससे भविष्य में किसी भी कानूनी चुनौती का सामना करने में आसानी होगी।
अब सभी की निगाहें सोमवार सुबह हाईकोर्ट में होने वाली सुनवाई पर टिकी हुई हैं। इस सुनवाई का परिणाम ही यह तय करेगा कि उत्तराखंड में पंचायत चुनावों का अगला कदम क्या होगा। अगर हाईकोर्ट आयोग के स्पष्टीकरण से संतुष्ट होता है और उसे आगे बढ़ने की अनुमति देता है, तो चुनाव प्रक्रिया फिर से शुरू हो जाएगी। लेकिन अगर न्यायालय कोई नया आदेश देता है या किसी विशेष प्रक्रिया में सुधार के लिए कहता है, तो चुनाव की पूरी समय-सारणी में बदलाव हो सकता है।
फिलहाल, चुनाव चिन्हों की प्रतीक्षा कर रहे हजारों उम्मीदवार, उनके समर्थक और राजनीतिक दल सभी अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं। चुनाव की रणभेरी कुछ समय के लिए शांत हो गई है और सभी उम्मीदवार न्याय के देवता के निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। यह घटना बताती है कि पंचायत चुनाव, जो अक्सर ग्रामीण राजनीति का सबसे बड़ा महोत्सव माना जाता है, अब कानूनी और तकनीकी पेचीदगियों से भी प्रभावित होने लगा है।