उत्तराखंड के जंगलों में डेमोग्राफिक जिहाद, जसपुर विधानसभा क्षेत्र में बसे 500 वन गुजर परिवारों पर सिर्फ 5 परिवारों को मंजूरी और राशन कार्ड बनवाने के खिलाफ गंभीर आरोप

देहरादून/जसपुर, 16 दिसंबर 2025 (समय बोल रहा) – उत्तराखंड के आरक्षित वन क्षेत्रों में बाहरी राज्यों से आए वन गुर्जरों की बढ़ती आबादी और उनके स्थायी बसने के तरीके को लेकर राज्य में एक बार फिर भूचाल आ गया है। सामाजिक संगठनों और स्थानीय निवासियों ने वन विभाग की ढिलाई और प्रशासनिक मिलीभगत पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, जिसके कारण डेमोग्राफी परिवर्तन, सरकारी वन भूमि पर व्यापक अतिक्रमण और राष्ट्रीय सुरक्षा तक के लिए चिंताएं बढ़ गई हैं। मुख्यमंत्री धामी के वादे को देखते हुए, प्रशासन को इस पूरे मामले पर कड़ी निगरानी और कठोर कानूनी कार्रवाई करने की तत्काल आवश्यकता है। जसपुर का चौंकाने वाला मामला: 5 की अनुमति पर 500 परिवार स्थानीय संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा जसपुर विधानसभा क्षेत्र की स्थिति को सबसे विस्फोटक बताया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, जसपुर विधानसभा के वन क्षेत्रों में शुरुआत में केवल 5 वन गुर्जर परिवारों को ही अस्थाई प्रवास की स्वीकृति दी गई थी, परंतु आज यहाँ 500 से अधिक परिवार अवैध रूप से बस गए हैं। स्थानीय स्रोतों का दावा है कि ये परिवार मुख्य रूप से आसपास के वन क्षेत्र में निवास करते हैं, परंतु इनके जन्म प्रमाण पत्र सहित कई दस्तावेज आबादी वाले क्षेत्रों के गाँवों जैसे करनपुर, पतरामपुर, भोगपुर, टांडा, और शिवराजपुर के पतों पर बने हुए हैं। यह गंभीर धांधली सरकारी कर्मचारियों की भी मिलीभगत की ओर इशारा करती है। ये परिवार यहाँ के स्थायी निवासी न होते हुए भी, मिलीभगत और लालच के माध्यम से न केवल स्थानीय राशन कार्ड और स्थायी निवास प्रमाण पत्र प्राप्त करने में सफल रहे हैं, बल्कि कई व्यक्तियों ने तो इसी फर्जी पते के आधार पर पासपोर्ट भी बनवा लिए हैं और विदेश तक चले गए हैं। इन गतिविधियों से स्पष्ट है कि ये परिवार सुनियोजित तरीके से जंगलों की जनसांख्यिकी (Demography) को बदलने में लगे हुए हैं, जिसका दूरगामी असर पर्यावरण और स्थानीय सामाजिक संरचना पर पड़ सकता है। फिलहाल इन सभी मामलों की कोई जानकारी पुलिस और वन विभाग को नहीं है। हिमाचल, यूपी और कश्मीर से अवैध घुसपैठ का आरोप सामाजिक संगठनों का आरोप है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कश्मीर क्षेत्र से आए कुछ वन गुर्जर परिवारों ने उत्तराखंड के तराई और पहाड़ी वन क्षेत्रों में अपने अस्थायी डेरों को अब स्थायी बसावटों में बदल दिया है। आरोप है कि इन्होंने वन विभाग की प्रशासनिक खामियों का लाभ उठाया और अवैध तरीके से सरकारी वन भूमि पर कब्जे किए। विस्थापन और वन्यजीव सुरक्षा पर सवाल विस्थापन के आंकड़ों पर विवाद: राजाजी टाइगर रिजर्व और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से विस्थापन प्रक्रिया के दौरान भी परिवारों की संख्या को लेकर विवाद सामने आए थे। कार्यकर्ताओं का दावा है कि 1998 के सर्वे में दर्ज सीमित संख्या विस्थापन के समय कई गुना बढ़ गई, जिससे विस्थापन पैकेज का दुरुपयोग हुआ। कुछ मामलों में विस्थापन पैकेज के तहत मिली भूमि और धनराशि को बाहरी लोगों को बेचने के आरोप भी सामने आए हैं। शिकार और तस्करी: वन विभाग के पूर्व अधिकारियों के कार्यकाल में कुछ व्यक्तिगत मामलों का हवाला देते हुए वन्यजीव शिकार और तस्करी (हाथी दांत, बाघ की खाल) में संलिप्तता के आरोप भी लगाए गए हैं, हालांकि ये मामले व्यक्तिगत हैं, लेकिन इनसे वन्यजीव सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं बढ़ी हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों तक आवाजाही: यह भी आरोप है कि कुछ वन गुर्जर परिवार अपने पशुओं के साथ संवेदनशील और सीमावर्ती वन क्षेत्रों तक पहुँच रहे हैं, जहाँ जैव विविधता और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े पहलू महत्वपूर्ण हैं। वन विभाग का कड़ा रुख: डॉ. धकाते ने दिए सख्त कार्रवाई के निर्देश वन विभाग में अतिक्रमण हटाओ अभियान के नोडल अधिकारी और मुख्य वन संरक्षक डॉ. पराग मधुकर धकाते ने इस संबंध में विभाग का पक्ष स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि सभी वन प्रभागों से रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है और सत्यापन का कार्य तेजी से चल रहा है। डॉ. धकाते ने कहा: "वैध और अवैध कब्जेदारों का सत्यापन किया जा रहा है। यदि किसी परिवार के पास निर्धारित सीमा से अधिक भूमि पाई जाती है या अवैध खरीद-बिक्री के प्रमाण मिलते हैं, तो वन अधिनियम के तहत सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।" वन विभाग का कहना है कि वे जीपीएस और सैटेलाइट इमेजरी के माध्यम से अतिक्रमण की पहचान कर रहे हैं, और कानून के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल, वन गुर्जरों से जुड़े ये सभी संवेदनशील मुद्दे जांच और सत्यापन की प्रक्रिया में हैं। स्थानीय संगठनों और वन विभाग के बीच सहयोग और सख्त निगरानी ही इन गंभीर चुनौतियों का एकमात्र समाधान है।

देहरादून/जसपुर, 16 दिसंबर 2025 (समय बोल रहा) – उत्तराखंड के आरक्षित वन क्षेत्रों में बाहरी राज्यों से आए वन गुर्जरों की बढ़ती आबादी और उनके स्थायी बसने के तरीके को लेकर राज्य में एक बार फिर भूचाल आ गया है। सामाजिक संगठनों और स्थानीय निवासियों ने वन विभाग की ढिलाई और प्रशासनिक मिलीभगत पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं, जिसके कारण डेमोग्राफी परिवर्तन, सरकारी वन भूमि पर व्यापक अतिक्रमण और राष्ट्रीय सुरक्षा तक के लिए चिंताएं बढ़ गई हैं। मुख्यमंत्री धामी के वादे को देखते हुए, प्रशासन को इस पूरे मामले पर कड़ी निगरानी और कठोर कानूनी कार्रवाई करने की तत्काल आवश्यकता है।

जसपुर का चौंकाने वाला मामला: 5 की अनुमति पर 500 परिवार

स्थानीय संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा जसपुर विधानसभा क्षेत्र की स्थिति को सबसे विस्फोटक बताया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, जसपुर विधानसभा के वन क्षेत्रों में शुरुआत में केवल 5 वन गुर्जर परिवारों को ही अस्थाई प्रवास की स्वीकृति दी गई थी, परंतु आज यहाँ 500 से अधिक परिवार अवैध रूप से बस गए हैं।

स्थानीय स्रोतों का दावा है कि ये परिवार मुख्य रूप से आसपास के वन क्षेत्र में निवास करते हैं, परंतु इनके जन्म प्रमाण पत्र सहित कई दस्तावेज आबादी वाले क्षेत्रों के गाँवों जैसे करनपुर, पतरामपुर, भोगपुर, टांडा, और शिवराजपुर के पतों पर बने हुए हैं। यह गंभीर धांधली सरकारी कर्मचारियों की भी मिलीभगत की ओर इशारा करती है।

ये परिवार यहाँ के स्थायी निवासी न होते हुए भी, मिलीभगत और लालच के माध्यम से न केवल स्थानीय राशन कार्ड और स्थायी निवास प्रमाण पत्र प्राप्त करने में सफल रहे हैं, बल्कि कई व्यक्तियों ने तो इसी फर्जी पते के आधार पर पासपोर्ट भी बनवा लिए हैं और विदेश तक चले गए हैं। इन गतिविधियों से स्पष्ट है कि ये परिवार सुनियोजित तरीके से जंगलों की जनसांख्यिकी (Demography) को बदलने में लगे हुए हैं, जिसका दूरगामी असर पर्यावरण और स्थानीय सामाजिक संरचना पर पड़ सकता है। फिलहाल इन सभी मामलों की कोई जानकारी पुलिस और वन विभाग को नहीं है।

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हिमाचल, यूपी और कश्मीर से अवैध घुसपैठ का आरोप

सामाजिक संगठनों का आरोप है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कश्मीर क्षेत्र से आए कुछ वन गुर्जर परिवारों ने उत्तराखंड के तराई और पहाड़ी वन क्षेत्रों में अपने अस्थायी डेरों को अब स्थायी बसावटों में बदल दिया है। आरोप है कि इन्होंने वन विभाग की प्रशासनिक खामियों का लाभ उठाया और अवैध तरीके से सरकारी वन भूमि पर कब्जे किए।

विस्थापन और वन्यजीव सुरक्षा पर सवाल

  • विस्थापन के आंकड़ों पर विवाद: राजाजी टाइगर रिजर्व और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से विस्थापन प्रक्रिया के दौरान भी परिवारों की संख्या को लेकर विवाद सामने आए थे। कार्यकर्ताओं का दावा है कि 1998 के सर्वे में दर्ज सीमित संख्या विस्थापन के समय कई गुना बढ़ गई, जिससे विस्थापन पैकेज का दुरुपयोग हुआ। कुछ मामलों में विस्थापन पैकेज के तहत मिली भूमि और धनराशि को बाहरी लोगों को बेचने के आरोप भी सामने आए हैं।
  • शिकार और तस्करी: वन विभाग के पूर्व अधिकारियों के कार्यकाल में कुछ व्यक्तिगत मामलों का हवाला देते हुए वन्यजीव शिकार और तस्करी (हाथी दांत, बाघ की खाल) में संलिप्तता के आरोप भी लगाए गए हैं, हालांकि ये मामले व्यक्तिगत हैं, लेकिन इनसे वन्यजीव सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं बढ़ी हैं।
  • सीमावर्ती क्षेत्रों तक आवाजाही: यह भी आरोप है कि कुछ वन गुर्जर परिवार अपने पशुओं के साथ संवेदनशील और सीमावर्ती वन क्षेत्रों तक पहुँच रहे हैं, जहाँ जैव विविधता और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े पहलू महत्वपूर्ण हैं।

वन विभाग का कड़ा रुख: डॉ. धकाते ने दिए सख्त कार्रवाई के निर्देश

वन विभाग में अतिक्रमण हटाओ अभियान के नोडल अधिकारी और मुख्य वन संरक्षक डॉ. पराग मधुकर धकाते ने इस संबंध में विभाग का पक्ष स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि सभी वन प्रभागों से रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है और सत्यापन का कार्य तेजी से चल रहा है।

डॉ. धकाते ने कहा:

“वैध और अवैध कब्जेदारों का सत्यापन किया जा रहा है। यदि किसी परिवार के पास निर्धारित सीमा से अधिक भूमि पाई जाती है या अवैध खरीद-बिक्री के प्रमाण मिलते हैं, तो वन अधिनियम के तहत सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।”

वन विभाग का कहना है कि वे जीपीएस और सैटेलाइट इमेजरी के माध्यम से अतिक्रमण की पहचान कर रहे हैं, और कानून के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।

फिलहाल, वन गुर्जरों से जुड़े ये सभी संवेदनशील मुद्दे जांच और सत्यापन की प्रक्रिया में हैं। स्थानीय संगठनों और वन विभाग के बीच सहयोग और सख्त निगरानी ही इन गंभीर चुनौतियों का एकमात्र समाधान है।

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