काशीपुर में रावण दहन से पहले बारिश में भीगकर तहस-नहस हुआ रावण और मेघनाद का पुतला | आखिर कैसे होगा रावण दहन?

विजयादशमी के उल्लास पर कुदरत का कहर: रामलीला मैदान में गिरा रावण, आयोजन समिति असमंजस में काशीपुर, 02 अक्टूबर 2025 - ( समय बोल रहा ) – आज देशभर में विजयादशमी (दशहरा) का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, लेकिन काशीपुर के रामलीला मैदान से आई खबर ने इस पर्व के उल्लास को फीका कर दिया है। रावण दहन की परंपरा पर आज कुदरत का ऐसा कहर टूटा कि रावण और मेघनाद के विशाल पुतले दहन से कुछ ही घंटे पहले बारिश में भीगकर तहस-नहस हो गए। दिन भर हुई तेज बारिश के कारण पुतले भारी हो गए और अंततः ढह गए। चंद मिनटों की बारिश में बर्बाद हुई महीनों की मेहनत काशीपुर के रामलीला मैदान में हर साल की तरह इस बार भी रावण, मेघनाद और कुंभकरण के भव्य पुतलों का निर्माण किया गया था। कारीगरों ने इन पुतलों को तैयार करने में महीनों की मेहनत और बारीकी लगाई थी। आज शाम इनका दहन होना था, लेकिन दोपहर में हुई मूसलाधार बारिश ने सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। पुतलों को बनाने में इस्तेमाल किया गया कागज, घास और बाँस का ढाँचा पानी के कारण कमजोर पड़ गया। भारी बारिश के दबाव को न झेल पाने के कारण रावण और मेघनाद के पुतले जमीन पर गिर गए और पूरी तरह से ध्वस्त हो गए। पुतलों के अंदर भरी गई आतिशबाजी और बारूद भी पानी में भीग गया है, जिससे अब उनका दहन करना लगभग नामुमकिन हो गया है। आयोजन समिति के सामने बड़ी चुनौती इस घटना के बाद रामलीला कमेटी और आयोजन समिति के सदस्य असमंजस में पड़ गए हैं। जनता और खासकर बच्चे इस वार्षिक आयोजन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। एक कमेटी सदस्य ने 'समय बोल रहा है' को बताया, "हम वर्षों से यह परंपरा निभाते आ रहे हैं, लेकिन ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई। पुतले पूरी तरह से नष्ट हो चुके हैं और उनके अंदर का सामान भीग चुका है। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि रावण दहन की परंपरा का निर्वाह कैसे होगा?" प्रशासन और कमेटी अब वैकल्पिक व्यवस्थाओं पर विचार कर रही है। हो सकता है कि अब केवल प्रतीकात्मक दहन किया जाए या फिर पुतलों के बचे हुए हिस्सों को किसी तरह सूखाकर दहन करने का प्रयास किया जाए। आखिर कैसे होगा रावण दहन? बारिश ने भले ही पुतलों को नष्ट कर दिया हो, लेकिन लोगों का उत्साह अभी भी बरकरार है। अब सभी की निगाहें रामलीला कमेटी पर टिकी हैं कि वे इस मुश्किल घड़ी में क्या फैसला लेते हैं। काशीपुर में विजयादशमी की यह परंपरा टूटने से बचाने के लिए आयोजक हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

विजयादशमी के उल्लास पर कुदरत का कहर: रामलीला मैदान में गिरा रावण, आयोजन समिति असमंजस में

काशीपुर, 02 अक्टूबर 2025 – ( समय बोल रहा ) – आज देशभर में विजयादशमी (दशहरा) का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है, लेकिन काशीपुर के रामलीला मैदान से आई खबर ने इस पर्व के उल्लास को फीका कर दिया है। रावण दहन की परंपरा पर आज कुदरत का ऐसा कहर टूटा कि रावण और मेघनाद के विशाल पुतले दहन से कुछ ही घंटे पहले बारिश में भीगकर तहस-नहस हो गए। दिन भर हुई तेज बारिश के कारण पुतले भारी हो गए और अंततः ढह गए।

चंद मिनटों की बारिश में बर्बाद हुई महीनों की मेहनत

काशीपुर के रामलीला मैदान में हर साल की तरह इस बार भी रावण, मेघनाद और कुंभकरण के भव्य पुतलों का निर्माण किया गया था। कारीगरों ने इन पुतलों को तैयार करने में महीनों की मेहनत और बारीकी लगाई थी। आज शाम इनका दहन होना था, लेकिन दोपहर में हुई मूसलाधार बारिश ने सारे किए कराए पर पानी फेर दिया।

पुतलों को बनाने में इस्तेमाल किया गया कागज, घास और बाँस का ढाँचा पानी के कारण कमजोर पड़ गया। भारी बारिश के दबाव को न झेल पाने के कारण रावण और मेघनाद के पुतले जमीन पर गिर गए और पूरी तरह से ध्वस्त हो गए। पुतलों के अंदर भरी गई आतिशबाजी और बारूद भी पानी में भीग गया है, जिससे अब उनका दहन करना लगभग नामुमकिन हो गया है।

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आयोजन समिति के सामने बड़ी चुनौती

इस घटना के बाद रामलीला कमेटी और आयोजन समिति के सदस्य असमंजस में पड़ गए हैं। जनता और खासकर बच्चे इस वार्षिक आयोजन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।

एक कमेटी सदस्य ने ‘समय बोल रहा है’ को बताया, “हम वर्षों से यह परंपरा निभाते आ रहे हैं, लेकिन ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं आई। पुतले पूरी तरह से नष्ट हो चुके हैं और उनके अंदर का सामान भीग चुका है। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि रावण दहन की परंपरा का निर्वाह कैसे होगा?

प्रशासन और कमेटी अब वैकल्पिक व्यवस्थाओं पर विचार कर रही है। हो सकता है कि अब केवल प्रतीकात्मक दहन किया जाए या फिर पुतलों के बचे हुए हिस्सों को किसी तरह सूखाकर दहन करने का प्रयास किया जाए।

आखिर कैसे होगा रावण दहन?

बारिश ने भले ही पुतलों को नष्ट कर दिया हो, लेकिन लोगों का उत्साह अभी भी बरकरार है। अब सभी की निगाहें रामलीला कमेटी पर टिकी हैं कि वे इस मुश्किल घड़ी में क्या फैसला लेते हैं। काशीपुर में विजयादशमी की यह परंपरा टूटने से बचाने के लिए आयोजक हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

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