BALVINDER SAHNI

काशीपुर, 07 जुलाई 2025 (समय बोल रहा) — उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का आज देहरादून जाते समय काशीपुर के कुंडा क्षेत्र में अल्प विश्राम के दौरान भव्य स्वागत किया गया। वे कुछ देर के लिए रॉयल हवेली में रुके थे, जहां बड़ी संख्या में स्थानीय कार्यकर्ता एवं गणमान्य लोग उनके दर्शन के लिए पहुंचे। इस अवसर पर कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं ने उनका पारंपरिक ढंग से फूलमालाओं और अंगवस्त्रों से अभिनंदन किया। कोश्यारी जी ने सभी कार्यकर्ताओं का स्नेहपूर्वक आभार व्यक्त किया और संगठन के प्रति उनके समर्पण और निष्ठा की सराहना की। भाजपा कार्यकर्ताओं ने जताया सम्मान कोश्यारी जी के स्वागत समारोह में भाग लेने वालों में भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता, पूर्व सांसद प्रतिनिधि और स्थानीय नेता शामिल थे। मुख्य रूप से उपस्थित लोगों में शामिल थे: पूर्व सांसद प्रतिनिधि रवि साहनी , भाजपा नेता दीपकोश्यारी ,शीतल जोशी,अंकुरकुमार ,हिमांशु शर्मा,राज्य मंत्री अंबिका चौधरी,सुरेश लोहिया ,अनूप सिंह,अभिषेक गोयल, जे.एस. नरूला ,प्रगट सिंह ,आनंद वैश्य ,ईश्वर चंद्र गुप्ता ,बच्चू अरोरा ,अजय शंकर कार्यकर्ताओं ने उन्हें सम्मानित कर उनके योगदान को याद किया और कहा कि कोश्यारी जी का जीवन सभी कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। कोश्यारी का संदेश: "निष्ठा ही संगठन की ताकत है" संक्षिप्त बातचीत में श्री कोश्यारी ने कहा कि कार्यकर्ताओं की निष्ठा और प्रतिबद्धता ही किसी संगठन की असली ताकत होती है। उन्होंने कहा: " आप सभी का समर्पण ही संगठन को मजबूत बनाता है। यह देख कर हर्ष होता है कि कार्यकर्ता अब भी उसी भावना से कार्य कर रहे हैं जैसे पहले किया करते थे।" उन्होंने कार्यकर्ताओं से संगठन के साथ ईमानदारी और अनुशासन से जुड़े रहने का आग्रह किया। सामाजिक सरोकार और सादगी की मिसाल भगत सिंह कोश्यारी का जीवन हमेशा सादगी, पारदर्शिता और राष्ट्रभक्ति से जुड़ा रहा है। चाहे मुख्यमंत्री के रूप में रहा उनका कार्यकाल हो या महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में निभाई गई जिम्मेदारियाँ, उन्होंने हमेशा लोकहित को प्राथमिकता दी। कोश्यारी जी के इस अनौपचारिक पड़ाव ने यह एक बार फिर स्पष्ट कर दिया कि वे न केवल एक राजनेता हैं, बल्कि जनता के प्रिय जननायक भी हैं। उनका व्यवहार, बोलने का अंदाज और कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद लोगों को सहज महसूस कराता है। जनता से जुड़ाव बना रहा अटूट कोश्यारी जी अब सक्रिय राजनीति में नहीं हैं, लेकिन उनका जुड़ाव जनता से आज भी उतना ही प्रबल है। यह बात उनके काशीपुर आगमन पर कार्यकर्ताओं और नागरिकों की भारी उपस्थिति ने सिद्ध कर दी। लोग अपने नेता को देखने और सम्मान देने के लिए स्वयं आगे बढ़कर आए। वर्तमान में भी प्रासंगिक व्यक्तित्व जहां राजनीति में बदलाव और नई पीढ़ी का प्रवेश हो रहा है, वहीं कोश्यारी जैसे वरिष्ठ नेताओं की भूमिका एक मार्गदर्शक के रूप में सामने आती है। उनके अनुभव, विचार और नेतृत्व क्षमता आज भी युवाओं के लिए सीखने योग्य हैं।

जन-जन के नायक, हिमालय पुत्र और पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी का काशीपुर में भव्य स्वागत

काशीपुर, 07 जुलाई 2025 (समय बोल रहा) — उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का आज देहरादून जाते समय काशीपुर के कुंडा क्षेत्र में अल्प विश्राम के दौरान भव्य स्वागत किया गया। वे कुछ देर के लिए रॉयल हवेली में रुके थे, जहां बड़ी संख्या में स्थानीय कार्यकर्ता एवं…

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देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का 'महाकुंभ' देखने को मिला, नेताओं और स्थानीय ग्रामीणों में जबरदस्त उत्साह दिखा, लेकिन इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य पदों के लिए उम्मीद के मुताबिक नामांकन दाखिल नहीं हो पाए। इस स्थिति ने राज्य निर्वाचन आयोग और ग्रामीण लोकतंत्र के विशेषज्ञों को सकते में डाल दिया है, क्योंकि इन शुरुआती आंकड़ों से साफ संकेत मिल रहा है कि इस बार पंचायती राज व्यवस्था में बड़ी संख्या में पद रिक्त रह सकते हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। अंकों की जुबानी, उदासीनता की कहानी: सदस्य पदों पर सन्नाटा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा जारी प्रारंभिक आंकड़ों ने इस असमानता को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। नामांकन के पहले तीन दिनों में, चुनाव आयोग के समक्ष कुल 66,418 पदों के लिए केवल 32,239 नामांकन दाखिल हुए थे। यह अपने आप में एक बड़ा गैप दिखाता है, लेकिन जब हम इसे पदों के अनुसार देखते हैं तो स्थिति और भी चिंताजनक हो जाती है। ग्राम प्रधान पद पर बंपर नामांकन: ग्राम प्रधान के कुल 7,499 पदों के लिए, पहले तीन दिनों में ही रिकॉर्ड तोड़ 15,917 नामांकन दर्ज हुए। यह आंकड़ा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस प्रतिष्ठित पद को लेकर ग्रामीण आबादी में कितना जबरदस्त उत्साह और प्रतिस्पर्धा है। कई सीटों पर तो एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मैदान में उतरने को तैयार दिख रहे हैं। शनिवार को अंतिम दिन यह आंकड़ा और भी तेजी से बढ़ा, हालांकि खबर लिखे जाने तक आयोग द्वारा अंतिम और पूर्ण आंकड़े जारी नहीं किए गए थे। प्रधान का पद गांव के मुखिया का होता है, जिसके पास विकास योजनाओं पर निर्णय लेने और करोड़ों के फंड्स का प्रबंधन करने का अधिकार होता है, शायद यही वजह है कि यह पद लोगों के लिए इतना आकर्षक है। ग्राम पंचायत सदस्य पद पर 'उदासीनता' का सन्नाटा: इसके ठीक विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के कुल 55,587 पदों के लिए पहले तीन दिनों में मात्र 7,235 नामांकन ही आए। यह आंकड़ा बेहद निराशाजनक है, क्योंकि यह कुल पदों का 15% भी नहीं है। अंतिम दिन भी इस पद के लिए नामांकन को लेकर कोई खास उत्साह या भीड़ देखने को नहीं मिली, जो प्रधान पद के लिए उमड़ी भीड़ से बिल्कुल अलग था। यह आंकड़े साफ संकेत देते हैं कि ग्रामीण स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी के लिए आमजन की रुचि अपेक्षा से कहीं अधिक कम है। कई वार्डों में तो एक भी नामांकन दाखिल नहीं हुआ है, जिससे ये सीटें सीधे तौर पर खाली रहने के कगार पर हैं। क्यों आई यह 'उदासीनता'? सत्ता-विहीन पदों का आकर्षण कम सवाल उठता है कि आखिर ग्रामीण लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई कहे जाने वाले ग्राम पंचायत सदस्य के पदों के लिए इतनी उदासीनता क्यों है? विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं: सत्ता और संसाधनों का अभाव: ग्राम प्रधान के पास सीधे तौर पर विकास कार्यों के लिए धन का आवंटन और निर्णय लेने की शक्ति होती है। इसके विपरीत, ग्राम पंचायत सदस्य के पास न तो कोई बड़ा फंड होता है और न ही निर्णय लेने की सीधी शक्ति। उनका काम मुख्य रूप से ग्राम सभा की बैठकों में भाग लेना और प्रधान के फैसलों पर मुहर लगाना होता है, जिससे यह पद 'सत्ता-विहीन' या कम प्रभावशाली माना जाता है। कम सामाजिक सम्मान: प्रधान पद की तुलना में ग्राम पंचायत सदस्य के पद को सामाजिक रूप से कम महत्वपूर्ण माना जाता है, जिससे लोग इस पद के लिए समय और धन खर्च करने को तैयार नहीं होते। जागरूकता की कमी: ग्रामीण आबादी में ग्राम पंचायत सदस्य के वास्तविक कर्तव्यों, अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भूमिका के बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ा कारण हो सकती है। अभियान का खर्च: भले ही यह एक छोटा पद हो, लेकिन चुनाव लड़ने के लिए कुछ न्यूनतम खर्च तो आता ही है। जब पद में कोई सीधा लाभ या प्रतिष्ठा न हो, तो लोग उस पर पैसा खर्च करने से कतराते हैं। बढ़ती शहरीकरण की प्रवृत्ति: ग्रामीण क्षेत्रों से युवाओं का शहरों की ओर पलायन भी एक कारण हो सकता है, जिससे सक्रिय युवा भागीदारी कम हो रही है। आगे की प्रक्रिया: जांच से मतदान तक का चुनावी कार्यक्रम नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, राज्य निर्वाचन आयोग अब अगले चरण में प्रवेश करेगा। नामांकन पत्रों की जांच: 7 से 9 जुलाई तक राज्य निर्वाचन आयोग दोनों चरणों के लिए दाखिल हुए सभी नामांकन पत्रों की गहन जांच करेगा। इस दौरान यह देखा जाएगा कि सभी आवेदन वैध हैं और उम्मीदवारों ने नियमों का पालन किया है। नाम वापसी का अवसर: नामांकन पत्रों की जांच के बाद, इच्छुक उम्मीदवार 10 और 11 जुलाई को अपने नाम वापस ले सकेंगे। इसके बाद ही चुनाव मैदान में बचे उम्मीदवारों की अंतिम सूची स्पष्ट हो पाएगी। चुनाव चिह्न आवंटन: नाम वापसी के बाद, चुनाव मैदान में टिके उम्मीदवारों को उनके चुनाव चिह्न आवंटित किए जाएंगे। पहले चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 14 जुलाई दूसरे चरण के लिए चुनाव चिह्न का आवंटन: 18 जुलाई मतदान की तिथियां: पहले चरण का मतदान: 24 जुलाई दूसरे चरण का मतदान: 28 जुलाई परिणामों की घोषणा: दोनों चरणों के लिए डाले गए मतों की गणना के बाद, परिणामों की घोषणा 31 जुलाई को की जाएगी। लोकतंत्र पर सवाल और आयोग की चुनौती त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्राम प्रधान पद के लिए पर्याप्त नामांकन होना तो अच्छी बात है, लेकिन सदस्य पदों के लिए यह उदासीनता निश्चित रूप से चिंता का विषय है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक भागीदारी को लेकर एक गहरी जागरूकता की कमी और राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है। अगर बड़ी संख्या में सदस्य पद खाली रह जाते हैं, तो यह सीधे तौर पर पंचायती राज व्यवस्था के सुचारु संचालन और ग्रामीण स्तर पर प्रभावी प्रतिनिधित्व को प्रभावित करेगा। आगामी दिनों में राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती होगी कि इन रिक्त पदों पर पुनः चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाए या किसी वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे नामित प्रतिनिधियों की व्यवस्था, यदि कानूनी ढांचा इसकी अनुमति देता है) पर विचार किया जाए। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि नाम वापसी के बाद उम्मीदवारों की अंतिम सूची में कितनी विविधता और वास्तविक प्रतिस्पर्धा नजर आती है। इस पूरी प्रक्रिया पर ग्रामीण विकास और लोकतांत्रिक सुदृढ़ता के लिए गहन चिंतन की आवश्यकता है।

55 हजार ग्राम पंचायत सदस्य पद ‘लावारिस’? उत्तराखंड पंचायत चुनाव में चौंकाने वाली तस्वीर, क्या खाली रह जाएंगी हजारों गांवों की सीटें?

देहरादून, 5 जुलाई, 2025 – (समय बोल रहा ) – उत्तराखंड के त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के पहले और दूसरे चरण के लिए नामांकन प्रक्रिया शनिवार, 5 जुलाई को समाप्त हो गई, और जो आंकड़े सामने आए हैं, वे चौंकाने वाले और चिंताजनक हैं। प्रदेशभर में ग्राम प्रधान के पदों के लिए तो नामांकन का ‘महाकुंभ’…

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