काशीपुर: द्रोणासागर की सरकारी भूमि पर कब्जे को लेकर विवाद गहराया, केडीएफ अध्यक्ष पर धोखाधड़ी का आरोप

काशीपुर, 26 मई 2025 (समय बोल रहा): तीर्थ स्थल द्रोणासागर से जुड़ी भूमि पर अवैध कब्जे और धोखाधड़ी का एक गंभीर मामला सामने आया है। श्री डमरू वाले बाबा मंदिर सेवा ट्रस्ट ने काशीपुर डेवलपमेंट फोरम (केडीएफ) के अध्यक्ष पर सरकारी भूमि पर फर्जी तरीके से कब्जा कर निर्माण करने का आरोप लगाया है। इस संबंध में ट्रस्ट ने सोमवार को एसडीएम कार्यालय को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा है, जिसमें मामले की उच्च स्तरीय जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की गई है। इस घटना ने क्षेत्र में भूमि विवादों और धार्मिक स्थलों से जुड़ी संपत्तियों की सुरक्षा को लेकर नई बहस छेड़ दी है।
क्या है पूरा मामला? ट्रस्ट ने लगाए गंभीर आरोप
श्री डमरू वाले बाबा मंदिर सेवा ट्रस्ट द्वारा एसडीएम कार्यालय को सौंपे गए ज्ञापन में कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। ट्रस्ट के अनुसार, 9 जुलाई 2021 को केडीएफ के नाम एक रजिस्ट्री कराई गई थी। इस रजिस्ट्री में खसरा संख्या 70 मिन की भूमि का उल्लेख किया गया था, जिसे शंभूनाथ की निजी भूमि दर्शाया गया था।
हालांकि, ट्रस्ट का आरोप है कि केडीएफ अध्यक्ष ने धोखाधड़ी करते हुए रजिस्ट्री में दर्शाई गई भूमि के बजाय, उसके पास स्थित सरकारी भूमि खसरा संख्या 69 मिन पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है। यह सरकारी भूमि तीर्थ स्थल द्रोणासागर का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसका अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। ट्रस्ट ने अपने ज्ञापन में यह भी दावा किया है कि दानदाता द्वारा रजिस्ट्री में जिन स्थानों की तस्वीरें पेश की गई थीं, वे तस्वीरें वास्तव में खसरा संख्या 70 मिन की भूमि की नहीं थीं, बल्कि सरकारी भूमि खसरा संख्या 69 मिन की थीं, जिस पर अब अवैध कब्जा कर लिया गया है।
बिना अनुमति निर्माण, गोविषाण टीले से दूरी का उल्लंघन
ट्रस्ट ने आरोप लगाया है कि केडीएफ अध्यक्ष ने इस सरकारी भूमि खसरा संख्या 69 मिन पर बिना किसी सक्षम शासन की अनुमति के एक कार्यालय और एक पक्की दीवार का निर्माण करा लिया है। ट्रस्ट ने यह भी रेखांकित किया है कि यह निर्माण गोविषाण टीले से 100 मीटर के अंदर किया गया है, जबकि ऐसे धार्मिक और पुरातात्विक महत्व के स्थलों के आसपास निर्माण के लिए विशेष नियमों और अनुमतियों की आवश्यकता होती है। ट्रस्ट का कहना है कि यह अवैध निर्माण न केवल सरकारी भूमि पर अतिक्रमण है, बल्कि यह क्षेत्र के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को भी ठेस पहुंचाता है।
ट्रस्ट के सदस्यों ने की कार्रवाई की मांग
ज्ञापन सौंपने के दौरान श्री डमरू वाले बाबा मंदिर सेवा ट्रस्ट के कई प्रमुख सदस्य मौजूद रहे। इनमें संस्थापक अजय कुमार चौहान, अध्यक्ष अक्षय कुमार नायक, उपाध्यक्ष विजय चौहान, सचिव विजेंद्र सिंह चौहान और कोषाध्यक्ष विशाल गुप्ता शामिल रहे। इन सभी सदस्यों ने एसडीएम से मांग की है कि इस पूरे मामले की गहनता से जांच की जाए, सरकारी भूमि पर किए गए अवैध कब्जे को हटाया जाए और धोखाधड़ी करने वाले केडीएफ अध्यक्ष के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि द्रोणासागर जैसे पवित्र स्थल की भूमि को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है।
केडीएफ अध्यक्ष ने आरोपों को नकारा, मंदिर ट्रस्ट पर ही लगाए गंभीर आरोप
दूसरी ओर, काशीपुर डेवलपमेंट फोरम (केडीएफ) के अध्यक्ष राजीव घई ने श्री डमरू वाले बाबा मंदिर सेवा ट्रस्ट द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। घई ने पलटवार करते हुए कहा है कि जो लोग उनके खिलाफ शिकायत कर रहे हैं, उन्होंने स्वयं मंदिर पर अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। उन्होंने आरोप लगाया कि मंदिर में आने वाले चढ़ावे का दुरुपयोग किया जा रहा है और वे लोग विभिन्न गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त हैं। घई ने कहा कि उनके द्वारा (केडीएफ) मंदिर क्षेत्र में कुछ रोक-टोक और व्यवस्था बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके कारण ये लोग उनके खिलाफ गलत आरोप लगा रहे हैं।
केडीएफ अध्यक्ष राजीव घई ने दावा किया कि उनके द्वारा कोई अवैध कब्जा नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, “अवैध कब्जे का मामला राजस्व विभाग देखेगा। उन्होंने (ट्रस्ट ने) शिकायत की है, उसकी जांच होगी। हमारा कोई कब्जा नहीं है।” घई ने स्पष्ट किया कि उनके सभी कार्य वैध हैं और वे किसी भी जांच का सामना करने के लिए तैयार हैं।
प्रशासन की भूमिका और आगे की राह
एसडीएम कार्यालय ने ज्ञापन प्राप्त कर लिया है और मामले की जांच का आश्वासन दिया है। अब यह राजस्व विभाग और संबंधित अधिकारियों पर निर्भर करता है कि वे भूमि के अभिलेखों की गहन जांच करें, मौके पर स्थिति का सत्यापन करें और आरोपों की सच्चाई का पता लगाएं। इस विवाद में दोनों पक्षों द्वारा एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं, जिससे सच्चाई का पता लगाना और भी महत्वपूर्ण हो गया है। द्रोणासागर एक प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जिसकी भूमि को लेकर विवाद का गहराना चिंता का विषय है। प्रशासन को इस मामले में निष्पक्ष और त्वरित कार्रवाई करनी होगी ताकि न केवल कानूनी स्थिति स्पष्ट हो सके, बल्कि ऐसे पवित्र स्थलों की गरिमा और उनकी भूमि की सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके।