उत्तराखण्ड त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव: मतदाता सूची की गंभीर त्रुटियों से मतदाताओं को करना पड़ा भारी परेशानी का सामना; नाम गायब मिलने पर फूटा रोष

उत्तराखण्ड, 29 जुलाई 2025 – (समय बोल रहा ) – राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए हुए मतदान के दौरान कई मतदान केंद्रों पर मतदाताओं को भारी निराशा और परेशानी का सामना करना पड़ा। चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता सूचियों में गंभीर त्रुटियां पाई गईं, जहाँ बड़ी संख्या में योग्य मतदाताओं के नाम सूची से गायब मिले, जिसके कारण वे अपने लोकतांत्रिक अधिकार, मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाए। इन शिकायतों के सामने आने के बाद कई स्थानों पर मतदाताओं ने चुनाव अधिकारियों के प्रति गहरा रोष व्यक्त किया। मतदान केंद्र पर उत्साह से पहुंचे मतदाताओं को करना पड़ा निराशा का सामना मतदान का दिन लोकतंत्र का पर्व होता है, जिसमें हर नागरिक अपने चुने हुए प्रतिनिधि को चुनने के लिए उत्सुक होता है। गाँव-देहात में होने वाले पंचायत चुनाव तो और भी महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि ये सीधे स्थानीय विकास और सामुदायिक निर्णयों से जुड़े होते हैं। इसी उत्साह के साथ कई ग्रामीण मतदाता सुबह से ही अपने-अपने मतदान केंद्रों पर पहुंचे थे। उन्होंने लंबी कतारों में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार किया, लेकिन जब उनका नाम पुकारा गया और सूची में खोजा गया, तो उन्हें यह जानकर गहरा धक्का लगा कि उनका नाम मतदाता सूची में दर्ज ही नहीं है। कई मतदाताओं ने बताया कि वे सालों से उसी पते पर रह रहे हैं और उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में भी मतदान किया था। उनके नाम पिछली मतदाता सूचियों में शामिल थे, लेकिन इस बार पंचायत चुनाव की सूची से वे रहस्यमय तरीके से गायब पाए गए। यह स्थिति उन मतदाताओं के लिए बेहद निराशाजनक थी, जिन्होंने अपने बहुमूल्य समय और ऊर्जा का निवेश कर मतदान केंद्र तक पहुंचने की जहमत उठाई थी। नाम गायब मिलने पर मतदाताओं को झेलनी पड़ी परेशानी, फूटा गुस्सा मतदान सूची से नाम गायब पाए जाने पर मतदाताओं का गुस्सा लाजमी था। कई स्थानों पर मतदाताओं ने खुले तौर पर अपनी नाराजगी व्यक्त की और चुनाव अधिकारियों से जवाब मांगा। उनका तर्क था कि जब उनके नाम पिछली विधानसभा चुनाव की सूची में थे, तो पंचायत चुनाव की सूची से उन्हें कैसे हटाया जा सकता है, जबकि उन्होंने कोई पता नहीं बदला और न ही कोई अपडेशन के लिए अनुरोध किया था। एक स्थानीय ग्रामीण ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा, "हमारा नाम पहले से ही सूची में था। हम सालों से यहाँ वोट डालते आ रहे हैं। इस बार अचानक हमारा नाम कैसे गायब हो गया? यह हमारी आवाज को दबाने जैसा है।" ऐसे ही कई अन्य मतदाताओं ने भी अपनी निराशा व्यक्त की, जिन्होंने अपने नाम खोजने के लिए मतदान केंद्र के अंदर और बाहर घंटों इंतजार किया, लेकिन अंततः उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। यह स्थिति विशेषकर उन बुजुर्ग मतदाताओं के लिए और भी कठिन थी, जिन्हें मतदान केंद्र तक पहुंचने में वैसे ही काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। प्रशासनिक चूक या तकनीकी खामी? मतदाता सूचियों में इस तरह की बड़ी संख्या में त्रुटियाँ और नामों का गायब होना निर्वाचन प्रक्रिया की पारदर्शिता और दक्षता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। यह स्पष्ट नहीं है कि यह प्रशासनिक स्तर पर लापरवाही का परिणाम है या फिर सूची अपडेट करने की प्रक्रिया में कोई तकनीकी खामी रही है। चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होती है कि वह प्रत्येक पात्र मतदाता का नाम सूची में सुनिश्चित करे और उसे मतदान का अवसर प्रदान करे। ऐसी त्रुटियां सीधे तौर पर मतदाताओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनके विश्वास को कम कर सकती हैं। इन शिकायतों के बाद, चुनाव अधिकारियों को तत्काल इस मामले की जांच करनी चाहिए और भविष्य में ऐसी त्रुटियों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। मतदाता सूचियों का शुद्धिकरण और उनका नियमित अद्यतन एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें किसी भी प्रकार की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास बहाली की चुनौती इस घटना ने उन सभी मतदाताओं के मन में निराशा पैदा की है, जो अपनी स्थानीय सरकार चुनने के लिए उत्सुक थे। पंचायत चुनाव ग्रामीण स्तर पर लोकतंत्र की नींव होते हैं, और इनमें अधिकतम भागीदारी आवश्यक है। यदि मतदाता सूची में ही गड़बड़ी हो, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मूल भावना को कमजोर करता है। अब यह देखना होगा कि चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन इन शिकायतों पर क्या कार्रवाई करते हैं। मतदाताओं के गुस्से को शांत करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनके विश्वास को बहाल करने के लिए, अधिकारियों को न केवल त्रुटियों को स्वीकार करना होगा, बल्कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर जवाबदेही भी तय करनी होगी। भविष्य के चुनावों में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए एक मजबूत और त्रुटिरहित प्रणाली विकसित करना समय की मांग है।

उत्तराखण्ड, 29 जुलाई 2025 – (समय बोल रहा ) – राज्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए हुए मतदान के दौरान कई मतदान केंद्रों पर मतदाताओं को भारी निराशा और परेशानी का सामना करना पड़ा। चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता सूचियों में गंभीर त्रुटियां पाई गईं, जहाँ बड़ी संख्या में योग्य मतदाताओं के नाम सूची से गायब मिले, जिसके कारण वे अपने लोकतांत्रिक अधिकार, मताधिकार का प्रयोग नहीं कर पाए। इन शिकायतों के सामने आने के बाद कई स्थानों पर मतदाताओं ने चुनाव अधिकारियों के प्रति गहरा रोष व्यक्त किया।


मतदान केंद्र पर उत्साह से पहुंचे मतदाताओं को करना पड़ा निराशा का सामना

मतदान का दिन लोकतंत्र का पर्व होता है, जिसमें हर नागरिक अपने चुने हुए प्रतिनिधि को चुनने के लिए उत्सुक होता है। गाँव-देहात में होने वाले पंचायत चुनाव तो और भी महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि ये सीधे स्थानीय विकास और सामुदायिक निर्णयों से जुड़े होते हैं। इसी उत्साह के साथ कई ग्रामीण मतदाता सुबह से ही अपने-अपने मतदान केंद्रों पर पहुंचे थे। उन्होंने लंबी कतारों में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार किया, लेकिन जब उनका नाम पुकारा गया और सूची में खोजा गया, तो उन्हें यह जानकर गहरा धक्का लगा कि उनका नाम मतदाता सूची में दर्ज ही नहीं है।

कई मतदाताओं ने बताया कि वे सालों से उसी पते पर रह रहे हैं और उन्होंने पिछले विधानसभा चुनाव में भी मतदान किया था। उनके नाम पिछली मतदाता सूचियों में शामिल थे, लेकिन इस बार पंचायत चुनाव की सूची से वे रहस्यमय तरीके से गायब पाए गए। यह स्थिति उन मतदाताओं के लिए बेहद निराशाजनक थी, जिन्होंने अपने बहुमूल्य समय और ऊर्जा का निवेश कर मतदान केंद्र तक पहुंचने की जहमत उठाई थी।


नाम गायब मिलने पर मतदाताओं को झेलनी पड़ी परेशानी, फूटा गुस्सा

मतदान सूची से नाम गायब पाए जाने पर मतदाताओं का गुस्सा लाजमी था। कई स्थानों पर मतदाताओं ने खुले तौर पर अपनी नाराजगी व्यक्त की और चुनाव अधिकारियों से जवाब मांगा। उनका तर्क था कि जब उनके नाम पिछली विधानसभा चुनाव की सूची में थे, तो पंचायत चुनाव की सूची से उन्हें कैसे हटाया जा सकता है, जबकि उन्होंने कोई पता नहीं बदला और न ही कोई अपडेशन के लिए अनुरोध किया था।

एक स्थानीय ग्रामीण ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा, “हमारा नाम पहले से ही सूची में था। हम सालों से यहाँ वोट डालते आ रहे हैं। इस बार अचानक हमारा नाम कैसे गायब हो गया? यह हमारी आवाज को दबाने जैसा है।” ऐसे ही कई अन्य मतदाताओं ने भी अपनी निराशा व्यक्त की, जिन्होंने अपने नाम खोजने के लिए मतदान केंद्र के अंदर और बाहर घंटों इंतजार किया, लेकिन अंततः उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। यह स्थिति विशेषकर उन बुजुर्ग मतदाताओं के लिए और भी कठिन थी, जिन्हें मतदान केंद्र तक पहुंचने में वैसे ही काफी मशक्कत करनी पड़ी थी।


प्रशासनिक चूक या तकनीकी खामी?

मतदाता सूचियों में इस तरह की बड़ी संख्या में त्रुटियाँ और नामों का गायब होना निर्वाचन प्रक्रिया की पारदर्शिता और दक्षता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। यह स्पष्ट नहीं है कि यह प्रशासनिक स्तर पर लापरवाही का परिणाम है या फिर सूची अपडेट करने की प्रक्रिया में कोई तकनीकी खामी रही है। चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होती है कि वह प्रत्येक पात्र मतदाता का नाम सूची में सुनिश्चित करे और उसे मतदान का अवसर प्रदान करे। ऐसी त्रुटियां सीधे तौर पर मतदाताओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनके विश्वास को कम कर सकती हैं।

इन शिकायतों के बाद, चुनाव अधिकारियों को तत्काल इस मामले की जांच करनी चाहिए और भविष्य में ऐसी त्रुटियों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। मतदाता सूचियों का शुद्धिकरण और उनका नियमित अद्यतन एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें किसी भी प्रकार की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए।


लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास बहाली की चुनौती

इस घटना ने उन सभी मतदाताओं के मन में निराशा पैदा की है, जो अपनी स्थानीय सरकार चुनने के लिए उत्सुक थे। पंचायत चुनाव ग्रामीण स्तर पर लोकतंत्र की नींव होते हैं, और इनमें अधिकतम भागीदारी आवश्यक है। यदि मतदाता सूची में ही गड़बड़ी हो, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मूल भावना को कमजोर करता है।

अब यह देखना होगा कि चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन इन शिकायतों पर क्या कार्रवाई करते हैं। मतदाताओं के गुस्से को शांत करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनके विश्वास को बहाल करने के लिए, अधिकारियों को न केवल त्रुटियों को स्वीकार करना होगा, बल्कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर जवाबदेही भी तय करनी होगी। भविष्य के चुनावों में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए एक मजबूत और त्रुटिरहित प्रणाली विकसित करना समय की मांग है।

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